विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने कास्ट सर्वे के आंकड़े जारी कर सियासी माहौल में हलचल पैदा कर दी है. अब दूसरे राज्यों में भी जातीय सर्वे की चर्चा तेज हो गई है और चुनावी राज्यों में पार्टियों ने अपने एजेंडे में इसे शामिल कर लिया है. मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने कहा है कि सत्ता में आने के बाद वह सर्वे करवाएगी.


बिहार की कास्ट सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य की 13 करोड़ से ज्यादा की आबादी में ओबीसी 27.13 प्रतिशत, अति पिछड़ा वर्ग 36.01 प्रतिशत और सामान्य वर्ग की आबादी 15.52 प्रतिशत है. भूमिहार की आबादी 2.86 फीसदी, कुर्मी की जनसंख्या 2.87 फीसदी, ब्रह्माणों की आबादी 3.66 प्रतिशत, राजपूतों की आबादी 3.45 फीसदी, मुसहर की आबादी 3 फीसदी और यादवों की आबादी 14 फीसदी है. रिपोर्ट में कहा गया कि राज्य में हिंदू आबादी 81.99 फीसदी, मुसलमानों की 17.70 फीसदी, ईसाई की 0.05 फीसदी, सिखों की 0.011 फीसदी, जैन समुदाय की 0.0096 फीसदी , बौद्ध की 0.0851 फीसदी और अन्य धर्मों की जनसंख्या 0.1274 फीसदी है. वहीं, 2146 वह लोग हैं, जो किसी धर्म को नहीं मानते हैं.


आखिरी बार 1931 में जारी हुए थे आंकड़े
जातीय जनगणना का मुद्दा बहुत पुराना है. जब-जब जनगणना होती है तो इसकी भी मांग उठने लगती है. 1931 के बाद जातीय जनगणना के आंकड़े कभी जारी नहीं किए गए, जबकि 1941 में भी सर्वे हुआ, लेकिन आंकड़े जारी नहीं हो सके. फिर 1951 में इसकी मांग उठी और तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया. बाद में सरकार ने एससी-एसटी के अलावा जातिवार जनगणना नहीं कराने का फैसला किया और अब सिर्फ धर्म के आधार पर जनगणना के आंकड़े पेश किए जाते हैं.


जातीय जनगणना को किसने दी थी हवा
जातीय जनसंख्या के आधार पर सबसे पहले आरक्षण की मांग बहुजन समाज पार्टी के नेता कांशीराम ने की थी और 'जिसकी जितनी संख्याभारी, उतनी उसकी हिस्सेदारी' नारा दिया था. कई और दलों में भी अलग-अलग पिछड़ी जातियों से लोग थे और उन्होंने अगड़ी जातियों के वर्चस्व को चुनौती देकर सियासी आधार मजबूत किया. पिछड़ी जातियों के लिए शिक्षा और नौकरी में आरक्षण की मांग उठाई इसीलिए 1979 में केंद्र सरकार ने मंडल कमीशन बनाया, जिसके अध्यक्ष बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल यानी बीपी मंडल थे. उन्हीं को आरक्षण की मांग पर रिपोर्ट तैयार करनी थी. मंडल साहब ने 1980 में रिपोर्ट बनाई और उसमें पिछड़ा वर्ग को 27% आरक्षण देने की सिफारिश की. 10 साल बाद वीपी सिंह की सरकार ने इसे लागू कर दिया. मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने पर देश में बड़ा बवाल हुआ था, लेकिन जातीय जनगणना के आधार पर आरक्षण की मांग अब भी बरकरार रही. क्षेत्रीय हो या राष्ट्रीय दल, सब अपनी-अपनी सहूलियत के मुताबिक इस मुद्दे पर अपना स्टैंड लेते रहे हैं.


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