Cyrptocurrency News: क्रिप्टोकरंसी की ओर लोगों की बढ़ती रुचि ने सरकारों को टेंशन में डाल दिया है. सिडनी डायलॉग में खुद पीएम नरेंद्र मोदी इस पर चिंता जता चुके हैं. पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि क्रिप्टोकरंसी को लेकर दुनिया भर की सरकारों को साथ काम करना चाहिए. अगर यह गलत नेटवर्क में चला गया तो युवाओं की जिंदगी तबाह हो सकती है. 29 नवंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में मोदी सरकार इसे लेकर बिल ला सकती है. 


सबसे पहले जानें क्या है क्रिप्टोकरंसी?


क्रिप्टोकरंसी में कंप्यूटरों का एक नेटवर्क क्रिप्टोग्राफी तकनीक से लेनदेन करवाता है. इस क्रिप्टोग्राफी तकनीक में ना तो पेमेंट लेने  वाले की पहचान और न ही पेमेंट देने वाले की पहचान सामने आती है. बिटकॉइन भी एक तरह की क्रिप्टोकरंसी है. बिटकॉइन की तरह कई और क्रिप्टोकरंसी इस वक्त बाजार में मौजूद हैं. जैसे डार्क कॉइन, लाइट क्वाई, बाइनस कॉइन वगैरह. इन सब में सबसे प्रचलित क्रिप्टोकरंसी बिटकॉइन है. बिटकॉइन का अपना माइनिंग एक्सचेंज है.


बिटकॉइन पर किसी सरकार, राज्य या बैंक का कंट्रोल नहीं होता है. इसे ना तो जब्त किया जा सकता है ना ही इसके ट्रांजेक्शन को कोई सरकार रोक सकती है. इस मुद्रा का असली मालिक कौन है? और उसने किस-किस को भुगतान किया है? इसका पता लगाना असंभव है. अपने ट्रांजेक्शन को केवल वही देख सकता है, जिसने वो भुगतान लिया है या दिया है. इसमें लेनदेन करने वालों की पहचान एक डिजिटल "की" यानी चाबी के रूप में रहती है. इस करंसी में किसी नाम या पते की कोई जरूरत नहीं है. 


क्रिप्टोग्राफी क्या होती है?
 
बिटकॉइन एक क्रिप्टोकरंसी है. यानी इसका लेनदेन क्रिप्टोग्राफी तकनीक पर होता है. क्रिप्टोग्राफी का मतलब होता है गोपनीय संचालन. यानी एक सुरक्षित कम्युनिकेशन. इस तकनीक में कंप्यूटरों के एक नेटवर्क में डेटा को इस तरह इनक्रिप्ट किया जाता है, जिससे केवल बिटकॉइन लेने और देने वालों के अलावा इस सूचना को कोई ना देख पाए. यहां तक कि क्रिप्टोकरंसी एक्सचेंज का ऑपरेटर भी इससे दूर रहता है. ये सारा काम केवल मशीनों के जरिए संचालित होता है. मशीन को भी असली लेने वाले और देने वाले की पहचान नहीं दी जाती. वो इन्हें केवल एक नंबर की तरह समझता है और ये नंबर केवल दो लोगों के पास होता है जो बिटकॉइन खरीद रहा है और जो बेच रहा है. 


क्रिप्टोकरंसी यानी बिटकॉइन की माइनिंग कैसे होती है ?


माइनिंग का मतलब होता है खुदाई. चूंकि बिटकॉइन का कोई आकार नहीं है, जैसे परंपरागत करंसी का होता है. ये एक वर्चुअल यानी डिजिटल करंसी है. इसे क्रिप्टोकरंसी एक्सचेंज से क्रिएट किया जाता है. इसे ही माइनिंग कहते हैं. यानी जितनी ज्यादा माइनिंग उतना ज्यादा प्रचलन. चूंकि एक्सचेंज में बिटकॉइन एक सीमित संख्या में होता है. इसलिए इसकी माइनिंग जब ज्यादा होगी यानी मांग ज्यादा होगी तो इसकी कीमत बढ़ती है और अगर इसकी मांग कम हो तो कीमत कम हो जाती है.


क्रिप्टोकरंसी पर भारत सरकार का पक्ष क्या है?


भारत सरकार बिटकॉइन को अपनी अर्थव्यवस्था में मान्यता नहीं देती. 2007 और 2017 में रिजर्व बैंक ने इस करंसी के इस्तेमाल को लेकर अलर्ट जारी किया था. इसमें कहा गया था कि इस मुद्रा के प्रचलन की आधिकारिक अनुमति नहीं दी गई है और इसका लेनदेन जोखिम भरा है.


सरकार के लिए बिटकॉइन के खतरे क्या हैं?


चूंकि बिटकॉइन में इस मुद्रा के लेन-देन करने वालों की जानकारी लेना असंभव है. इसलिए किसी भी सरकार के अपनी अर्थव्यवस्था नियंत्रित करने के सारे साधन बिटकॉइन पर लागू नहीं होंगे और आपात स्थिति में सरकार अपनी अर्थव्यवस्था के जोखिम को नियंत्रित नहीं कर पाएगी. इस करंसी में मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवाद, हथियार और ड्रग्स के कारोबार के संचालन और उसके अपराधियों की पहचान करना असंभव होगा और इसे रोकना बेहद मुश्किल हो जाएगा.


अगर ये करंसी किसी भी देश की परंपरागत मुद्रा से ज्यादा मात्रा में उस देश में प्रचलित हो जाएगी तो वहां के बैंक और सरकारों को अपने नागरिकों की आय या फिर टैक्स प्रणाली में उन्हें शामिल करना असंभव हो जाएगा. राज्य की आर्थिक शक्ति कंप्यूटरों के हाथ में चली जाएगी. यानी सरकार की मुद्रा जारी करने की शक्ति और उसकी संप्रभुता दोनों खत्म हो जाएगी.


आम आदमी के लिए खतरे


आप इसे खरीदने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन इसे बेचना पूरी तरह से इसके खरीददारों या फिर क्रिप्टो एक्सचेंज पर निर्भर करता है. यानी आप इस दुनिया में अपनी मर्जी से शामिल तो हो सकते हैं लेकिन इससे पूरी तरह निकलने में सिर्फ आपकी मर्जी नहीं चलेगी. अगर आपके साथ धोखा होता है. आपकी क्रिप्टोकरंसी चोरी कर ली जाती है या फिर उसे लूट लिया जाता है तो आप को वो वापस कभी नहीं मिलेगी. क्योंकि एक्सचेंज को भी ये नहीं पता होगा कि जो क्रिप्टोकरंसी लूटी गई है उसके असली मालिक आप ही थे. 


लूटने वाला आराम से उससे खरीददारी कर लेगा और उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा क्योंकि उसके असली नाम और पते के बारे में भी एक्सचेंज को कुछ नहीं पता होगा. इसकी कीमतें कैसे बढ़ रही हैं और कब कम होंगी इसका कोई भी प्रमाणिक और पारदर्शी तरीका नहीं है. यानी इसकी आर्टिफिशियल हाइक और डिप क्रिएट कर के आपको लूटा भी जा सकता है.


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