नई दिल्ली: जब से आम आदमी पार्टी वजूद में आई है और सत्ता की दहलीज तक पहुंची है. ये पार्टी अनेक नाटकीय घटनाक्रम की गवाह रही है. कभी अपने चमन में खुद आग लगाई तो कभी विरोधियों ने चिंगारी को हवा दी. अपनों और विरोधियों के थपेड़ों से जूझती इस पार्टी को आज अपने राजनीतिक करियर का सबसे बड़ा झटका लगा है.

दिल्ली की विधानसभा के इतिहास में सबसे बड़ी और अप्रत्याशित जीत दर्ज करने वाली आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता का रद्द हो जाना न सिर्फ पार्टी के दौड़ते भविष्य पर मंडराते बादल हैं, बल्कि केजरीवाल के लिए भी ये घड़ी अग्निपरीक्षा है.

दरअसल, 20 विधायकों को खो देना एक झटका है, लेकिन इसके साथ ही एक अन्य खतरा भी मंडरा रहा है. अभी परीक्षा और परेशानी की एक और घड़ी दस्तक दे सकती है.


केजरीवाल ने 27 विधायकों को मोहल्ला क्लीनिक की रोगी कल्याण समिति का अध्यक्ष बनाया हुआ है. विभोर आनंद नाम के एक शख्स ने इसे भी लाभ का पद मानते हुए अदालत में चुनौती दी है. इन 27 विधायकों में से सात ऐसे भी हैं जिनपर संसदीय सचिव के पद पर रहने का आरोप भी था. यानि कुल मिलाकर 20 और विधायकों पर सदस्यता जाने की तलवार लटक रही है.


हालांकि, 20 विधायकों के निपटने के बाद भी केजरीवाल सरकार के पास 46 विधायक बचते हैं जो बहुमत के लिए जरुरी 36 से ज्यादा है. यानि सरकार सुरक्षित है.


लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि इन 46 में से कपिल मिश्रा जैसे बगावती तेवर वाले पांच विधायक शामिल हैं. इन्हें हटा दिया जाए तो संख्या 41 की बैठती है जो बहुमत से सिर्फ पांच ही ज्यादा है.


दूसरी परेशानी केजरीवाल के साथ आ सकती है. उनके नेतृत्व पर सवाल उठेंगे. आखिर ये सवाल उठ सकता है कि उनकी गलती से पार्टी को ये भारी नुकसान सहना पड़ा.