बिहार विधानसभा का कार्यकाल 29 नवंबर को 2020 को खत्म होने जा रहा है. इस महीने के अंत तक चुनाव आयोग बिहार में नई विधानसभा के गठन के लिए चुनाव का एलान कर सकता है. लेकिन 2015 की तुलना में बिहार में राजनीतिक दलों के समीकरण पूरी तरह से बदल हो चुके हैं. एक तरफ जहां नीतीश कुमार पिछले पांच साल में दो अलग अलग पार्टियों के साथ गठबंधन करके सीएम पद की शपथ ले चुके हैं, तो वहीं 2015 के नतीजों के बाद बिहार में नंबर 2 बने प्रशांत किशोर 2020 के चुनावी अखाड़ें में अभी तक कहीं नज़र नहीं आ रहे हैं.


2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में कई दिलचस्प बातें देखने को मिली थीं. 20 साल पुरानी दुश्मनी को खत्म करते हुए लालू यादव और नीतीश कुमार विधानसभा चुनाव में साथ आए. माना जाता है कि नीतीश और लालू को साथ लाने में चुनावी रणीतिकार प्रशांत किशोर का बड़ा हाथ था.


2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के प्रचार का जिम्मा प्रशांत किशोर ने संभाल रखा था. प्रशांत किशोर ने चुनाव के लिए 'बिहार में बहार है नीतीशे कुमार है' नारा दिया था. प्रशांत किशोर का यह नारा काफी कामयाब रहा और महागठबंधन को 243 में से 178 सीटों पर जीत मिली.


प्रशांत किशोर के काम से खुश होकर नीतीश कुमार ने उन्हें बिहार सरकार में शामिल किया. प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार ने बिहार सरकार में कैबिनेट रैंक का दर्जा देते हुए योजना और कार्यक्रम के सलाहाकार के तौर पर जगह दी गई. ऐसे कयास लगाए जाते हैं कि 2017 में नीतीश कुमार के महागठबंधन से अलग होकर बीजेपी के साथ सरकार बनाने के फैसले से प्रशांत किशोर खुश नहीं थे.


हालांकि इस दौरान प्रशांत किशोर ने चुनावी रणनीतिकार का काम जारी रखा. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर कांग्रेस पार्टी के प्रचार का जिम्मा संभाल रहे थे. लेकिन पार्टी महज 7 सीटों पर ही जीत दर्ज पाई. इसके बाद प्रशांत किशोर ने 2019 के आंध्र प्रदेश चुनाव में जगन मोहन रेड्डी के चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला और उन्हें जीत दिलाई. 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद प्रशांत किशोर चुनावी रणनीतिकार के तौर पर पहले शिवसेना और फिर आम आदमी पार्टी के साथ जुड़े.


2018 में हुई जेडीयू में एंट्री


प्रशांत किशोर पर भरोसा जताते हुए नीतीश कुमार ने 2018 में उनकी एंट्री जेडीयू में करवाई. जेडीयू में प्रशांत किशोर को उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया और उन्हें पार्टी में आधिकारिक तौर पर नीतीश कुमार के बाद नंबर 2 माना जाने लगा. लेकिन जल्द ही नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर में गहरे सामने आने लगे. प्रशांत किशोर ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के तहत विशेष राज्य का दर्जा हटाने के पार्टी के आधिकारिक स्टैंड के खिलाफ मोर्चा खोला.


नागरिक संसोधन बिल के मुद्दे पर प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार और एनडीए के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. प्रशांत किशोर शाहीन बाग में नागरिकता कानून में संसोधन के खिलाफ आंदोलन करने वाले लोगों के पक्ष में खड़े हुए. इसके साथ ही प्रशांत किशोर ने जामिया के स्टूडेंट्स पर लाठी चार्ज की घटना का भी विरोध किया.


इसी दौरान नीतीश कुमार और प्रशांत के बीच विवाद तब और गहरा हो गया जब नीतीश ने कहा कि अमित शाह के कहने पर प्रशांत किशोर को 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले जेडीयू में शामिल किया गया. प्रशांत किशोर ने नीतीश पर पलटवार करते हुए उन्हें झूठा तक करार दे दिया.


जनवरी 2020 में प्रशांत किशोर को जेडीयू से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. प्रशांत किशोर ने जेडीयू से बाहर होने के बाद अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने का एलान किया. हालांकि प्रशांत किशोर ने उसी वक्त साफ कर दिया कि उनकी पार्टी 2020 का विधानसभा चुनाव नहीं लडे़गी और उनकी नज़रें 2025 के विधानसभा चुनाव पर हैं.


फिलहाल प्रशांत किशोर बतौर चुनावी सलाहाकार ममता बनर्जी की टीएमसी के साथ जुड़ें हुए हैं. अभी तक 2020 के विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहे हैं. पिछले कुछ महीनों में प्रशांत किशोर के 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के लिए आरजेडी की अगुवाई वाले महागठबंधन के साथ जुड़ने के कयास लगते रहे हैं. लेकिन उन्होंने आधिकारिक तौर पर इस बारे में कभी कुछ नहीं कहा है.


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