कास्ट सर्वे... बीजेपी के ओबीसी वोट बैंक में सेंधमारी? देखें 10 सालों में कैसे बदला पिछड़ा वर्ग के वोटरों का मूड
Bihar Caste Survey Report: पिछले 10 सालों के आंकड़ों पर नजर ड़ालें तो 2009 से 2019 तक बीजेपी का ओबीसी वोट बैंक बढ़ा है, जबकि दूसरे दलों के लिए इसमें कमी आई है.
Bihar Caste Survey: बिहार में कास्ट सर्वे के आंकड़े आ गए हैं. अब इन आंकड़ों के बाद देश की सियासत गर्म है. बिहार के बाद बाकी राज्यों में भी कास्ट सर्वे की चर्चा होने लगी है. मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस कह रही है कि सत्ता में आएंगे तो जातीय सर्वे कराएंगे. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने सोमवार (2 अक्टबूर) को कहा कि सत्ता में आएंगे तो प्रदेश में सर्वे कराएंगे.
इससे पहले राहुल गांधी भी देश में जातीय सर्वे कराने का वादा चुनावी सभाओं में करते रहे हैं. असल में ओबीसी वोट बैंक के दम पर पिछले दो चुनावों से बीजेपी देश में राज कर रही है. कांग्रेस और बाकी विपक्षी पार्टियां इन्हीं ओबीसी वोटरों को साधने की रणनीति पर काम कर रही है. बिहार में कास्ट सर्वे भी इसी का हिस्सा है.
10 सालों में कैसे बदला ओबीसी वोटरों का मूड?
सीएसडीएस का आंकड़ा बताता है कि कैसे चुनाव दर चुनाव ओबीसी वोटरों का मूड बदला है और बीजेपी मजबूत होती चली गई है. 2009 के चुनाव में जहां 22 फीसदी ओबीसी वोटरों ने बीजेपी को वोट किया था...वहीं 2014 में आंकड़ा 34 और 2019 में 44 फीसदी पहुंच गया. कांग्रेस को ओबीसी वोट 2009 में 24 फीसदी मिले थे, लेकिन 2014 और 2019 में 15-15 फीसदी से संतोष करना पड़ा. क्षेत्रीय पार्टियों को 2009 में 54 फीसदी ओबीसी वोट मिले थे जो 2014 में 51 और 2019 में घटकर 41 फीसदी रह गया. मतलब ये कि ओबीसी वोट बैंक पर बीजेपी की मजबूत पकड़ बन चुकी है और अब इसी वोट बैंक में सेंध लगाकर विपक्ष बीजेपी को मात देना चाहता है.
बिहार के कास्ट सर्वे के आंकड़े
मोटे तौर पर समझें तो बिहार में सबसे ज्यादा अति पिछड़ा वर्ग की आबादी है जो 36 फीसदी है. पिछड़े वर्ग की आबादी 27.12 फीसदी है. एससी आबादी 19.65 फीसदी , एसटी की 1.68 फीसदी और सामान्य वर्ग की आबादी 15.52 फीसदी है. ये आंकड़े सभी धर्मों के लोगों को मिलाकर हैं. अगर इसमें से कुछ प्रमुख जातियों के आंकड़ों की बात करें तो अकेले सबसे ज्यादा आबादी यादवों की है जो प्रदेश में 14.26 फीसदी के साथ टॉप पर हैं. इस जाति के वोटरों पर लालू परिवार की अच्छी पकड़ है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिस कुर्मी जाति से आते हैं उसकी आबादी महज 2.87 फीसदी है. उपेंद्र कुशवाहा जिस कोइरी बिरादरी की राजनीति करते हैं उसकी आबादी 4.21 फीसदी है. चिराग पासवान की जिस पासवान जाति के वोटरों पर पकड़ है उसकी आबादी 5.31 फीसदी है. जीतन राम मांझी जिस मांझी वोटरों की राजनीति करते हैं उसकी आबादी 3.08 फीसदी है.
जातीय गणना के इन आंकड़ों में वैश्य समूह को अलग अलग जातियों में बांटा गया है. इस वोट बैंक पर बीजेपी की पकड़ है. इसके अलावा, सवर्णों का जो वोट बैंक बीजेपी का माना जाता है उसके आंकड़ों को समझिए-
ब्राह्मण- 3.65%
राजपूत- 3.45%
भूमिहार- 2.86%
कायस्थ- 0.60%
ये कुल साढ़े दस फीसदी के आसपास का आंकड़ा है. राजनीतिक गलियारों में और खासकर टीवी, प्रिंट मीडिया में बिहार की जाति के जो आंकड़े पहले से चलते रहे हैं उसको आधार मानें तो सवर्णों के साथ ही नीतीश कुमार की जाति कुर्मी वोटरों की संख्या कम हुई है. सरकार कह रही है कि अब इन आंकड़ों का इस्तेमाल विकास और योजनाओं को बनाने में किया जाएगा.