बिलकिस बानो केस: 11 दोषियों को छोड़ने के गुजरात सरकार के फैसले पर अब 29 नवंबर को एससी में होगी सुनवाई
गुजरात सरकार ने इस मामले में पीआईएल दाखिल किए जाने का विरोध करते हुए गुजरात सरकार ने कहा है कि यह कानून का दुरुपयोग है. किसी बाहरी व्यक्ति को आपराधिक मामले में दखल देने का अधिकार कानून नहीं देता है.
Bilkis Bano Case: बिलकिस बानो गैंगरेप केस में दोषियों की रिहाई मामले में दाखिल की गई जनहित याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है. इस मामले में दाखिल की गई पीआईएल (PIL) के जवाब में गुजरात सरकार (Government Of Gujarat) ने सोमवार को अपना हलफनामा दायर किया था. मंगलवार (18 अक्टूबर) को इस सुनवाई में याचिकाकर्ता ने और समय की मांग की है. इस मामले से जुड़ी अगली सुनवाई 29 नवंबर को होगी.
सोमवार को एससी में दायर हलफनामे में सरकार ने कहा था कि बिलकिस रेप केस में 11 आरोपियों की रिहाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ध्यान में रखकर की गई है और रिहाई से पहले इस मामले में केंद्र सरकार से भी अनुमति ली गई थी. गुजरात सरकार ने कहा कि जेल में दोषियों का व्यवहार अच्छा था.
एससी में क्या बोली गुजरात सरकार?
राज्य सरकार ने बताया है कि इस साल 13 मई को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि इन लोगों की रिहाई के लिए 1992 में बनी पुरानी नीति लागू होगी. उस नीति में 14 साल जेल में बिताने के बाद उम्र कैद से रिहा करने की व्यवस्था है. यह सभी लोग 14 साल से अधिक जेल में रहे हैं. जेल में उनका आचरण अच्छा रहा है. इसलिए, ज़रूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन करने के बाद इनकी रिहाई की गई.
गुजरात सरकार ने इस मामले में पीआईएल दाखिल किए जाने का विरोध करते हुए गुजरात सरकार ने कहा है कि यह कानून का दुरुपयोग है. किसी बाहरी व्यक्ति को आपराधिक मामले में दखल देने का अधिकार कानून नहीं देता है.
'नहीं प्रभावित हो रहे मौलिक अधिकार'
गुजरात सरकार ने कहा था कि इस मामले में सुभाषिनी अली और दूसरे याचिकाकर्ताओं का कोई मौलिक अधिकार प्रभावित नहीं हो रहा, जिससे वह PIL दाखिल कर सकें. याचिकाकर्ताओं का जुड़ाव राजनीतिक दलों से है. उन्होंने राज्य सरकार पर गलत आरोप लगाए हैं. यह तक कहा है कि इन लोगों को 'आज़ादी का अमृत महोत्सव' कार्यक्रम के तहत छोड़ा गया है. जबकि, रिहाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन कर हुई है.
क्या है मामला?
15 अगस्त को बिलकिस मामले के दोषियों की रिहाई हुई थी. सीपीएम नेता सुभाषिनी अली, सामाजिक कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा, रेवती लाल और तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा ने इस रिहाई से जुड़े गुजरात सरकार के आदेश को रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की. 25 अगस्त को तत्कालीन चीफ जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस अजय रस्तोगी और विक्रम नाथ की बेंच ने इस पर नोटिस जारी किया था. कोर्ट ने 2 हफ्ते बाद मामले की सुनवाई की बात कही.