Explainer: नीतीश के नाता तोड़ने के बाद क्या BJP के लिए गठबंधन दलों को साथ रखना मुश्किल होगा? घटती जा रही NDA दलों की संख्या
NDA Politics: एनडीए (NDA) से सहयोगी दलों के नाता तोड़कर जाने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. जेडीयू से पहले टीडीपी (TDP), शिवसेना और अकाली दल ने भी मतभेदों के चलते नाता तोड़ लिया था.
Bihar Nitish Kumar Politics: बिहार में सियासी भूचाल आने के बाद नई सरकार के गठन को लेकर तैयारियां भी शुरू हो गई हैं. बीजेपी से अपनी राह अलग करने के बाद नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. नीतीश कुमार अब एक बार फिर से अपने पुराने सहयोगी और लालू यादव की पार्टी आरजेडी (RJD) से दोस्ती की तरफ बढ़ रहे हैं. पूरी संभावना है कि नीतीश कुमार जल्द ही आरजेडी के समर्थन से नई सरकार बनाएंगे. इस बीच सियासी गलियारों में सवाल उठने लगे हैं कि एनडीए (NDA) के घटक दल गठबंधन से अलग क्यों होते जा रहे हैं.
एनडीए (NDA) से सहयोगी दलों के नाता तोड़कर जाने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. कई मसलों पर बीजेपी से मतभेदों के चलते नीतीश कुमार की पार्टी ने भी एनडीए का साथ छोड़ दिया है. बीजेपी पर जेडीयू को कमजोर करने की साजिश के आरोप भी लगाए जा रहे हैं.
शिवसेना, अकाली और अब जेडीयू
बिहार में बीजेपी और जेडीयू की दोस्ती टूटने के बाद एनडीए कुछ और कमजोर हुआ है. अबतक एनडीए के कई सहयोगी गठबंधन को छोड़कर बाहर आ चुके हैं. पंजाब में बीजेपी जिस शिरोमणि अकाली दल के साथ पिछले 30 सालों से दोस्ती निभा रही थी, वो भी खत्म हो गई है. शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बीजेपी से रिश्ता तोड़कर एनसीपी और कांग्रेस के साथ दोस्ती की ऐतिहासिक कहानी लिखी. हालांकि इस दोस्ती को बीजेपी ने एकनाथ शिंदे के जरिए शिवसेना को ही तोड़ दिया. 2014 में हरियाणा जनहित कांग्रेस ने एनडीए का दामन छोड़ दिया था.
तमिलनाडु के MDMK ने छोड़ दिया था साथ
साल 2014 में ही तमिलनाडु की MDMK ने भी एनडीए का साथ छोड़ दिया था. 2016 में ही केरल की रेवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी ने एनडीए का दामन छोड़ दिया था. 2017 में महाराष्ट्र की सहयोगी पार्टी 'स्वाभिमान पक्ष' और 2018 में बिहार की सहयोगी दल हिंदुस्तान अवाम मोर्चा ने खुद को इस गठबंधन से अलग कर लिया. हालांकि बाद में मांझी सरकार में शामिल हुए थे. नगालैंड में बीजेपी ने नगा पीपुल्स फ्रंट के साथ कई सालों की दोस्ती तोड़ दी थी बाद में ये फिर एनडीए का हिस्सा बनी.
टीडीपी और सुहेलदेव ने भी तोड़ लिया था नाता
आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और टीडीपी (TDP) प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू से भी बीजेपी की दोस्ती अधिक वक्त तक नहीं चल सकी. साल 2018 में नायडू ने बीजेपी से दोस्ती तोड़ ली थी. उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख ओमप्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) ने बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था और योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में गठित पहली सरकार में मंत्री पद की शपथ भी ली थी. बाद में राजभर ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ दिया था. अब जेडीयू भी शिरोमणि अकाली दल और शिवसेना की राह पर चल पड़ी है. एक-एक कर ज्यादातर विश्वस्त और पुराने साथी बीजेपी का साथ छोड़कर गठबंधन से बाहर हो चुके हैं.
क्या NDA का मतलब अब सिर्फ बीजेपी है?
2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से अब तक कई साथी एनडीए छोड़कर जा चुके हैं. बिहार में बीजेपी से जेडीयू के नाता तोड़ने के बाद राजनीति गलियारों में इस बात की चर्चा होने लगी है कि क्या अब एनडीए का मतलब बीजेपी ही है? सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या बीजेपी अपने सहयोगियों को तवज्जो नहीं देती है. क्या अब एनडीए में सिर्फ बीजेपी की ही चलती है? ऐसे कई सवाल हैं जिससे एनडीए के होने के मायने को कम करते हैं.
गठबंधन दलों को साथ रखना क्यों मुश्किल?
सवाल ये भी हैं कि क्या अब बीजेपी (BJP) अपना एनडीए (NDA) में शामिल दलों के साथ गठबंधन धर्म नहीं निभा रही है. एनडीए से नाता तोड़ने के पीछे सामंजस्य का अभाव बड़ी वजह बताई जा रही है. गठबंधन से नाता तोड़ने वाली पार्टियों के नेता और राजनीति के जानकार भी ये मानते हैं कि अब वाजपेयी और आडवाणी के नेतृत्व वाली बीजेपी नहीं रह गई है. पुरानी बीजेपी और आज के मोदी के जमाने वाली बीजेपी में काफी फर्क आया है. साल 2024 में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) होने हैं. ऐसे में एनडीए के कमजोर होने से सियासी नुकसान भी संभव है.
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