Bihar Politics Crisis: बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) का गठबंधन टूट चुका है. जेडीयू एक बार फिर से एनडीए में शामिल हो गई है. इस बीच जेडीयू अध्यक्ष के नीतीश कुमार के रविवार (28 जनवरी) को भारतीय जनता पार्टी (BJP) के समर्थन से एक बार मुख्यमंत्री पद की शपथ से लेने की संभावना है. 


इससे पहले नीतीश कुमार ने अगस्त 2022 में जब बीजेपी का साथ छोड़ था तो उन्होंने भगवा पार्टी पर जनता दल यूनाइटेड (JDU) को विभाजित करने की कोशिश करने का आरोप लगाया था. इसके बाद उन्होंने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई. इसके तीन महीने बाद नीतीश कुमार ने कहा कि आरजेडी नेता और बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के अभियान का नेतृत्व करेंगे.


हालांकि, जनवरी 2024 में जेडीयू ने एक बार फिर पलटी मारी और फिर से बीजेपी से हाथ मिला लिया. इससे पहले नीतीश और तेजस्वी ने पटना में गणतंत्र दिवस समारोह में दूरी बनाए रखी, जिसके बाद सीएम के फिर से अपने सहयोगियों को छोड़ने और पक्ष बदलने की अटकलें लगने लगीं. ऐसे में सवाल उठता है कि अगर नीतीश को एनडीए के साथ ही जाना था तो वह 2022 में इससे अलग क्यों हुए थे?

अगस्त 2022 में नीतीश ने एनडीए क्यों छोड़ा?
दरअसल, पिछले चुनाव के बाद बिहार में जेडीयू सिकुड़ गई थी और अपनी सहयोगी बीजेपी से भी पीछे रह गई थी. नीतीश विधानसभा में अपनी पार्टी की सीटें घटने से बीजेपी से नाराज थे. गौरतलब है. 2015 विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने जहां 71 सीटों पर दर्ज की थी. वहीं, 2019 में वह 43 सीटों पर सिमट गई थी. दूसरी तरफ बीजेपी की सीटें 53 से बढ़कर 74 हो गईं. 2019 में 75 सीटें पाने आरजेडी के बाद बीजेपी राज्य में नंबर दो पार्टी बन गई थी.


एलजेपी पर लगाया वोट काटने का आरोप
इसके लिए नीतीश कुमार ने एनडीए में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के नेता चिराग पासवान को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि जहां-जहां जेडीयू उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे, वहां ने एलजेपी के कैंडिडेट भी मैदान में उतार दिए. जेडीयू का मानना था कि चिराग पासवान ने उनकी पार्टी के वोट काटने और उनके उम्मीदवारों को हराने के लिए बीजेपी के प्रॉक्सी के रूप में काम किया था. भले ही एलजेपी ने सिर्फ एक सीट जीती, लेकिन उसने जेडीयू के वोट बैंक में सेंध लगाई.


ऐसा कहा जाता है कि नीतीश कुमार तत्कालीन डिप्टी सीएम रेनू देवी और तारकिशोर प्रसाद को लेकर सहज नहीं थे. साथ ही बीजेपी नेता सुशील मोदी के साथ भी उनका तालमेल उतना अच्छा नहीं था. इसके अलावा नीतीश कुमार का मानना था कि बीजेपी केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह का इस्तेमाल करके पार्टी को विभाजित कर सकती है. इसको लेकर भी नीतीश काफी सावधान थे.


एनडीए में वापस क्यों जा रहे हैं नीतीश?
जेडीयू के सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस, आरजेडी और इंडिया अलायंस के प्रति नीतीश का मोहभंग हो गया है. वह वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में असहज महसूस कर रहे हैं. कहा जा रहा है कि जेडीयू के कम से कम सात सांसद बीजेपी के संपर्क में हैं. ये सांसद 2019 में एनडीए के संयोजन के कारण जीते थे. 


पार्टी टूटने का डर
इतना ही नहीं पूर्व पार्टी प्रमुख राजीव रंजन सिंह को छोड़कर जेडीयू के अधिकांश टॉप लीडर बीजेपी के साथ गठबंधन के पक्ष में थे. ऐसे में नीतीश को यह अहसास हो गया था कि अगर उन्होंने कार्रवाई नहीं की तो पार्टी टूट सकती है. इससे पहले नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव के साथ बढ़ती निकटता के चलते ललन सिंह से राष्ट्रीय अध्यक्ष पद वापस ले लिया था.


इंटरनल सर्वे के नतीजों से बढ़ी चिंता
जेडीयू ने 2019 के लोकसभा चुनावों में एनडीए के साथ  चुनाव लड़ा था और 17 सीटों में से 16 पर जीत हासिल की थी. वहीं, इस बार पार्टी के आंतरिक सर्वे में उत्साहजनक परिणाम नहीं आने के कारण नीतीश ने शायद यह अनुमान लगाया कि उनकी पार्टी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अपनी जीत की संभावनाओं में सुधार कर सकती है.  


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