Bilkis Bano Review Petition: सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार (17 दिसंबर) को बिलकिस बानो की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी. बिलकिस बानो के वकील ने इसे झटका नहीं माना है. बिलकिस की वकील शोभा गुप्ता ने कहा कि वो अभी आदेश की कॉपी पढ़ेंगी. उन्होंने कहा, 'हमनें अभी हौंसला नहीं खोया है, हम अब भी आशांवित हैं.'


बिलकिस की वकील शोभा गुप्ता का कहना है कि सीआरपीसी 432 के मुताबिक जिस राज्य में दोषियों को सजा सुनाई गई है, उसी राज्य सरकार के पास दोषियों को छोड़ने का अधिकार है. उन्होंने कहा, "इस मामले में मुंबई की विशेष जज ने फैसला सुनाया है. इसलिए, क्षेत्राधिकार महाराष्ट्र सरकार का होना चाहिए. ये सिर्फ 11 दोषियों की रिहाई के आदेश की समीक्षा करने के लिए दायर की गई याचिका का विषय नहीं है."


'एक रिट याचिका भी दायर की थी'


वकील शोभा गुप्ता ने बताया, "कोर्ट ने समीक्षा से संबंधित याचिका को खारिज किया है. रिहाई को चुनौती देने के लिए एक अलग याचिका है. ये याचिकाकर्ता के लिए कोई झटका नहीं है. अभी हमें आदेश नहीं मिला है. मुझे केवल न्यायालय की रजिस्ट्री से एक ईमेल मिला है, जिसमें आदेश के निष्कर्ष का सारांश दिया गया है."


बिलकिस के पति को SC पर भरोसा


सुप्रीम कोर्ट से मिले झटके के बाद बिलकिस बानो के पति याकूब रसूल ने कहा कि परिवार 'कानूनी पहलुओं' को समझने की कोशिश कर रहा है. याकूब रसूल ने कहा, "दोषियों की छूट और समय से पहले रिहाई से हम दुखी हैं. यह ऐसी चीज नहीं है जिससे हम शांति बना सकें लेकिन हमें अदालत पर भरोसा है. हमने इसे चुनौती देते हुए याचिका दायर की है. हमारे वकील ने बताया है कि उस पर जनवरी के पहले सप्ताह में सुनवाई होगी." 


SC ने 13 मई को सुनाया था फैसला


वहीं 13 मई को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अजय रस्तोगी और विक्रम नाथ की बेंच ने एक दोषी राधेश्याम शाह की याचिका पर फैसला देते हुए कहा था कि उसे सज़ा 2008 में मिली थी, इसलिए रिहाई के लिए 2014 में गुजरात में बने कड़े नियम लागू नहीं होंगे. 1992 के नियम लागू होंगे. गुजरात सरकार ने 15 अगस्त को इसी आधार पर 14 साल की सजा काट चुके 11 लोगों को रिहा किया था.


सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा


सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा था, "हमने समीक्षा याचिका के साथ-साथ इसमें याचिकाकर्ता की ओर से अपनी दलीलों के समर्थन में पेश कागजात और संदर्भ के तौर पर शामिल फैसलों का अवलोकन किया. हमारी राय में, रिकॉर्ड में ऐसी कोई स्पष्ट त्रुटि नहीं दिखती है, जो 13 मई, 2022 के निर्णय की समीक्षा का आधार बने. जहां तक बात उन फैसलों की है जिन पर भरोसा जताया गया है तो इसमें कोई समीक्षा याचिकाकर्ता के लिए मददगार साबित नहीं होता है." 


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