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कर्मचारियों को बड़ी राहत, पेंशन में बढ़ोतरी से जुड़े HC के आदेश को SC ने बरकरार रखा

हाई कोर्ट के इस फैसले ने कर्मचारियों के लिए बुढ़ापे में ज़्यादा पेंशन के हकदार बनने का रास्ता खोल दिया था. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इसके खिलाफ ईपीएफओ की अपील को पहली ही सुनवाई में खारिज कर दिया है.

नई दिल्लीः नौकरीपेशा लोगों को सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश से बड़ी राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने पेंशन से जुड़े केरल हाई कोर्ट के एक अहम फैसले को बरकरार रखा है. इस फैसले में हाई कोर्ट ने कर्मचारी भविष्य निधि योजना (EPF) के तहत मिलने वाले पेंशन को कम करने वाले संशोधन को खारिज कर दिया था. अब कर्मचारी और उनके नियोक्ता अगर चाहें तो कर्मचारी की असली आमदनी के आधार पर उसका पेंशन तय हो सकेगा.

ईपीएफ यानी एम्पलाई प्रोविडेंट फंड स्कीम में पहले पेंशन की व्यवस्था नहीं थी. 1996 में यह प्रावधान जोड़ा गया. ये व्यवस्था की गई कि नियोक्ता कंपनी पीएफ में जो 12% हिस्सा देती है उसमें से 8.33% हिस्सा यानी नियोक्ता के योगदान का करीब 70 फीसदी भाग पेंशन स्कीम (EPS) के लिए जाएगा.

इस व्यवस्था में कुल पेंशन योग्य आय 6750 रुपये रखी गई. मतलब कर्मचारी का वेतन कुछ भी हो, नियोक्ता को 6,750 रुपये का 8.33% ही पेंशन मद के लिए जमा करवाना था. लेकिन ये छूट दी गई कि अगर कर्मचारी और कंपनी दोनों चाहें तो पूरी आय (बेसिक+DA) पर पेंशन योजना का लाभ ले सकते हैं. इसके लिए दोनों को साझा आवेदन करना होता था और अपना अपना योगदान जमा करवाना होता था.

अगस्त 2014 में कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने नियमों में बदलाव कर दिया. इसके तहत कुल पेंशन योग्य आय को बढ़ा कर 15,000 रुपये कर दिया गया. लेकिन कर्मचारी और नियोक्ता कंपनी की सहमति से असली आय पर पेंशन मद में योगदान देने का प्रावधान हटा दिया गया.

केरल हाई कोर्ट में इसके खिलाफ सैकड़ों याचिकाएं दाखिल हुईं. कर्मचारियों की तरफ से ये कहा गया कि ईपीएफओ का फैसला मनमाना है. कर्मचारियों से वृद्धावस्था में सम्मानजनक पेंशन पाने का हक छीना गया है. जवाब में ईपीएफओ ने वास्तविक आय पर पेंशन से उसके फंड पर पड़ रहे बोझ का हवाला दिया. कहा कि पेंशन योजना कम आमदनी वाले लोगों की मदद के लिए बनाई गई थी. ज़्यादा आमदनी के हिसाब से पेंशन देने से पूरी व्यवस्था चरमरा सकती है.

हाई कोर्ट ने फैसले में कर्मचारियों की दलील को सही माना. 2 जजों की बेंच ने 12 अक्टूबर 2018 को दिए फैसले में कहा, "पेंशन योग्य आय की सीमा 15,000 कर देना सही नहीं है. इसका मतलब एक दिन की आमदनी 500 रुपये हुई. इससे ज़्यादा तो दिहाड़ी मजदूर कमा लेता है. इतने कम पेंशन योग्य आय के आधार पर वृद्धावस्था में जो पेंशन मिल पाएगी, वो काफी कम होगी. अगर कर्मचारी और कंपनी, दोनों ज़्यादा आय पर पेंशन फंड में योगदान देने को तैयार हैं, तो उन्हें मना नहीं किया जा सकता."

हाई कोर्ट के इस फैसले ने कर्मचारियों के लिए बुढ़ापे में ज़्यादा पेंशन के हकदार बनने का रास्ता खोल दिया था. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इसके खिलाफ ईपीएफओ की अपील को पहली ही सुनवाई में खारिज कर दिया है.

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