नई दिल्लीः बिहार विधानसभा चुनाव के अंतिम नतीजे आने के बाद जेडीयू-बीजेपी खेमे में खुशी की लहर है. 15 साल की सत्ता विरोधी लहर के बावजूद जिस तरह बिहार की जनता ने एनडीए गठबंधन पर भरोसा जताया, ये कहीं न कहीं नीतीश कुमार की वो सुशासन वाली छवि ही है. नीतीश कुमार ने पहली बार सत्ता में आने के बाद ना सिर्फ अपहण, लूट और फिरौती के उद्योग को बंद किया बल्कि लोगों में एक सुरक्षा की भावना पैदा की है.


ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या जनता अभी तक लालू-राबड़ी यादव के उस शासन के खौफ से बाहर नहीं आई है, जिसे विरोधियों की तरफ से ‘जंगल राज’ बताकर आरजेडी पर हमला किया जाता है? क्या अभी भी लोगों में यह डर बना हुआ है कि कहीं लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव बिहार के मुख्यमंत्री बनते हैं तो बिहार को 15 साल पुरानी स्थिति में पहुंचा देंगे? ऐसे कई सवाल हैं जो कहीं न कहीं लोगों के मन में हैं और वे अभी भी दिल से आरजेडी को सत्ता पर बैठाने के लिए स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं.


हालांकि, इस बार के चुनाव में मास लीडर कहे जाने वाला लालू यादव पूरे चुनाव प्रचार के दौरान नदारद थे. खुद तेजस्वी ने महागठबंधन की बागडोर संभाली और सीएम चेहरे के तौर पर अपने आप को सामने कर चुना लड़ा.


लेकिन, एक तरफ अनुभवहीनता और दूसरी तरफ 15 साल तक सत्ता चलाने वाले नीतीश कुमार और उनके पक्ष में पीएम मोदी के साथ कई केन्द्रीय मंत्री समेत बीजेपी के स्टार प्रचारकों ने चुनावी हवा का रूख मोड़ा. पीएम मोदी हर रैली में तेजस्वी को ‘जंगल राज का युवराज’ कहकर संबोधित करते थे.


ऐसे में कहीं न कहीं लोगों को सुशासन के पक्ष में किया गए अपील ने दिल को छुआ. यही वजह रही कि पन्द्रह साल के भारी सत्ता विरोधी लहर के बावजूद जनता ने उन्हें चुना. हालांकि, जिस तरह के मुकाबले का सामना करना पड़ा और सीटें कम हुई उसने जरूर नीतीश खेमे में परेशानी पैदा कर दी.


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