बिहार में वोटों की गिनती में अब तक महागठबंधन की बढ़त जारी है. अगर यही हालात रहे तो तेजस्वी यादव की जीत तय है. बिहार में नीतीश कुमार की बहार का द एंड हो सकता है. कहते हैं कि बिहार का चुनाव देश का चुनाव होता है. यहॉं के चुनावी नतीजों का देश की राजनीति पर असर होता है. याद करिए बिहार के पिछले चुनाव को. देश में नरेन्द्र मोदी की लहर थी. गुजरात से निकल कर मोदी देश के प्रधान मंत्री बन चुके थे. इसके बाद जहां-जहां चुनाव हुए, बीजेपी की सरकार बनी. महाराष्ट्र में, हरियाणा में, झारखंड में. लेकिन बिहार ने मोदी के विजय रथ को पटना में ही रोक दिया. बात 2015 की है. तब लालू यादव और नीतीश कुमार साथ थे. मोदी के लिए काम करने वाले प्रशांत किशोर यानी पीके लालू और नीतीश के बीच की धुरी थे.
10 लाख नौकरी का दावा ट्रंप कार्ड साबित हुआ
इस बार लालू के लाल तेजस्वी यादव बिहार में महागठबंधन के सीएम उम्मीदवार हैं. कांग्रेस और लेफ़्ट पार्टियां भी उनके साथ हैं. नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और बीजेपी का गठबंधन है. पूर्व सीएम जीतनराम मांझी और मुकेश सहनी की पार्टी भी इसी गठबंधन में है. नीतीश कुमार पिछले पंद्रह सालों से बिहार के सीएम हैं. एनडीए के पंद्रह साल बनाम लालू राबड़ी के पंद्रह साल पर लड़ा गया. तो तेजस्वी ने पढ़ाई, कमाई, दवाई और सिंचाई का नारा दिया. उनका दस लाख लोगों के सरकारी नौकरी देने का वादा तो ट्रम्प कार्ड साबित हुआ. एनडीए लालू के जंगल राज का डर दिखाती रही.
यूपी में बीजेपी के सामने सत्ता बचाने की चुनौती
बिहार के बाद सबसे पहले बंगाल में चुनाव होगा. जहां बीजेपी और ममता बनर्जी के बीच कांटे की टक्कर है. चुनौती ममता दीदी को अपनी सरकार बचाने की है. बिहार का मामला पड़ोसी राज्य बंगाल से थोड़ा अलग है. लेकिन दूसरे पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश से बिहार की राजनीति में बहुत कुछ कॉमन है. यूपी में बीजेपी की प्रचंड बहुमत की सरकार है. पंद्रह महीनों बाद वहां विधानसभा के चुनाव होने हैं. बीजेपी के सामने चुनौती अपनी सत्ता बचाने की है. अखिलेश यादव ने अभी से अपनी तैयारी शुरू कर दी है. हर हफ़्ते दूसरी पार्टियों के नेता उनकी पार्टी में शामिल हो रहे हैं.
मायावती ने की बड़ी चूक
समाजवादी पार्टी को हराने के लिए बीजेपी के समर्थन की बात कह कर मायावती ने बड़ी चूक कर दी है. उनके इस बयान से मुस्लिम वोटरों का कन्फ़्यूज़न दूर हुआ है. विपक्ष में वोटों के बँटवारे का सीधा फ़ायदा बीजेपी को होता रहा है. आरजेडी की तरह ही यूपी में मुस्लिम और यादव वोट समाजवादी पार्टी को मिलते रहे हैं. आम तौर पर दलितों का समर्थन मायावती को मिलता रहा है. लेकिन पिछले चुनाव में पासी और वाल्मीकि बिरादरी के लोगों ने बीजेपी का साथ दिया था. मायावती के पास बस जाटव वोट ही बचे रह गए हैं. इसीलिए पिछले चुनाव में बीएसपी 19 सीटों पर सिमट गई थी.
बिहार में ब्राह्मण और भूमिहारों ने भी तेजस्वी को वोट किया
यूपी में पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को सिर्फ़ 47 सीटें मिली थीं. तब अखिलेश यादव घर के झगड़े में फँसे थे. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन था. पारिवारिक कलह के कारण अखिलेश ठीक से चुनाव प्रचार नहीं कर पाए. बीजेपी को ग़ैर यादव पिछड़ों का भरपूर समर्थन मिला. अगड़ी जातियों ने भी बीजेपी के पक्ष में मतदान किया. लेकिन यूपी में अब हालात बदल रहे हैं. दलितों के एक तबके और ब्राह्मणों को मनाना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती होगी.
बिहार में तो इस बार ब्राह्मण और भूमिहारों ने भी तेजस्वी को वोट कर दिया. ऐसा पहली बार हुआ है. लोगों ने नौजवान तेजस्वी और उनके वादों में भरोसा जताया है. अखिलेश भी ये करिश्मा कर सकते हैं. अगर वे अपने सामाजिक आधार का दायरा बढ़ाते हैं.
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