नई दिल्ली: लालू यादव के लाल तेजस्वी यादव अब अपने पिता की छाया से मुक्ति चाहते हैं. वे अपनी और अपनी पार्टी आरजेडी की एक नई इमेज गढ़ना चाहते हैं. इसीलिए नए नारे रचे जा रहे हैं. नई रणनीति बन रही है. आरजेडी के पोस्टरों से लालू यादव की विदाई हो चुकी है. पोस्टर पर तेजस्वी ही नज़र आते हैं. वो भी एक युवा और नई सोच वाले नेता के तौर पर. नई सोच, नया बिहार, नया बिहार, अबकी बार. इसी नारे के साथ तेजस्वी यादव चुनावी मैदान में उतर रहे हैं.


फूंक फूंक कर चुनावी प्रचार में आगे बढ़ रहे हैं तेजस्वी यादव
बात सिर्फ़ नारे और छवि बदलने की ही नहीं है. तेजस्वी यादव फूंक फूंक कर चुनावी प्रचार में आगे बढ़ रहे हैं. वे पीएम नरेन्द्र मोदी पर हमला करने से बच रहे हैं. दिल्ली के चुनाव में अरविंद केजरीवाल के लिए ये फ़ार्मूला बड़ा काम आया. तेजस्वी लगातार नीतीश कुमार पर हमले कर रहे हैं. वे ग़रीबी, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, अपराध और शराब की अवैध बिक्री के मुद्दे उठा रहे हैं. वे हर उस मुद्दे से बच रहे हैं जिससे साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण हो सकता है.


वे जानते हैं ऐसा होने पर नुक़सान उनका ही है. वे ये भी जानते हैं कि मुस्लिम समाज का वोट उन्हें ही मिलने वाला है. फिर बीजेपी के जाल में फंसने का कोई मतलब नहीं है. उन्हें ख़तरा असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी से भी है. जो सीमांचल में आरजेडी का वोट काट सकती है.


पिछले पंद्रह सालों में बिहार में वोटरों की एक नई पीढ़ी खड़ी हो गई है
तेजस्वी यादव को जेडीयू लालू के पंद्रह साल के बहाने घेरने की कोशिश में है. लेकिन तेजस्वी इस बात पर बिहार की जनता से माफ़ी मांग चुके हैं. उनकी नज़र उस फ़्लोटिंग वोट पर है जो नीतीश सरकार से नाराज़ है. ख़ास कर युवाओं पर. वे पंद्रह साल की ऐंटी इनकमबेंसी का पूरा फ़ायदा उठाने की फ़िराक़ में हैं. नीतीश भी ये बात बखूबी जानते हैं. इसीलिए तो उन्होंने पार्टी के नेताओं को जनता के बीच जाकर लालू के जंगलराज के बारे में बताने को कहा.


पिछले पंद्रह सालों में बिहार में वोटरों की एक नई पीढ़ी खड़ी हो गई है. उसने सिर्फ़ लालू यादव को देखा सुना भर है. लेकिन उनके राज के बारे में नहीं जानते. तेजस्वी यादव जान बूझ कर इस तबके के लोगों की बात उठाते हैं. उनकी नौकरी की मांग करते हैं. उनके सुरक्षा की बात करते हैं.


तेजस्वी भी आजमाना चाहते हैं ये हिट फ़ार्मूला
अपनी छवि बदलने के साथ साथ तेजस्वी यादव अति पिछड़ों पर भी काम कर रहे हैं. वो भी बिना जाति बिरादरी के बहस के. वे किसी भी हाल में सन ऑफ मल्लाह यानी मुकेश साहनी का साथ नहीं छोड़ना चाहते हैं. आपको याद होगा 2012 के यूपी चुनाव में अखिलेश यादव ने भी यही काम किया था. उनके पिता मुलायम सिंह यादव कंप्यूटर का विरोध करते थे. वे अंग्रेज़ी का विरोध करते थे. लेकिन अखिलेश ने तो पार्टी के घोषणा पत्र में ही स्टूडेंट के फ़्री में लैपटॉप देने की बात कह दी. उनका ये फ़ार्मूला हिट रहा. समाजवादी पार्टी चुनाव जीत गई और अखिलेश मुख्य मंत्री बन गए. तेजस्वी भी इसी हिट फ़ार्मूले को आज़माना चाहते हैं.


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