Bilkis Bano Case Convicts: बिलकिस बानो गैंगरेप मामले (Bilkis Bano Gangrape Case) के 11 दोषियों (Convicts) को अच्छे बर्ताव के आधार पर इस साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया था. इन्हें आजीवन कारावास (Life Imprisonment) की सजा मिली थी.


सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में गुजरात सरकार (Gujarat Govt) की ओर से दिए गए एक हलफनामे (Affidavit) के मुताबिक, जेल से रिहा किए जाने से पहले 11 में से 10 दोषी पैरोल (Parole), फरलो (Furlough) और अस्थायी जमानत (Temporary Bail) पर 1000 दिन से ज्यादा जेल से बाहर रहे थे. 11वां दोषी 998 दिन जेल बाहर रहा. इस हलफनामे के अनुसार, 58 वर्षीय रमेश चंदाना नाम का दोषी सबसे ज्यादा 1,576 दिन के लिए जेल से बाहर था. इसमें 1,198 दिन की पैरोल और 378 दिन की फरलो शामिल है. 


पैरोल और फरलो को लेकर नियम क्या है?


अल्पकालिक कारावास के मामले में एक विशेष कारण के लिए आम तौर पर अधिकतम एक महीने की पैरोल दी जाती है जबकि एक लंबी अवधि की सजा में एक निर्दिष्ट न्यूनतम अवधि भुगतने के बाद आमतौर पर अधिकतम 14 दिनों के लिए फरलो दी जाती है. फरलो मांगने के लिए किसी कारण की आवश्यकता नहीं होती है. यह कैदी को कोई कानूनी अधिकार प्रदान नहीं करती है.


गुजरात सरकार ने दोषियों को रिहा करने का बताया कारण


इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सोमवार (17 अक्टूबर) को गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसने बिलकिस बानो केस के 11 दोषियों को छोड़ने का फैसला किया क्योंकि वे जेल में 14 साल या इससे ज्यादा की सजा काट चुके थे और इस दौरान उनका बर्ताव अच्छा था. केंद्र ने भी इसकी मंजूरी दी थी. 11 दोषियों में रमेश चंदाना, जसवंतभाई नाई, गोविंदभाई नाई, शैलेष भट्ट, राधेश्याम शाह, बिपिन चन्द्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप मोरधिया, बाकाभाई वहोनिया, राजूभाई सोनी और मितेश भट्ट शामिल हैं.




यहां से हुआ था रिहाई का विरोध


कैदियों को सजा में दी गई छूट को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में गुजरात सरकार ने अपने हलफनामे में यह भी कहा कि मार्च 2021 में पुलिस अधीक्षक, सीबीआई, मुंबई की विशेष अपराध शाखा सीबीआई के विशेष सिविल जज और ग्रेटर बॉम्बे सत्र न्यायालय ने कैदियों की जल्द रिहाई का विरोध किया था.


तीन साल की बेटी की भी कर दी गई थी हत्या


3 मार्च 2002 दो को बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप किया गया था. उनके परिवार के 14 सदस्यों की हत्या कर दी गई थी, जिनमें उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी. गुजरात दंगों के दौरान दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका में जब इस वारदात को अंजाम दिया गया था तब बिलकिस बानो गर्भवती थीं. 


रिहाई से पहले कौन सा दोषी कितने दिन रहा बाहर?


रमेश चंदाना ने अपनी रिहाई से पहले चार साल से ज्यादा समय तक पैरोल और फरलो पर जेल के बाहर काटा. उसे एक 14 दिन की फरलो दी गई थी, जिसमें उसने 112 दिन की देरी से जेल में सरेंडर किया यानी जनवरी से जून 2015 के बीच वह 136 दिन की फरलो पर जेल से बाहर रहा. 


बाकाभाई वहोनिया ही हजार दिन से नीचे था जेल से बाहर


गुजरात सरकार के हलफनामे के आंकड़ों के अनुसार, यह स्पष्ट है कि 11 दोषियों में से हर एक ने औसतन 1,176 दिन पैरोल, फरलो और टेंपरेरी बेल के नाम पर जेल से बाहर बिताए, उनमें 57 वर्षीय बाकाभाई वहोनिया ही केवल 998 दिन जेल से बाहर रहा था. 


इन दोषियों ने भी देरी से किया सरेंडर


58 वर्षीय राजूभाई सोनी ने सितंबर 2013 और जुलाई 2014 के बीच 197 दिनों की देरी से सरेंडर किया, वह कुल 1,348 दिनों के लिए जेल से बाहर रहा था. सोनी को नासिक की जेल से 90 दिन की पैरोल मिली थी, देर से सरेंडर करने के कारण यह 287 दिन तक चली. 11 दोषियों में सबसे उम्रदराज 65 वर्षीय जसवंत नाई 1,169 दिनों के लिए जेल से बाहर था, जिसमें सरेंडर करने के लिए 75 दिन की लेटलतीफी शामिल है. 


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