भोपाल गैस त्रासदी: 7844 करोड़ रुपए मुआवजा दिलवाने की केंद्र की मांग खारिज, सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें
Bhopal Gas Tragedy: भोपाल गैस त्रासदी में 3000 से अधिक लोगों की जान गई थी. मामले में केंद्र ने यूनियन कार्बाइड से अतिरिक्त मुआवजे के लिए याचिका दायर की थी.
Bhopal Gas Tragedy: भोपाल गैस पीड़ितों को अतिरिक्त मुआवजा दिलवाने की केंद्र सरकार की अर्ज़ी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है. केंद्र ने 1989 में तय मुआवजे को नाकाफी बताया था. उसकी मांग थी कि कोर्ट यूनियन कार्बाइड और डाउ केमिकल्स को 7844 करोड़ रुपए का अतिरिक्त मुआवजा चुकाने का आदेश दे. लेकिन कोर्ट ने इससे मना कर दिया.
क्या है मामला?
2 और 3 दिसंबर 1984 के बीच वाली रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड कंपनी के कीटनाशक प्लांट से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ. इससे हज़ारों लोगों की मौत हो गई. मौत का आधिकारिक आंकड़ा 3,500 लोगों से अधिक का है. कई रिपोर्ट्स में यह दावा किया जाता है कि गैस के असर से उसी रात मरने वालों और बाद में बीमार होकर मरने वालों की कुल संख्या 15,000 से ज़्यादा की है.
1989 का समझौता
यूनियन कार्बाइड और केंद्र सरकार के बीच फरवरी 1989 में मुआवजे पर समझौता हुआ था. इसमें यह तय हुआ कि कंपनी 470 मिलियन डॉलर (लगभग 715 करोड़ रुपए) का भुगतान करेगी. इस समझौते को सुप्रीम कोर्ट ने भी मंजूरी दी थी. बाद में सरकार ने इस राशि को अपर्याप्त बताना शुरू कर दिया. 2010 में उसने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दाखिल कर 7,844 करोड़ रुपए का मुआवजा दिलाए जाने की मांग की. केंद्र की मांग थी कि कोर्ट यूनियन कार्बाइड और भारत में उसकी जगह ले चुकी कंपनी डाउ केमिकल्स से यह राशि चुकाने को कहे.
कोर्ट ने क्या कहा?
इस साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने केंद्र की याचिका पर सुनवाई की. जजों ने बिना पुनर्विचार याचिका दाखिल किए सीधे क्यूरेटिव याचिका दाखिल करने को तकनीकी रूप से गलत माना. जजों ने यह भी कहा कि याचिका समझौते के 21 साल बाद दाखिल हुई थी. किसी मसले को हमेशा के लिए खुला नहीं रखा जा सकता.
खारिज हुई याचिका
5 जजों की बेंच की तरफ से साझा फैसला पढ़ते हुए जस्टिस कौल ने कहा, "हमारे विचार से मुआवजा राशि पर्याप्त थी. अगर सरकार को ज़्यादा मुआवजा ज़रूरी लगता है तो उसे खुद देना चाहिए था. ऐसा न करना सरकार की लापरवाही थी. समझौते को 3 दशक से भी ज़्यादा समय बीत जाने के बाद कंपनी को नए सिरे से भुगतान के लिए नहीं कहा जा सकता."
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