बिहार: नीतीश की घर 'वापसी', एक बार फिर थामा NDA का दामन
नीतीश कुमार ने साल 2013 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के खिलाफ एनडीए का साथ छोड़ दिया था. साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने बीजेपी को पटकनी देने के लिए लालू यादव की पार्टी आरजेडी और कांग्रेस से हाथ मिला लिया था.
पटना: बिहार के मुख्यमंत्री के पद से कल नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया. आज नीतीश कुमार सुबह दस बजे एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं, लेकिन फर्क ये होगा कि नीतीश कल तक लालू यादव की पार्टी आरजेडी के दम पर बिहार के मुख्यमंत्री थे. आज वो बीजेपी की मदद से बिहार की सत्ता पर काबिज होंगे.
20 महीने तक चला महागठबंधन का कार्यकाल, हुए ये 6 बड़े बवाल...!
नीतीश की पार्टी जेडीयू और बीजेपी चार साल पहले भी साथ ही थे. यही वजह है कि नीतीश के एक बार फिर से बीजेपी से हाथ मिलाने को उनकी घर वापसी भी कहा जा रहा है.
बिहार विधानसभा का समीकरण बिहार में विधानसभा की 243 सीट हैं और सरकार बनाने के लिए 122 सीटों की जरुरत पड़ती है. लेकिन बिहार में चुनाव से पहले कांग्रेस जेडीयू और आरजेडी ने मिलकर महागठबंधन कर लिया था. चुनाव में आरजेडी को सबसे ज्यादा 80 सीटों, जेडीयू को 71 और कांग्रेस को 27 सीटों पर जीत मिली थी और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने थे. ऐसे में अब नीतीश अब बीजेपी के साथ सरकार बनाने जा रहे हैं. अब जेडीयू की 71, बीजेपी की 53, एलजेपी और आरएलएसपी की 2-2 और हम की एक सीट मिलाकर आंकड़ा 129 पहुंच जाएगा जो बहुमत से सात सीट ज्यादा है.जानें नीतीश कुमार के इस्तीफे के पीछे की दस बड़ी वजहें
नीतीश कुमार ने साल 2013 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के खिलाफ एनडीए का साथ छोड़ दिया था. साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने बीजेपी को पटकनी देने के लिए लालू यादव की पार्टी आरजेडी और कांग्रेस से हाथ मिला लिया था.
नीतीश कुमार के इस्तीफे को कांग्रेस ने बताया निराशाजनक
नीतीश कुमार आरजेडी-जेडीयू गठजोड़ को सांप्रदायिक राजनीति का जवाब बताते थे और लालू यादव के साथ मिलकर बीजेपी-आरएसएस मुक्त भारत का नारा लगाते थे. नीतीश कुमार आज उसी बीजेपी की मदद से बिहार की सत्ता पर फिर से काबिज हो रहे हैं
बिहार में मध्यावधि चुनाव के पक्ष में नहीं बीजेपी : सुशील मोदी
नीतीश कुमार के राजनीतिक सफर में ये मोड़ कोई नई बात नहीं हैं. लोहिया के समाजवाद का दम भरने वाले नीतीश कुमार 2013 में एनडीए का साथ छोड़ने से पहले पूरे 17 साल तक उसके साथ डटे रहे थे. विचारधारा का दम भरने वाले नीतीश को उन 17 सालों के दौरान बीजेपी-आरएसएस की विचारधारा से कभी कोई परेशानी नहीं हुई.
दरअसल, सिद्धांतों की बातें करने में माहिर नीतीश कुमार सत्ता के लिए व्यावहारिक राजनीति के दांव-पेंच भी अच्छी तरह समझते हैं. इसीलिए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहने के लिए एक बार फिर से एनडीए का दामन थामने का नीतीश कुमार के फैसले ने अभी भले ही कुछ लोगों को चौंका दिया हो, लेकिन इसमें अप्रत्याशित कुछ भी नहीं है.