Bihar Politics: 'बिहार में बहार हो...नीतीश कुमार हो', 2015 के चुनाव में गाया गया ये गीत नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की राजनीति का सदाबहार गीत बन चुका है. इस गीत को नीतीश के चुनावी कैंपन का हिस्सा बनाने का श्रेय चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) को जाता है. अब एक बार फिर बिहार की सियासत में प्रशांत किशोर यानी पीके के नाम की चर्चा होने लगी है. पटना के पॉलिटिकल कॉरिडोर में कानाफूसी होने लगी है कि क्या पीके और नीतीश फिर से गले लगने वाले हैं और इस कानाफूसी को पहली हवा दी है राज्यसभा के सांसद रहे पवन वर्मा ने.


सूत्रों के मुताबिक पूर्व राजदूत पवन वर्मा ने पटना में नीतीश कुमार से मुलाकात करने के बाद सोमवार की शाम को प्रशांत किशोर से भी मुलाकात की थी. सूत्रों ने बताया वर्मा ने प्रशांत किशोर से ये मुलाकात नीतीश कुमार के दूत के तौर पर की है. ये वही पवन वर्मा है जिन्हें नीतीश ने राज्यसभा भेजा था और 2019 के चुनाव से पहले प्रशांत किशोर के साथ ही पार्टी से निकाला था. 


क्या फिर साथ आएंगे पीके और नीतीश कुमार?


अब आपके मन में सवाल होगा कि प्रशांत किशोर पर नीतीश कुमार डोरे क्यों डाल रहे हैं? इस सवाल का जवाब तलाशने से पहले अतीत के कुछ पन्नों को पलटकर देखना जरूरी है. प्रशांत किशोर का एक बयान उनके और नीतीश की दूरी की वजह बना था. उन्होंने कहा था कि हम किसी को पीएम सीएम बनवा सकते हैं. ये बयान प्रशांत किशोर ने 2019 के चुनाव से पहले जेडीयू उपाध्यक्ष की हैसियत से मुजफ्फरपुर में दिया था.


इस बयान को लेकर जेडीयू के अंदर काफी बवाल मचा था. यहां गौर करने वाली बात ये है कि उस वक्त जेडीयू में नीतीश कुमार के नीचे दो खेमे बन गए थे. पहला कैंप प्रशांत किशोर का था और दूसरा कैंप आरसीपी सिंह का. तब प्रशांत किशोर पार्टी के उपाध्यक्ष थे और आरसीपी सिंह संगठन महासचिव, दोनों पार्टी पर पकड़ मजबूत करने के लिए अंदरुनी तौर पर भिड़े रहते थे. पटना में पार्टी के दो पावर सेंटर बन गए थे और उस पावर गेम में तब प्रशांत किशोर को आरसीपी सिंह ने निपटा दिया था. आरसीपी सिंह और नीतीश कुमार के रिश्ते में खटास आ चुकी है जिसके बाद आरसीपी सिंह अब पार्टी भी छोड़ चुके हैं, तो नीतीश कुमार को प्रशांत किशोर की जरूरत महसूस हो रही है. 


क्यों है प्रशांत किशोर की जरूरत?


अब उस सवाल का जवाब जानिये कि आखिर नीतीश को पीके यानी प्रशांत किशोर की जरूरत क्यों है. बीजेपी से अलग होने के बाद नीतीश कुमार की नजर पीएम की कुर्सी पर है. मोदी के खिलाफ नीतीश विपक्षी कुनबे को एकजुट करने में जुटे हैं. अब नीतीश कुमार को राष्ट्रीय स्तर पर छवि निखारने वाले एक रणनीतिकार की जरूरत है और प्रशांत किशोर उस जरूरत को पूरा कर सकते हैं. इतना ही नहीं प्रशांत किशोर के क्षेत्रीय क्षत्रपों के साथ अच्छे रिश्ते हैं और नीतीश कुमार उनके जरिये इस रिश्ते को भुना सकते हैं.जहां तक चुनावी रणनीतिकार के तौर पर प्रशांत किशोर के रिपोर्ट कार्ड का सवाल है तो 2017 के यूपी चुनाव को छोड़ दीजिए तो पीके लगभग हर चुनाव में रणनीति के राजा रहे हैं.


पीके का चुनावी रिकॉर्ड


2014 के लोकसभा चुनाव में पास 
2015 बिहार विधानसभा चुनाव में पास
2017 पंजाब चुनाव में पास
2018 तेलंगाना चुनाव में पास
2019 आंध्र चुनाव में पास
2020 दिल्ली चुनाव में पास
2021 बंगाल चुनाव में पास 
2021 तमिलनाडु चुनाव में पास 


पिछले दिनों प्रशांत किशोर कांग्रेस में जाने की तैयारी कर चुके थे, लेकिन वहां बात नहीं बनी तो उन्होंने अपना संगठन बनाकर बिहार को सियासी कर्मभूमि बनाने का फैसला लिया. अब बिहार की राजनीति 360 डिग्री घूम चुकी है और यही वजह है कि नीतीश कुमार को प्रशांत किशोर पर डोरे डालने की जरूरत महसूस हो रही है. वैसे दो दिन पहले ही प्रशांत किशोर की इस पर जो राय थी वो भी देश को देखने की जरूरत है. 


नीतीश कुमार पर निशाना साध रहे प्रशांत किशोर


पीके ने कहा था कि जिस नीतीश के लिए मैंने नारा दिया था वो अब पहले वाले नीतीश नहीं हैं. बिहार में बहार भी नहीं है, लेकिन नीतीश कुमार जरूर कुर्सी पर हैं. इसलिए मैंने कहा कि उन्हें फेविकोल का ब्रांड एम्बेसडर बना देना चाहिए. मैं जहां भी जा रहां हूं वहां नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का विरोध हो रहा है. पीके (Prashant Kishor) लगातार नीतीश पर निशाना साध रहे हैं, लेकिन कहते हैं न कि राजनीति में न कोई स्थायी दोस्त होता है और ना ही कोई स्थायी दुश्मन, जरूरत के हिसाब से रिश्ते बनते और बिगड़ते रहते हैं. अब उसी जरूरत के हिसाब के नीतीश और पीके के रिश्ते भी बदलने वाले मोड में दिखने लगे हैं. 


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