जातीय गणना- बिहार में मुस्लिम राजनीति के लिए मौका है!
Bihar Caste Survey Report: कुछ प्रमुख जातियों के आंकड़ों की बात करें तो अकेले सबसे ज्यादा आबादी यादवों की है, जो 14.26 फीसदी के साथ टॉप पर हैं. इस जाति के वोटरों पर लालू परिवार की अच्छी पकड़ है.
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Bihar Caste Survey: बिहार में जातीय गणना के आंकड़े सामने आ गये हैं और इन आंकड़ों के बाद बिहार ही नहीं देश की राजनीति भी गरमाने का अनुमान है. इन आंकड़ों को समझें तो
मोटे तौर पर सबसे ज्यादा अति पिछड़ा वर्ग की आबादी है जो 36 फीसदी है. पिछड़े वर्ग की आबादी 27.12 फीसदी है. एससी आबादी 19.65 फीसदी, एसटी की 1.68 फीसदी और सामान्य वर्ग की आबादी 15.52 फीसदी है. ये आंकड़े सभी धर्मों के लोगों को मिलाकर हैं.
अति पिछड़ा और पिछड़ा मिलाकर ही ओबीसी कैटेगरी में आता है. राज्य सरकारों ने अपनी सुविधा के हिसाब से इनका वर्गीकरण किया है. बिहार में यादव, कुर्मी, कोइरी, वैश्य पिछड़ी जाति की प्रमुख जातियां हैं. इसके अलावा सैकड़ों जातियां हैं, जो अति पिछड़ी कैटेगरी की जातियां हैं.
बिहार में सबसे ज्यादा आबादी यादवों की
कुछ प्रमुख जातियों के आंकड़ों की बात करें तो अकेले सबसे ज्यादा आबादी यादवों की है, जो प्रदेश में 14.26 फीसदी के साथ टॉप पर हैं. इस जाति के वोटरों पर लालू परिवार की अच्छी पकड़ है. सीएम नीतीश जिस कुर्मी जाति से आते हैं, उसकी आबादी महज 2.87 फीसदी है. उपेंद्र कुशवाहा जिस कोइरी बिरादरी की राजनीति करते हैं, उसकी आबादी 4.21 फीसदी है. चिराग पासवान की जिस पासवान जाति के वोटरों पर पकड़ है, उसकी आबादी 5.31 फीसदी है. जीतन राम मांझी जिस मांझी वोटों की राजनीति करते हैं, उसकी आबादी 3.08 फीसदी है.
नीतीश कुमार की जाति के वोटरों का आंकड़ा घटा
जातीय गणना के इन आंकड़ों में वैश्य समूह को अलग-अलग जातियों में बांटा गया है. इस वोट बैंक पर बीजेपी की पकड़ है. इसके अलावा सवर्णों का जो वोट बैंक बीजेपी का माना जाता है, उसके आंकड़ों की बात करें तो ब्राह्मण 3.65 प्रतिशत, राजपूत 3.45 फीसदी, भूमिहार 2.86 फीसदी और कायस्थ 0.60 प्रतिशत हैं. ये कुल साढ़े दस फीसदी के आसपास का आंकड़ा है. राजनीतिक गलियारों में और खासकर टीवी, प्रिंट मीडिया में बिहार की जाति के जो आंकड़े पहले से चलते रहे हैं, उसको आधार मानें तो सवर्णों के साथ ही नीतीश कुमार की जाति कुर्मी वोटरों की संख्या कम हुई है.
अब तक सवर्णों की इन चार जातियों का आंकड़ा 15 फीसदी और कुर्मी वोटरों की आबादी 4 से 5 फीसदी की मानी जाती थी, लेकिन इन आंकड़ों ने ये खेल बदल दिया है.
सरकार कह रही है कि अब इन आंकड़ों का इस्तेमाल विकास और योजनाओं को बनाने में किया जाएगा, लेकिन इसका सियासी फायदा नीतीश से ज्यादा लालू यादव और तेजस्वी यादव को होने वाला है.
हर चुनाव के साथ बदला ओबीसी का मूड और मजबूत होती गई बीजेपी
सीएसडीएस का आंकड़ा बताता है कि कैसे चुनाव दर चुनाव ओबीसी वोटरों का मूड बदला है और बीजेपी मजबूत होती चली गई है. 2009 के चुनाव में जहां 22 फीसदी ओबीसी वोटरों ने बीजेपी को वोट किया था. वहीं, 2014 में आंकड़ा 34 और 2019 में 44 फीसदी पहुंच गया. कांग्रेस को ओबीसी वोट 2009 में 24 फीसदी मिले थे, लेकिन 2014 और 2019 में 15-15 फीसदी से संतोष करना पड़ा.
क्षेत्रीय पार्टियों को 2009 में 54 फीसदी ओबीसी वोट मिले थे, जो 2014 में 51 और 2019 में घटकर 41 फीसदी रह गया. मतलब ये कि ओबीसी वोट बैंक पर पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी की मजबूत पकड़ बन चुकी है और अब इसी वोट बैंक में सेंध लगाकर विपक्ष बीजेपी को मात देना चाहता है.
मुस्लिम राजनीति के लिए उर्वरा भूमि हो सकती है बिहार
जहां तक बिहार का सवाल है तो हिंदुओं की आबादी 82 फीसदी और मुस्लिमों की आबादी 17.7 फीसदी यानी 18 फीसदी ही मान लीजिए. अब देखिए बिहार में 14 फीसदी यादव आबादी और 18 फीसदी मुस्लिम आबादी पर आरजेडी यानी लालू परिवार की पकड़ है.
अब इन आंकड़ों के बाद बिहार में मुस्लिम नेतृत्व और हिस्सेदारी की मांग तेजी पकड़ सकती है. खासकर कांग्रेस और एलजेपी को चाहिए कि वो मुस्लिम राजनीति को पकड़ें. 2005 के फरवरी वाले चुनाव में रामविलास पासवान ने मुस्लिम सीएम की मांग उठाई थी. हालांकि ये मांग पूरी नहीं हुई, लेकिन उसके बाद से बिहार में मुस्लिम नेतृत्व और मुस्लिम हिस्सेदारी की बात हाशिये पर है. आज आरजेडी हो या जेडीयू दोनों ही दलों में प्रभावशाली मुस्लिम नेता नहीं हैं. जो हैं वो हाशिये के नेता हैं. ऐसे में एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी के लिए बिहार में इस वक्त सियासी जमीन उर्वरा दिख रही है.
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