नई दिल्ली: मौजूदा सेना अध्यक्ष बिपिन रावत को पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ चुना गया है. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) का एलान खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से किया था. इस पद के लिए प्रभावी नेतृत्व की जरूरत थी. आज की तारीख में सेना अध्यक्ष बिपिन रावत के प्रभाव का कोई सानी भी तो नहीं है.


बिपिन रावत का चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बनना अपने आप में बहुत बड़ी खबर है. वो इसलिए कि क्योंकि 72 बरस के लोकतंत्र को पहली बार वो पद मिला है. आसान भाषा में कहें तो सीडीएस के तौर पर बिपिन रावत तीनों सेनाओं के प्रमुखों के ऊपर काम करेंगे. सेना प्रमुख के पद से बिपिन रावत 31 दिसंबर को रिटायर हो रहे हैं तो उससे पहले ही प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की अप्वाइंटिंग कमेटी ने उन्हें सीडीएस अप्वाइंट कर दिया.


आखिर बिपिन रावत को ही क्यों चुना गया?


सेना अध्यक्ष के तौर पर बिपिन रावत के सामने चुनौतियां बहुत थीं. सबसे बड़ी चुनौती तो कश्मीर घाटी में अमन और चैन लाना था. घाटी को आतंकी बंदूकों के साए से मुक्त करना था. भटके हुए नौजवानों को मुख्यधारा में लाया जाए. बतौर सेना अध्यक्ष बिपिन रावत ने कश्मीर में ऑपरेशन ऑल आउट चलाया. ऑपरेशन ऑल आउट में 2017 से अब तक 633 आतंकी मारे गए. कश्मीर में आतंकियों का संहार किया तो सीमा पार पाकिस्तान को भी ललकार दिया. पाकिस्तान को एक तरफ अपनी ताकत का एहसास कराया तो दूसरी तरफ चीन को भी चेतावनी देने से पीछे नहीं हटे.


2017 का डोकलाम विवाद यादों की तहखाने में धुंधला ही सही लेकिन होगा तो जरूर ही. उस वक्त दोनों देशों की सेनाएं कैसे एक दूसरे की आंखों में आंखे डाले खड़ी थीं. विवाद की त्योरियां चढ़ी थीं लेकिन बिपिन रावत के नेतृत्व में हिंदुस्तान की सेना ने डोकलाम में चीनी सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था और तब भी बिपिन रावत ने कड़ा संदेश दिया था.


यानी हर मोर्चे पर बिपिन रावत को सफलता मिली. 370 हटाने के बाद घाटी में बनी रही शांति ने उनकी सफलता में चार चांद लगा दिए. 370 हटाने के बाद PoK की बात शुरू हो चुकी थी. जब प्रधानमंत्री मोदी 370 हटाने की बाद PoK की कसक को जाहिर किया तो सेना अध्यक्ष ने उनकी बात तो और प्रखर कर दिया था.


बिपिन रावत की वही तैयारी, उन्हें CDS पद तक ले आई, जिसमें वो रक्षामंत्रालय के तहत सरकार को सैन्य मामलों पर सलाह देंगे. वैसे भी सीडीएस की मांग 1999 के करगिल युद्ध के बाद से ही होती रही है. 20 साल पहले सुब्रमणयम कमेटी इसकी सिफारिश की थी. कमेटी ने माना था कि करगिल युद्ध में तीनों सेनाओं का क्वार्डिनेशन सही नहीं था, जो अब होगा.


1978 में सेना ज्वाइन करने वाले जनरल बिपिन रावत उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के रहने वाले हैं. वे 11 गोरखा राइफल्स के 5वीं बटालियन के जवान हैं. दिलचस्प बात ये है कि NSA अजित डोभाल और बिपिन रावत एक ही गांव के रहने वाले हैं, और एक ही गांव के दो लाल देश के रक्षक के तौर पर काम करते रहेंगे.