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भूपेन हजारिका के परिवार का 'भारत रत्न' लेने से इनकार, नागरिकता संशोधन बिल के विरोध में फैसला

पूर्वोत्तर राज्यों में नागरिक संशोधन बिल के खिलाफ लोगों का बड़ा तबका प्रदर्शन कर रहा है. उनका दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है और यह असंवैधानिक है. भूपेन हजारिका भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम से एक बहुमुखी प्रतिभा के गीतकार, संगीतकार और गायक थे.

नई दिल्ली: दिवंगत गायक और संगीतकार भूपेन हजारिका के परिवार ने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न ना लेने का फैसला किया है. भूपेन हजारिका के बेटे तेज हजारिका ने कहा, ''हम भारत रत्न का सम्मान स्वीकार नहीं करेंगे और नागरिक संशोधन बिल के विरोध में अवॉर्ड को वापस लौटाएंगे.' एक ओर बेटा जहां सम्मान वापसी की बात कह रहा है तो दूसरी ओर भूपेन हजारिका के भाई समर हजारिका ने भारत रत्न सम्मान को असम के लिए गौरव बताया है.

इस साल केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, नानाजी देशमुख और भूपेन हजारिका को मरणोपरांत भारत रत्न देने का एलान किया था. भारत रत्न के अलावा भूपेन हजारिका को पद्म भूषण, दादा साहेब फाल्के पुरस्कार और संगीत नाटक अकादमी रत्न का सम्मान भी मिल चुका है.

बता दें कि पूर्वोत्तर राज्यों में इस नागरिक संशोधन बिल के खिलाफ लोगों का बड़ा तबका प्रदर्शन कर रहा है. कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, माकपा समेत कुछ अन्य पार्टियां लगातार इस विधेयक का विरोध कर रही हैं. उनका दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है और यह असंवैधानिक है.

कौन हैं भूपेन हजारिका? भूपेन हजारिका भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम से एक बहुमुखी प्रतिभा के गीतकार, संगीतकार और गायक थे. इसके अलावा वे असमिया भाषा के कवि, फिल्म निर्माता, लेखक और असम की संस्कृति और संगीत के अच्छे जानकार भी रहे थे. वे भारत के ऐसे विलक्षण कलाकार थे जो अपने गीत खुद लिखते थे, संगीतबद्ध करते थे और गाते थे.

हजारिका को साल 1975 में सर्वोत्कृष्ट क्षेत्रीय फिल्म के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार, 1992 में सिनेमा जगत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के सम्मान से सम्मानित किया गया. इसके अलावा उन्हें 2009 में असोम रत्न और इसी साल संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड, 2011 में पद्म भूषण जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया.

क्या है नागरिकता संशोधन बिल 2016? भारत देश का नागरिक कौन है, इसकी परिभाषा के लिए साल 1955 में एक कानून बनाया गया जिसे 'नागरिकता अधिनियम 1955' नाम दिया गया. मोदी सरकार ने इसी कानून में संशोधन किया है जिसे 'नागरिकता संशोधन बिल 2016' नाम दिया गया है.

संशोधन के बाद ये बिल देश में छह साल गुजारने वाले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के छह धर्मों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और इसाई) के लोगों को बिना उचित दस्तावेज के भारतीय नागरिकता देने का रास्ता तैयार करेगा. लेकिन 'नागरिकता अधिनियम 1955' के मुताबिक, वैध दस्तावेज होने पर ही ऐसे लोगों को 12 साल के बाद भारत की नागरिकता मिल सकती थी.

क्यों हो रहा है विरोध? असम गण परिषद (एजीपी) के अलावा कई पार्टियां भी इस बिल का विरोध कर रही हैं. इनमें कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी समेत दूसरी पार्टियां शामिल हैं. इनका दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. ये विधेयक 19 जुलाई 2016 को पहली बार लोकसभा में पेश किया गया.

इसके बाद संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने लोकसभा में अपनी रिपोर्ट पेश की थी. जेपीसी रिपोर्ट में विपक्षी सदस्यों ने धार्मिक आधार पर नागरिकता देने का विरोध किया था और कहा था कि यह संविधान के खिलाफ है. इस बिल में संशोधन का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि अगर बिल लोकसभा से पास हो गया तो ये 1985 के 'असम समझौते' को अमान्य कर देगा.

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