बिहार विधानसभा चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी ने अहम भूमिका निभाई है और काफी हद तक नीतीश कुमार के गेम को खराब किया है. इसकी वजह से इस उत्तर-पूर्वी राज्य में नीतीश कुमार की पार्टी को तीसरे नंबर पर धकेल दिया गया.


एक विश्लेषण में यह पता चला है कि अगर चिराग पासवान इस तरह पुरजोर तरीके से नीतीश कुमार का विरोध नहीं करते तो मुख्यमंत्री के अपने चौथे कार्यकाल के लिए मैदान में उतरे 69 वर्षीय नीतीश कुमार इस तरह से अपने सहयोगी दल बीजेपी के वादों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता.


अभी तक के जो आंकड़े सामने हैं उसके मुताबिक राज्य में एनडीए के मुख्य विपक्षी के तौर पर खड़े तेजस्वी यादव को सबसे ज्यादा सीट मिलती हुई दिख रही है. बीजेपी दूसरे नंबर पर तो वहीं नीतीश कुमार की पार्टी तीसरे नंबर पर चल रही है.  चुनाव का विश्लेषण करने पर यह पता चलता है कि नीतीश कुमार सबसे बड़े दल के रूप में होते अगर उनके हर एक उम्मीदवार को लोक जनशक्ति पार्टी से चुनौती नहीं मिलती.


कई राजनीतिक जानकारों का तो यहां तक कहना है कि बीजेपी ने जेडीयू को राज्य में अपना जूनियर पार्टनर बनाकर अपने लक्ष्य में कामयाब रही. उनका यह मानना है कि बीजेपी ने चिराग पासवान का इस्तेमाल कर सहयोगी के गढ़ में छद्म तरीके से अपनी पैठ बनाने की एक तरह से कोशिश की है.


गौरतलब है कि जिस वक्त नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, नीतीश कुमार ने उनसे दूरी बना ली थी. साल 2010 में हालत ऐसी बन गई कि नीतीश कुमार ने पटना में गुजरात के सीएम का डिनर कैंसिल कर दिया था, ताकि नरेन्द्र मोदी से अपनी दूरी दिखा पाए. आज उन्हें अगर मुख्यमंत्री बनने का यह मौका मिल रहा है तो वह बीजेपी की वजह से और प्रधानमंत्री की तरफ से व्यक्तिगत तौर अपील की गई है.


बिहार चुनाव में एनडीए के घटक दल जेडीयू 115 सीट, बीजेपी 110 सीट, वीआईपी 11 और हिन्दुस्तान अवामी मोर्चा पर चुनाव लड़ा था. महागठबंधन में आरजेडी ने 144 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. जबकि, कांग्रेस-70, सीपीआई (एमएल)-19, सीपीआई-6 और सीपीएम-4 सीटों पर चुनाव लड़ी थीं.