Bhopal Gas Tragedy: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल ने आज से 35 साल पहले मौत का वो खौफनाक मंजर देखा था जिसके आज भी याद आने पर लोग दर्द से सिहर जाते हैं. 2 दिसंबर 1984 में आज ही के दिन मानव इतिहास की सबसे भयंकर त्रासदी भोपाल गैस कांड हुआ था. 2 दिसंबर, 1984 को भोपाल में यूनियन कार्बाइड कंपनी से एमआईसी गैस का रिसाव हुआ था. इस घटना में हजारों लोगों की मौत हो गई थी तो वहीं कई हजार लोग इससे गंभीर रुप से प्रभावित हुए थे. आईए जानते हैं मानव इतिहास की इस सबसे भयंकर औद्योगिक रिसाव की घटना में क्या हुआ था. कैसे एक पल में लोग मौत के आगोश में समा गए थे.


भोपाल गैस त्रासदी की पूरी कहानी


भोपाल गैस त्रासदी की पूरी कहानी की बात करें तो सबसे पहले यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन के बारे में जानना होगा. यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने साल 1969 में भारत में एक कीटनाशक फैक्ट्री खोली. इसका नाम यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड था. जब फैक्ट्री को खोले 10 साल बीत गए तो साल 1979 में इस फैक्ट्री का एक प्रॉडक्शन प्लांट भोपाल में भी लगाया गया.


फैक्ट्री के इसी भोपाल प्लांट में दो-तीन दिसंबर 1984 की रात को निकली ज़हरीली गैस 'मिक' ने हज़ारों लोगों की जान ले ली थी.


कैसे हुआ हादसा


दरअसल दो दिसंबर की रात को नाइट शिफ्ट में काम करने वाले लोगों में भूमिगत टैंक के पाइपलाइन की सफाई करनी शुरू की. उसी वक्त टैंक का तापमान 200 डिग्री तक पहुंच गया. इसका तापमान चार से पांच डिग्री के बीच रहना चाहिए. माना जाता है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि टैंक को सुरक्षित रखने के लिए प्रयोग किया जाने वाला फ्रीजर प्लांट बिजली का बिल बचाने के लिए बंद कर दिया गया था. तापमान बढ़ने पर टैंक में बनने वाली जहरीली गैस उससे जुड़ी पाइप लाइन में पहुंचने लगी. पाइप लाइन का वॉल्व सही से बंद नहीं था, लिहाजा उससे जहरीली गैस का रिसाव शुरू हो गया.


इसके बाद जैसे ही कारखाने में साइरन बजा कर्मचारिय जहरीली गैस से खुद का बचाने के लिए वहां से भाग गए.


इसके बाद मिथाइल आइसो साइनाइट (मिक) नामक जहरीली गैस हवा में फैल गई और इसके कारण आस-पास के लोगों को सांस लेना मुश्किल हो रहा था. यह गैस कीड़ों को मारने के काम आती है लेकिन इतनी बड़ी मात्रा में इसका रिसाव होने से लोगों की मौत भी कीड़ों की तरह ही होने लगी. कई लोगों को आंखों में जलन, सांस लेने में तकलीफ और उल्टियां होने लगी. थोड़ी ही देर में अस्पताल में मरीजों की लंबी भीड़ लग गई.


कितने लोगों की मौत


जानकार सूत्रों का कहना है कि कार्बाइड फैक्टरी से करीब 40 टन गैस का रिसाव हुआ था. अगले ही दिन हजारों लोगों की मौत हो चुकी थी. लोगों को सामूहिक रूप से दफनाया गया और अंतिम संस्कार किया गया. कुछ ही दिन के अंदर 2,000 के करीब जानवरों के शव को विसर्जित करने पड़े. आसपास के इलाके के पेड़ बंजर हो गए. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक तुरंत 2,259 लोगों की मौत हो गई थी. मध्य प्रदेश सरकार ने गैस रिसाव से होने वाली मौतों की संख्या 3,787 बताई थी. 2006 में सरकार ने कोर्ट में एक हलफनामा दिया. उसमें उल्लेख किया कि गैस रिसाव के कारण कुल 5,58,125 लोग जख्मी हुए, उनमें से 38,478 आंशिक तौर पर अस्थायी विकलांग हुए और 3,900 ऐसे मामले थे जिसमें स्थायी रूप से लोग विकलांग हो गए.


जांच में क्या आया सामने


हादसे के बाद जांच एजेंसियों को पता चला कि कारखाने से संबंधित सभी सुरक्षा मैन्युअल अंग्रेजी में थे. जबकि कई कर्माचारियों को यह भाषा आती तक नहीं थी. इसके साथ ही उन्हें आपात स्थिति से निपटने के लिए जरूरी प्रशिक्षण भी नहीं दिया गया था. इस मामले में फैक्ट्री के संचालक वॉरेन एंडरसन को मुख्य आरोपी बनाया गया था. हादसे के तुरंत बाद ही वह भारत छोड़कर अपने देश अमेरीका भाग गया था. पीड़ित उसे भारत लाकर सजा देने की मांग करते रहे, लेकिन भारत सरकार उसे अमेरीका से नहीं ला सकी. अंततः 29 सितंबर 2014 को उसकी मौत हो गई.