बीएचयू: फिरोज खान के समर्थन में उतरे छात्र, कहा- धर्म के आधार पर भेदभाव गलत है
संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर छात्रों को गुट दो धड़ों में बंट गया है. एक गुट उनकी नियुक्ति का विरोध कर रहा है तो वहीं दूसरे गुट ने उनका समर्थन किया है.
वाराणसी: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में अपनी नियुक्ति पर 2 हफ्ते से जारी बवाल के बीच अखिरकार मुस्लिम प्रोफेसर फिरोज खान ने जब घर वापसी कर ली तो अब बीएचयू में छात्रों का एक गुट उनके समर्थन में आ गया है. बीएचयू में ही पढ़ने वाले दो छात्र संगठनों ने जॉइंट एक्शन कमिटी के बैनर तले लंका गेट से रविदास गेट तक मार्च निकाला. छात्रों के हाथों में बैनर थे जिसपर लिखा था, डॉ फिरोज खान हम आपके साथ हैं. छात्रों ने कहा कि भारत जैसे देश में धर्म के आधार पर भेदभाव गलत है. छात्रों का कहना है कि अगर इस मामले का जल्द समाधान नहीं निकाला गया तो वो बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन करेंगे. इस मार्च में एनएसयूआई, यूथ फॉर स्वराज और आइसा के छात्र शामिल थे.
वहीं छात्रों के कई गुटों द्वारा बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर फिरोज खान की नियुक्ति के बाद से ही 7 नवंबर से संस्कृत के छात्रों द्वारा कुलपति आवास के सामने धरना दिया जा रहा है. धरना रत छात्र हनुमान चालीसा का पाठ करने के साथ बीएचयू प्रशासन के बुद्धि शुद्धि के लिए यज्ञ हवन पूजन भी कर रहे हैं. 18 नवंबर को कुलपति के साथ बातचीत के बाद भी इस विषय में कोई नतीजा नहीं निकलने से छात्र लगातार धरना दे रहे हैं.
पिछले हफ्ते बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों ने कुलपति के निवास के पास फिरोज की नियुक्ति रद्द करने को लेकर धरना भी दिया था. छात्रों की ओर से की जा रही मांग के बीच विश्वविद्यालय प्रशासन अपने फैसले पर अडिग नजर आ रहा है. विश्वविद्यालय का कहना है कि हमने 'सर्वसम्मति' से कुलपति की अध्यक्षता में एक "पारदर्शी" चयन प्रक्रिया के माध्यम से "सबसे योग्य उम्मीदवार" को नियुक्त किया है.
इस मामले पर फिरोज का कहना है जब वो संस्कृत पढ़ रहे थे तब उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव या विवाद नहीं हुआ. लेकिन जैसे ही मैंने पढ़ाने का फैसला किया मैं मुस्लिम हो गया. बता दें कि साल 2018 में जयपुर के राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान से उन्होंने पीएचडी की थी जहां वो संस्कृत पढ़ने वाले अकेले छात्र थे.
29 साल के फिरोज जयपुर से करीब 32 किलोमीटर दूर दक्षिण पश्चिम के गांव बगरू के रहने वाले हैं. यह गांव प्राकृतिक डाई बनाने के लिए मशहूर है. फिरोज ने बताया कि जब मैंने जयपुर के राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान में शास्त्री (स्नातक) डिग्री के लिए एडमीशन लिया तो उस वक्त मैं अकेला मुस्लिम छात्र था.
राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान प्राचीन और आधुनिक भाषाओं और साहित्य की शिक्षा देने वाला संस्थान है जिसके देशभर में जयपुर समेत 13 कैंपस हैं. फिरोज बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्त होने से पहले तीन साल तक राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान जयपुर में गेस्ट टीचर थे.
इसी साल 14 अगस्त यानी संस्कृत दिवस पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने फिरोज को 'संस्कृत युवा प्रतिभा सम्मान' से सम्मानित किया था. इस समारोह में कुछ और भी संस्कृत के विद्वानों को अवार्ड दिए गए थे. बचपन से ही फिरोज की रुचि संस्कृत भाषा की ओर रही, उनके पिता रमजान खान गौरक्षा और पालन को बढ़ावा देने के लिए भाजन गाते थे.
फिरोज बताते हैं कि मेरे पिता भजन गाते थे और दो और बड़े भाइयों का रुझान भी संस्कृत की ओर था. मैं संस्कृत पढ़ना चाहता था, इसलिए कक्षा 2 में मेरा दाखिला गाँव के संस्कृत विद्यालय हुआ. इसी सकूल में मेरे भाई भी पढ़ने गए थे. उन्होंने बताया कि संस्कृत के कारण मेरी बौद्धिक वृद्धि हुई और मैं इसे और अधिक सीखने की ओर आकर्षित हुआ. उन्होंने बताया कि बगरू में संस्कृत स्कूल गांव की मस्जिद के बिल्कुल करीब है और इसमें कुछ मुस्लिम बच्चे भी पढ़ते हैं.
फिरोज कहते हैं कि गाँव में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था. वास्तव में तो यह कॉलेज में भी कोई मायने नहीं रखता था. मुझे अपनी धार्मिक पहचान के कारण कभी किसी भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा. मैं अपने शिक्षकों का आभारी हूं,
इस मामले को लेकर लोगों की तरह तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. इसी कड़ी में बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने भी अपनी बात रखी है. मायावती ने ट्वीट कर कहा, ''बनारस हिन्दू केन्द्रीय विवि में संस्कृत के टीचर के रूप में पीएचडी स्कालर फिरोज खान को लेकर विवाद पर शासन/प्रशासन का ढुलमुल रवैया ही मामले को बेवजह तूल दे रहा है. कुछ लोगों द्वारा शिक्षा को धर्म/जाति की अति-राजनीति से जोड़ने के कारण उपजे इस विवाद को कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता है.''
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