'इस मांग का कोई अंत नहीं है. कल को जींस-पैंट भी दे सकते हैं. परसों सुंदर जूते क्यों नहीं दे सकते हैं और अंत में जब परिवार नियोजन की बात आएगी तो निरोध भी मुफ्त में ही देना पड़ेगा.' ये कहना है एक वरिष्ठ IAS अधिकारी हरजोत कौर भामरा का. बिहार की राजधानी पटना में एक सरकारी कार्यक्रम के दौरान स्कूली छात्रा के सेनेटरी पैड की मांग के जवाब में दिया गया वरिष्ठ IAS अधिकारी का ये विवादित बयान सोशल मीडिया पर जमकर ट्रोल हो रहा है. 


एक तरफ जहां उनकी 'अमर्यादित टिप्पणी' को सीएम नीतीश कुमार और राष्ट्रीय महिला आयोग ने गंभीरता से लिया है. वहीं दूसरी तरफ एमडी हरजोत कौर भामरा ने लिखित बयान जारी कर कहा, 'कार्यक्रम में मेरे द्वारा कहे गए कुछ शब्दों से किसी बालिका या प्रतिभागी की भावनाओं को ठेस पहुंची है तो इसके लिए मैं खेद व्यक्त करती हूं.'




इस मामले के बाद एक बार फिर साफ हो गया है कि भले ही हम इक्किसवीं सदी में आ गए हो लेकिन कंडोम, सेनेटरी पैड जैसे शब्द आज भी समाज के लिए टैबू, झिझक और जिज्ञासा के तौर पर तो देखा ही जाता है. करोड़ो की आबादी वाले भारत में कितने प्रतिशत लोग कंडोम का इस्तेमाल करते हैं. 


राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey) की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में आज भी 10 पुरुषों में से एक पुरुष कंडोम का इस्तेमाल करते हैं. हैरान करने वाली बात ये है कि उसी रिपोर्ट के अनुसार 10 में से करीब चार महिलाएं गर्भधारण से बचने के लिए नसबंदी करवाती हैं. 


रिपोर्ट के अनुसार भारत के शहरों की स्थिति फिर भी गांव से बेहतर है. शहर में कंडोम का इस्तेमाल ग्रामीण भागों की तुलना में ज्यादा किया जाता है. एक तरफ जहां ग्रामीण भारत में 7.6 फीसदी पुरुष सेक्स करते वक्त कंडोम का इस्तेमाल करते हैं. वहीं दूसरी तरफ शहरी भारत में 13.6 परसेंट पुरुष कंडोम का उपयोग करते हैं, जबकि ग्रामीण भारत में 38.7 फीसदी महिलाएं और शहरी भारत में 36.3 फीसदी महिलाएं नसबंदी कराती हैं.




गर्भपात के कारण महिलाओं की मौत 


वहीं संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की विश्व जनसंख्या रिपोर्ट 2022 में की रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि हमारे देश भारत में हर रोज गर्भपात करवाने के कारण करीब 8 महिलाओं की मौत हो जाती है. वहीं, 67 प्रतिशत महिलाओं के गर्भपात में जान का जोखिम बना रहता है.  


परिवार नियोजन महिलाओं की जिम्मेदारी 


राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के रिपोर्ट में जिस तरह कंडोम इस्तेमाल करने से ज्यादा महिलाओं के नसबंदी करने के आंकड़े नजर आ रहे हैं. उससे ये साफ है कि भारत में अब भी परिवार नियोजन महिलाओं की जिम्मेदारी वाली मानसिकता है. जिसमें बदलाव की जरूरत है. NFHS-4 के आंकड़ों के अनुसार, 40 प्रतिशत पुरुष सोचते हैं कि गर्भवती होने से बचना एक महिला की जिम्मेदारी है. 


वहीं साल 2014 में इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित एक आर्टिकल के अनुसार कंडोम कम इस्तेमाल करने के कारणों में इसे खरीदते समय स्टोर में प्राइवेसी की कमी, कंडोम के साथ यौन संतुष्टि की कमी और पति का शराब पीने के बाद सेक्स करना शामिल हैं. 


द हिंदू अखबार से बातचीत में पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की मैनेजिंग डायरेक्टर पूनम मुतरेजा कहतीं हैं, “देश में कंडोम का इस्तेमाल कम किया जा रहा है इसका एक मुख्य कारण ये भी है कि परिवार नियोजन को महिलाओं की जिम्मेदारी माना जाता है. पुरुषों के लिए, सेक्स आनंद की चीज है. महिलाओं के लिए, यह अक्सर या तो बच्चे पैदा करने के बारे में होता है, या वह महीनों तक डर में होती हैं कि कहीं प्रेगनेंट ना हो जाएं."




वह कहती हैं कि परिवार नियोजन के तरीकों में पुरुष नसबंदी की हिस्सेदारी हमेशा कम रही है, ये जानते हुए भी कि पुरुषों की नसबंदी करना महिलाओं की तुलना में आसान, सुरक्षित और तेज है. लोगों का मानना ​​है कि यह उनके पौरुष को प्रभावित कर सकता है और उन्हें शारीरिक रूप से कमजोर कर सकता है, जिससे वे काम करने के लिए अयोग्य हो सकते हैं. ये मिथक और गलत धारणाएं हैं जिन्हें दूर करने की जरूरत है


दिल्ली के मयूर विहार में रहने वाली प्रिया (बदला हुआ नाम) ने ABP से बात करते हुए अपना अनुभव शेयर करते हुए कहा कि हमारी शादी को 1 साल हो गए हैं लेकिन आज भी मेरे पति यौन संबंध के दौरान कंडोम का इस्तेमाल नहीं करते. मुझे हमेशा डर लगा रहता कि कहीं मैं प्रेग्नेंट ना हो जाऊं.


उन्होंने कहा कि कंडोम' इस शब्द को परिवार और समाज के बीच झिझक के तौर पर तो देखा ही जाता है, लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए.  इसके उपयोग से अनचाहे गर्भ से भी बचा जा सकता है. इसलिए कंडोम का इस्तेमाल हर पुरुष को करना चाहिए.   


वहीं 25 साल के विवेक कहते हैं कि हम कहने को तो बहुत पढ़े लिखे हैं. लेकिन कंडोम को आज भी टैबू की तरह देखते हैं. मुझे आज भी केमिस्ट में जाकर इसे खरीदने में झिझक होती है. आसपास के लोग आपको ऐसे घूरने लगते हैं जैसे मैंने कंडोम नहीं, ड्रग्स मांग लिया हो. 


28 साल की वैशाली का कहना है कि पैड, कंडोम इन सब चीजों पर बचपन में ही खुलकर बात करनी चाहिए. पहले तो हम खुद ही इसे स्टीरियोटाइप बनाते हैं. उसके बाद ये भी कहते हैं कि कंडोम बोलने, खरीदने या इस्तेमाल करने में झिझक कैसी. 


फिल्मों से लेकर विज्ञापन तक


भारत में कंडोम, पैड जैसे शब्दों को आज भी झिझक और टैबू के नजरिये से देखा जाता है. इस्तेमाल तो दूर इसके विज्ञापन से भी लोग नजरें चुरा कर निकल जाना चाहते हैं.


पिछले महीने यानी अगस्त 2022 में का ही एक उदाहरण ले लीजिए जब दिल्ली मेट्रो में महिला सीट के ऊपर कंडोम का विज्ञापन लगा है जो कि लोगों के लिए असहजता का कारण बन गया. वहीं इस विज्ञापन की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगी और लोग डीएमआरसी को निशाने पर लेने लगे. 


इसके अलावा हाल ही में एक फिल्म आई थी 'जनहित में जारी' इस फिल्म में नुसरत एक ऐसी लड़की का किरदार निभाती नजर आ रही है जो सेल्स गर्ल है और कंडोम बेचती है. वह जिस कंपनी में काम करती हैं, वहां कोई दूसरी लड़की काम नहीं करती है. इसलिए उन्हें बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.  इस रोल के प्रमोशन के दौरान इस रोल को निभाने के लिए नुसरत को निशाने पर लिया और उनका मजाक बनाया. उन्हें काफी ट्रोलर्स का सामना करना पड़ा. 


बता दें कि साल 2017 में जारी किए गए एक नियम के अनुसार टीवी चैनलों पर सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक कंडोम के विज्ञापन दिखाने पर रोक लगा दी गई है, क्योंकि सरकार का कहना है कि ऐसे विज्ञापन बच्चों को दिखाना ठीक नहीं है. इस नियम से पहले, ‘कामसूत्र’ कंडोम का विज्ञापन भी, जिसमें मशहूर मॉडल पूजा बेदी और मार्क रॉबिन्सन ने दिखते हैं, उस पर भी सवाल उठा था.


भारत का पहला कंडोम ब्रांड ‘निरोध’


भारत में कंडोम के सबसे पहले ब्रांड का नाम ‘निरोध’ था. निरोध को हम डीलक्स निरोध (Deluxe Nirodh) के नाम से भी जानते हैं. इसका उत्पादन साल 1968 में किया गया था.  पूरे देश में परिवार नियोजन और जन्म नियंत्रण अभियान को सफल करने का सबसे बड़ा कारण निरोध ही था इन अभियानें के कारण ही 1964 में हमारे भारत की जनसंख्या वृद्धि दर 2.40 प्रतिशत हुआ करती थी जो साल 2005 में घटकर 1.80 प्रतिशत हो गई और साल 2005 के बाद अगले दस वर्षों यानी 2015 में यहीं जनसंख्या वृद्धि दर 1.26 प्रतिशत थी.