चीन की नौसेना का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारतीय नौसेना के लिए छह पारंपरिक पनडुब्बियों के निर्माण के लिए भारत 55,000 करोड़ की मेगा परियोजना के लिए बोली प्रक्रिया शुरू करने के लिए पूरी तरह से तैयार हो चुका है. पनडुब्बियों का निर्माण भारत में बहुप्रचारित रणनीतिक भागीदारी मॉडल के तहत किया जाएगा. जिसमे घरेलू कंपनियां विदेशी कंपनियों के साथ हाथ मिलाएंगी जिससे देश में उच्च-स्तरीय मिलिट्री प्लेटफॉर्म्स का उत्पादन किया जाएगा.


मेक इन इंडिया अभियान के तहत रक्षा मंत्रालय ने इन छह पनडुब्बियों के निर्माण के लिए दो भारतीय पोत कारखानों (शिपयार्ड) को चुन लिया है. इसके अलावा पांच बड़ी विदेशी रक्षा कंपनियों को भी विकल्प के तौर पर रखा गया है. चुने गए भारतीय कंपनी में लार्सन एंड टूब्रो और सरकारी कंपनी में मजागांव डाक्स लिमिटेड (एमडीएल) शामिल हैं. जबकि चयनित विदेशी कंपनियों में थायसीन क्रुप मरीन सिस्टम्स (जर्मनी), नवानतिया (स्पेन) और नेवल ग्रुप (फ्रांस) हैं.


भारतीय नौसेना ने अपनी पानी के भीतर लड़ने की क्षमता को बढ़ाने के लिए छह परमाणु हमले वाली पनडुब्बियों सहित 24 नई पनडुब्बियों का अधिग्रहण करने की योजना बनाई है. वर्तमान में इसमें 15 पारंपरिक पनडुब्बियां और दो परमाणु पनडुब्बियां हैं.


हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाने के चीन के बढ़ते प्रयासों के मद्देनजर नौसेना अपनी समग्र क्षमताओं को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है. हिंद महासागर, देश के सामरिक हितों के लिए महत्वपूर्ण है.


वैश्विक नौसेना विश्लेषकों के अनुसार, चीनी नौसेना के पास वर्तमान में 50 से अधिक पनडुब्बियां और लगभग 350 जहाज हैं. जहाजों और पनडुब्बियों की कुल संख्या अगले 8-10 वर्षों में 500 से अधिक होने का अनुमान है.


भारत वैश्विक स्तर पर हथियारों का सबसे बड़ा आयात करने वाला देश है. अनुमान के मुताबिक, भारतीय सशस्त्र बलों को अगले पांच वर्षों में पूंजी खरीद में लगभग 130 अरब डॉलर खर्च करने का अनुमान है.