क्या है नया एससी/एक्ट जिससे नाराज हैं दलित चिंतक और नेता?
इसी साल 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके गोयल और जस्टिस उदय उमेश ललित की पीठ ने एससी/एसटी एक्ट में बड़ा बदलाव करते हुए आदेश दिया था कि किसी आरोपी को दलितों पर अत्याचार के मामले में प्रारंभिक जांच के बिना गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है. पहले केस दर्ज होने के बाद गिरफ्तारी का प्रावधान था. आदेश के मुताबिक, अगर किसी के खिलाफ एससी/एसटी उत्पीड़न का मामला दर्ज होता है, तो वो अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकेगा. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दलितों ने सड़कों पर आंदोलन किया था. जिसमें कई लोगों की मौत हो गई थी.
एनडीए के सहयोगी दलों ने भी जताई थी कोर्ट के फैसले पर नाराजगी
इतना ही नहीं, कांग्रेस, बसपा, सपा, टीएमसी, आरजेडी समेत अन्य विपक्षी दलों और दलित चिंतकों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लेकर मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा किया था. इनका कहना था कि सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने मजबूती से पक्ष नहीं रखा. जिसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला दिया और कानून कमजोर हुआ. विपक्षी दलों के साथ एनडीए के सहयोगी दलों लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी), आरपीआई और बीजेपी के कई दलित सांसदों ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर नाखुशी जताई थी और अपनी सरकार से कहा था कि वो अध्यादेश लाए.
इसी साल दो अप्रैल को देशभर में हुए थे आंदोलन
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ दो अप्रैल को देशभर में आंदोलन हुए थे. इस दौरान बड़े पैमाने पर हिंसक वारदातें भी हुई थी. जिसमें कई दलित आंदोलनकारियों को जान गंवानी पड़ी थी. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर विपक्षी दलों और बीजेपी के कई दलित सांसदों ने कहा कि इससे दलितों का उत्पीड़न बढ़ेगा. आंदोलन के बाद मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी. लेकिन कोर्ट ने इसपर विचार करने से इनकार कर दिया था.
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