Bhopal Gas Tragedy: पीढ़ी दर पीढ़ी भुगत रही है 36 साल पहले हुए गैस कांड का दंश, क्या पीड़ितों के साथ इंसाफ हुआ?
1984 में जहरीली गैस के रिसाव से भोपाल के सैकड़ों लोगों की जान चली गई थी36 बरस होने पर फिर सवाल पैदा हो रहा है कि क्या पीड़ितों को इंसाफ मिला?
भोपाल गैस त्रासदी के 36 बरस गुजर चुके हैं. आज ही के दिन 2-3 दिसम्बर 1984 में जहरीली गैस के रिसाव से सैकड़ों लोगों की जान चली गई थी. 2019 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की जारी एक रिपोर्ट में भोपाल गैस त्रासदी को 20वीं सदी की 'प्रमुख औद्योगिक दुर्घटनाओं' में से एक बताया गया था.
भोपाल गैस पीड़ितों को आज भी इंसाफ का इतंजार
रिपोर्ट के मुताबिक, 30 टन मिथाइल आइसो साइनाइट (मिक) नामक जहरीली गैस का यूनियन कार्बाइड संयंत्र के रिसाव से कर्मचारी और आसपास की छह लाख आबादी प्रभावित हुई. हादसे में अलग-अलग रिपोर्ट के मुताबिक सैकड़ों लोगों की जान गई. लोग बताते हैं कि 15 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हादसे में हुई. सैंकड़ों लोग शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए. पीड़ितों के लिए काम कर रहे संगठनों का कहना है कि गैस रिसाव के कारण अत्यधिक मोटापे से पीड़ितों को कई बीमारियों जैसे डायबिटीजी, हाइपरटेंशन, लिवरी, किडनी, ब्रेस्ट के कैंसर का खतरा बढ़ गया है. पीड़ितों को थॉयरायड की समस्या सामान्य से दोगुनी हो गई है.
एंडोक्राइन सिस्टम भी यूनियन कार्बाइड की गैस के चलते प्रभावित हुआ है. इस साल कोविड-19 की महामारी ने गैस पीड़ितों की त्रासदी में और इजाफा कर दिया है. मध्य प्रदेश की सरकार ने माना कि कोविड-19 के कारण 1984 के भोपाल गैस पीड़ितों में से 102 लोगों की जान चली गई. हालांकि, स्वंय सेवी संगठनों ने मौत के आंकड़ों को कम होने का आरोप लगाया है. उन्होंने दावा किया कि अब तक संक्रमण के कारण 254 गैस पीड़ितों की मौत हो चुकी.
काली रात की याद आज एक बार फिर हुई ताजा
आज फिर घटना की बरसी पर काले दिन की याद ताजा हो गई है. त्रासदी के पीड़ितों को इंसाफ दिलाने में जुटे चार संगठनों ने यूनियन कार्बाइड और डाउ केमिकल से लंबे समय तक जख्मों की मार झेलने के लिए अतिरिक्त मुआवजे की मांग की है. डाउ केमिकल ने यूनियन कार्बाइड का अधिग्रहण किया है. 1984 में दुर्घटना के बाद कम्पनी के चेयरमेन वारेन एंडरसन को मुख्य आरोपी बनाया गया. 7 जून, 2010 को आए स्थानीय अदालत के फैसले में आरोपियों को सिर्फ दो-दो साल की सजा सुनाई गई, लेकिन सभी आरोपी जमानत पर रिहा भी कर दिए गए. साल 1984 में 2-3 दिसंबर की रात भोपाल में भीषण गैस त्रासदी के दौरान मोती सिंह कलेक्टर और स्वराज पुरी एसपी थे. आरोप है कि उनकी मिलीभगत से मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन देश छोड़कर भाग गया. हादसे के बाद एंडरसन भारत आया और हालात देखकर फौरन भाग निकला.
दोनों तत्कालीन अफसरों कलेक्टर मोती सिंह और एसपी स्वराज पुरी के खिलाफ जिला अदालत में आपराधिक केस दर्ज हुआ. आरोपियों ने भोपाल जिला अदालत की कार्यवाही को जबलपुर हाईकोर्ट में चुनौती दी. हाईकोर्ट ने दोनों के पक्ष में फैसला सुनाया. हादसे के मुख्य आरोपी वाॉरेन एंडरसन की 2014 में मौत हो गई. भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार की भी इसी साल मौत हो गई. जब्बार गैस पीड़ितों के हितों के लिए पिछले तीन दशक से काम कर रहे थे.
अपनी मौत से कुछ ही दिन पहले उन्होंने प्रदेश और न ही केन्द्र सरकार पर त्रासदी के नतीजों और प्रभावों का आकलन नहीं करने का आरोप लगाया. उन्होंने 1989 में केन्द्र सरकार और अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन के बीच समझौते को पूरी तरह से धोखा बताया. उनका कहना था कि समझौते के तहत मिली रकम का हरेक गैस प्रभावित को पांचवें हिस्से से भी कम मिला. नतीजतन, गैस प्रभावितों को स्वास्थ्य सुविधाओं, राहत और पुनर्वास क्षतिपूर्ति के लिए लगातार लड़ाई लड़नी पड़ी है. जब्बार के अनुसार समझौते के तहत मृतकों और घायलों की संख्या बहुत कम दिखाई गई है.
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