Anand Mohan Case: बिहार की राजनीति में इन दिनों बवाल ही बवाल है. नीतीश सरकार के तीन-तीन मंत्रियों को लेकर सवाल उठ रहे हैं. बीजेपी कानून मंत्री कार्तिकेय कुमार, खाद्य मंत्री लेसी सिंह और कृषि मंत्री सुधाकर सिंह का इस्तीफा मांग रही है. असल में जब से बिहार में सत्ता परिवर्तन हुआ है तब से सरकार में कुछ न कुछ ऐसा हो रहा है, जिससे कई सवाल उठ रहे हैं.
बाहुबली आनंद मोहन का विवाद
बिहार में जब से महागठबंधन की सरकार बनी है, तब से कई विवाद सामने आ रहे हैं. ताजा मामला बाहुबली आनंद मोहन का है. डीएम की हत्या के केस में उम्र कैद की सजा काट रहे आनंद मोहन 12 अगस्त को जेल से बाहर घूमते हुए दिखे. वो पटना में अपने घर परिवार वालों के अलावा समर्थकों से भी मिले. आनंद मोहन उसी रात खगड़िया के सर्किट हाउस में रुके, अगले दिन लाव लश्कर के साथ आरजेडी के दफ्तर गये. बीजेपी कहने लगी कि जिस आनंद मोहन को सलाखों के पीछे होना चाहिए वो बाहर है और अब बिहार में ऐसा ही होगा.
बीजेपी के करीबी आनंद मोहन
जिस आनंद मोहन से बिहार की राजनीति में गर्माहट की शुरुआत हुई वो आनंद मोहन एक समय में बीजेपी के भी काफी करीब हुआ करते थे. दरअसल, आनंद मोहन की राष्ट्रीय पहचान 1994 में बनी. उस साल बिहार के वैशाली में लोकसभा का उपचुनाव हुआ और आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद चुनाव जीतकर संसद पहुंचीं. ये वो दौर था, जब आनंद मोहन बिहार पीपुल्स पार्टी बनाकर अपनी राजनीति करते थे.
इसी साल 4 दिसंबर को मुजफ्फरपुर में बाहुबली छोटन शुक्ला की हत्या हुई. तब छोटन शुक्ला बिहार पीपुल्स पार्टी के नेता थे और केसरिया से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे. छोटन शुक्ला की हत्या के अगले दिन मुजफ्फरपुर में तनाव का माहौल था. आनंद मोहन और लवली आनंद अपने समर्थकों के साथ मुजफ्फरपुर पहुंचे थे. शाम को शहर के नया टोला से शव यात्रा का जुलूस निकला जो मुजफ्फरपुर से वैशाली में छोटन शुक्ला के गांव जा रहा था.
नारे लगाती भीड़
शाम का वक्त था मुजफ्फरपुर शहर के भगवानपुर चौक पर आनंद मोहन ने भड़काऊ भाषण दिया. भीड़ सरकार और प्रशासन के खिलाफ नारे लगाते आगे बढ़ रही थी. इसी दौरान खबड़ा गांव जो कि नेशनल हाइवे 28 के किनारे पड़ता है वहां से भीड़ गुजर रही थी. उग्र भीड़ के सामने से सफेद रंग की एंबेसडर कार आती हुई दिखाई दी. कार के आगे गोपालगंज के डीएम की नेम प्लेट थी जो कि हाजीपुर से गोपालगंज लौट रहे थे.
गोपालगंज के तत्कालीन डीएम की हत्या
इसी कार में गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया बैठे थे, जिनकी कुछ ही देर बाद भीड़ के बीच हत्या कर दी गई. पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज फाइल बताती है कि छोटन शुक्ला के भाई भुटकुन शुक्ला को आनंद मोहन ने गोली मारने का आदेश दिया था. जी कृष्णैया की हत्या होते ही हड़कंप मच गया. आनंद मोहन पत्नी लवली के साथ हाजीपुर की तरफ भाग निकले. वायरलेस सेट पर आनंद मोहन की गिरफ्तारी का संदेश गूंजने लगा और हाजीपुर से आनंद मोहन को गिरफ्तार कर लिया गया.
बीजेपी का समर्थन!
गोपालगंज के डीएम हत्याकांड में आनंद मोहन को साल 2007 में फांसी की सजा सुनाई गई. लेकिन फांसी की सजा को हाईकोर्ट ने 2008 में उम्र कैद में बदल दिया. आनंद मोहन फिलहाल इसी केस में जेल में सजा काट रहे हैं. ये तो रही उस केस की बात. मगर आज जिस आनंद मोहन को लेकर बीजेपी आक्रामक है वो आनंद मोहन पहली बार बीजेपी के समर्थन से ही जीतकर संसद पहुंचे थे.
जेल से लोकसभा चुनाव लड़ा
1996 लोकसभा चुनाव से पहले आनंद मोहन की पार्टी का विलय समता पार्टी में हो गया. आनंद मोहन के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट निकला हुआ था. एक दिन अचानक मुजफ्फरपुर में हलचल तेज हुई, जगह-जगह पुलिस वाले तौनात थे. पुलिस की हलचल तेज थी, दरअसल, आनंद मोहन ट्रक का क्लीनर बनकर शहर में दाखिल हुए और भारी भरकम पुलिस को चकमा देकर कोर्ट में सरेंडर कर दिया. यहां से आनंद मोहन जेल भेज दिये गये और फिर जेल से ही उन्होंने उस साल लोकसभा का चुनाव लड़ा.
आनंद मोहन बेटे-बेटी के पोस्टर लगे
1996 में आनंद मोहन शिवहर से लोकसभा के उम्मीदवार बने. इससे पहले वो 1995 में शिवहर से विधानसभा चुनाव लड़े, लेकिन वो रघुनाथ झा से हार गये. लेकिन 1996 में उन्होंने समता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा. आनंद मोहन जेल में थे लिहाजा प्रचार में उनके समर्थक ही लगे थे. तब उनके बेटे चेतन आनंद जो आज शिवहर से विधायक हैं वो और बेटी सुरभि के पोस्टर शिवहर लोकसभा क्षेत्र में लगे थे.
जेल से ही चुनाव जीत गए
पोस्टर पर लगी तस्वीर में आनंद मोहन के दोनों हाथ में हथकड़ी थी और नीचे शांतनु और सुरभि की तस्वीर और नाम लिखा था. इसके साथ में लिखा था "मेले पापा को बचा लो" बच्चों के बोलने वाले तोतले अंदाज में लिखा ये नारा इतना पॉपलुर हुआ कि आनंद मोहन जेल से ही चुनाव जीत गये. उसी वक्त अनिल कपूर की लोफर फिल्म आई थी. उसकी काफी कहानी आनंद मोहन के इस चुनाव से मिलती जुलती थी. इलाके में चर्चा ये थी कि फिल्म आनंद मोहन पर ही बनी है.
नीतीश कुमार से आनंद मोहन की अनबन
वोटों की गिनती में आनंद मोहन शुरू से ही आगे चल रहे थे. दोपहर होते होते लगभग साफ हो गया था कि आनंद मोहन जीत रहे हैं. मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल के बाहर उनसे मिलने वालों की भीड़ जुटने लगी. धीरे-धीरे करके सैकड़ों की संख्या में लोग पहुंच गए. इसके बाद आनंद मोहन जेल की खिड़की पर खड़े हुए और वहीं से लोगों से उनकी बात और मुलाकात हुई. कुछ दिनों बाद उन्हें जमानत मिली और फिर वो जेल से छूट कर दिल्ली चले गये. इस दौरान 13 दिन की वाजपेयी सरकार बनी और गिर गई. इसके बाद जनता दल की सरकार बनी. इसी दौरान नीतीश कुमार से आनंद मोहन की अन बन हो गई तो वो 1998 के लोकसभा चुनाव से पहले लालू प्रसाद यादव के पाले में चले गये.
आनंद मोहन ने वाजपेयी का साथ दिया
वहीं जिन लालू प्रसाद के खिलाफ की गई राजनीति ने आनंद मोहन को स्थापित किया, उन्होंने 1998 में उन्हीं लालू के सामने सरेंडर कर दिया. 1998 में आनंद मोहन लालू के समर्थन से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे. लेकिन 13 महीने की वाजपेयी सरकार जब अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रही थी तब आनंद मोहन ने पाला बदलकर अटल बिहारी वाजपेयी का साथ दिया, हालांकि सरकार नहीं बची. इसके बाद 1999 के चुनाव में आनंद मोहन ने पाला बदल लिया और फिर से बीजेपी के करीब पहुंच गये. 1999 में आनंद मोहन शिवहर से और पत्नी लवली को वैशाली से एनडीए का टिकट मिला मगर दोनों हार गये.
आनंद मोहन की विरासत बेटे के हाथ में
2000 में भी आनंद मोहन एनडीए के साथ रहे. मिलकर चुनाव लड़ा, इसके बाद वो और उनका परिवार पाला बदलता रहा. साल 2007 में आनंद मोहन को डीएम हत्याकांड में सजा मिली और तब से वो सलाखों के पीछे हैं. वैसे आनंद मोहन पहली बार 1990 में महिषी से जनता दल के टिकट पर विधायक बने थे. 1994 में वो लालू प्रसाद यादव से अलग हो गए थे. आनंद मोहन की छवि कोसी इलाके में रॉबिनहुड वाली थी. अपनी जाति के वो सबसे बड़े सिरमौर हुआ करते थे. 2020 में पहली बार आनंद मोहन की विरासत बेटे चेतन आनंद के हाथ में पहुंची और फिर वो शिवहर से आरजेडी के विधायक बने और अब जब सत्ता की पलटी हुई और महागठबंधन की सरकार बनी तो सबसे पहला विवाद आनंद मोहन ने ही खड़ा किया.