BJP Mission 2024: मुस्लिम वोट बैंक पर बीजेपी की नज़र, 2024 के चुनाव के लिए सियासी जमीन मजबूत करने पर ज़ोर, जानें और क्या कदम उठा रही है पार्टी
BJP Mission 2024: बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व केंद्र में फिर से सत्ता बरकरार रखने के नजरिए से अपने नेताओं और कैडर को संगठन के काम में व्यस्त रखता है और उनपर थकान को हावी भी नहीं होने देता है.
BJP Expand Base: बीजेपी ने 2024 के लोक सभा चुनाव के लिए तैयारियां शुरू कर दी है. बीजेपी अपने परंपरागत वोट बैंक के साथ ही उन समुदायों को भी जोड़ने पर काम कर रही है, जिसे राजनीतिक विश्लेषक बीजेपी से दूर मानते हैं. इस दिशा में बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व 2014 में सत्ता में आने के बाद से लगातार कदम उठा रहा है.
2024 के लिए 144 सीटों की पहचान
राजनीतिक विश्लेषकों के बीच बीजेपी की पहचान एक ऐसा पार्टी के तौर पर है जो हमेशा चुनाव मोड में रहना पसंद करती है. बीजेपी ने 2016 में 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए अपनी तैयारी शुरू कर दी थी. सितंबर 2016 में बीजेपी पदाधिकारियों के साथ एक बैठक में, तत्कालीन पार्टी प्रमुख अमित शाह ने 115 सीटों की पहचान की थी. ये सीटें ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और तेलंगाना जैसे राज्यों से थी, जहां पार्टी 2014 के चुनावों में कोई बड़ा चुनावी लाभ हासिल नहीं कर पाई थी.
पार्टी ने उस वक्त इन सीटों के विस्तार से रणनीति बनाई. उन पर काम किया और उनमें से कई सीटों पर जीत भी हासिल की. खासकर पश्चिम बंगाल और ओडिशा में बीजेपी की ये रणनीति खूब काम आई. 2024 के आम चुनाव के लिए भी, अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 144 सीटों की पहचान की है. ये वो सीटें हैं जहां पार्टी जीत नहीं सकी है, लेकिन जीतने की क्षमता है. इन 144 सीटों पर काम करने के लिए केंद्रीय मंत्रियों और सीनियर महासचिवों को नियुक्त किया गया है. शीर्ष नेतृत्व लगातार काम की निगरानी करता है और निरंतर बैठक के जरिए प्रगति का आकलन भी किया जाता है.
सियासी खाई पाटने की कोशिश
नए नेतृत्व के साथ बीजेपी अपनी सियासी जमीन को और मजबूत करने के लिए उन समुदायों के साथ खाई को पाटने में लगी है, जो उसके परंपरागत वोट बैंक नहीं हैं. 2014 के बाद से ही बीजेपी का फोकस बनी बनाई परिपाटी को नया आयाम देने पर रहा है, चाहे वो स्थापित परंपराएं या व्यवहार हो या फिर मौजूदा जातीय या समुदायों का समीकरण. इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए बीजेपी और उसके शीर्ष नेतृत्व ने क्रिएटिव डिसरप्शन (creative disruption) के तौर पर नोटबंदी (demonetisation) और जीएसटी (GST) जैसे नए कदमों को अमलीजामा पहनाया.
क्रिएटिव डिसरप्शन शब्द का इस्तेमाल ऑस्ट्रियाई-अमेरिकी अर्थशास्त्री जोसेफ शुम्पीटर (Joseph Schumpeter) ने किया था. बीजेपी के इंटेलेक्चुअल सेल के प्रमुख और साप्ताहिक ऑर्गनाइज़र (Organiser) के पूर्व संपादक आर बालाशंकर ने तो बकायदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर एक किताब भी लिखी है. इस किताब का शीर्षक है: क्रिएटिव डिसरप्टर- द मेकर ऑफ न्यू इंडिया (Creative Disruptor—The Maker of New India).
एससी वर्ग के लोगों में आधार बढ़ाने पर फोकस
बीजेपी 18 करोड़ सदस्यों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के तौर पर उभरी है. 2024 के लोक सभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए अपने आधार को बढ़ाने के लिए बीजेपी ने नई तकनीक का इस्तेमाल किया. साथ ही देश के विकास के लिए डिजिटल क्षेत्र में कई कार्यक्रमों की शुरुआत की. जिन वर्गों में बीजेपी के परंपरागत वोट बैंक नहीं थे, उसे पार्टी से जोड़ने के लिए भी बीजेपी ने काम करना शुरू किया.
2014 में सत्ता में आने के ठीक बाद, बीजेपी ने अनुसूचित जातियों (Scheduled Castes) के वोट बैंक को दूसरी पार्टियों से काटने और खुद से जोड़ने के लिए कई पहलों की घोषणा की. अनुसूचित जातियों के लोगों का दूसरी पार्टियों से मोह भंग हो, इस दिशा में 2014 के बाद से ही बीजेपी काम कर रही है. प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने निजी तौर पर दलित प्रतीकों के प्रति बीजेपी की प्रतिबद्धता को दिखाने के लिए एक अभियान चलाया. इसके तहत 2017 में एक दलित नेता को भारत का राष्ट्रपति बनवाया. पार्टी के नेताओं ने अनुसूचित जातियों के घर जाकर उनसे सीधा संवाद बनाने की मुहिम चलाई. पार्टी ने इस वर्ग के लोगों से जुड़ाव बढ़ाने के कई आउटरीच कार्यक्रम का आयोजन किया.
ओबीसी में पकड़ मजबूत करने पर ध्यान
अनुसूचित जाति के साथ ही बीजेपी ने ओबीसी (Other Backward Classes) में अपनी पैठ बढ़ाने पर भी फोकस किया. इस वर्ग के लोगों को हर जगह बढ़ावा दिया गया. प्रधानमंत्री मोदी खुद इसी वर्ग से आते हैं. कैबिनेट में ओबीसी नेताओं को शामिल किया गया. संविधान संशोधन करके राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देकर बीजेपी ने ओबीसी के बीच अपने आधार को और मजबूत किया. इन सब पहल के जरिए पार्टी ने ओबीसी वर्ग के लोगों के समर्थन को वोटों में बदलने की कोशिश की.
लोकनीति-सीएसडीएस के एक सर्वे (Lokniti-CSDS survey) के मुताबिक बीजेपी का ओबीसी वोट शेयर 1996 के लोकसभा चुनाव के 33 प्रतिशत से बढ़कर 2019 में 44 प्रतिशत हो गया. हालांकि 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी के ओबीसी समर्थन में मामूली गिरावट के संकेत मिले.
जेडीयू-आरजेडी के एक साथ आने से बिहार में भी बीजेपी के लिए ओबीसी के समर्थन में कमी होने का अनुमान है. इसकी भरपाई के लिए बीजेपी ने बिहार और उत्तर प्रदेश में एक नए गठबंधन बनाने की कवायद शुरू की है. इसके तहत इन दोनों राज्यों के पिछड़े मुस्लिमों और अत्यंत पिछड़े हिंदू वर्ग के लोगों को जोड़ने पर पार्टी ध्यान दे रही है.
पार्टी संगठन का दायरा बढ़ाने पर काम
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह के साथ देश भर में पार्टी के लिए एक मजबूत संगठन बनाने पर काम कर रहे हैं. इस बात का ख़ास ख्याल रखा जा रहा है कि बीजेपी को अपने प्रयासों को सिर्फ हिंदुओं तक ही सीमित नहीं रखना है. पिछले साल बीजेपी महासचिवों के साथ एक अहम बैठक में, नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा था पार्टी के नेताओं को सिर्फ हिन्दू ही नहीं, बल्कि सभी समुदायों तक पहुंच बनाने पर फोकस करना है. उन्होंने केरल का उदाहरण देते हुए कहा था कि ये एक ऐसा राज्य है जहां की जनता में बीजेपी गहरी पैठ नहीं बना पाई है.
इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पार्टी की केरल इकाई में काम करने वाले लोगों को अपने चुनावी कार्यक्रमों में राज्य के प्रभावशाली ईसाइयों को शामिल करने का निर्देश दिया था. इस साल हैदराबाद में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में, नरेन्द्र मोदी ने पार्टी के नए लक्ष्यों में पिछड़े मुसलमानों को जोड़ने का जिक्र किया था. बाद में इस नजरिए से उत्तर प्रदेश और बिहार में कई कार्यक्रम भी हुए.
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि सभी समुदाय के बीच पकड़ मजबूत बनाने की कवायद सिर्फ चुनाव जीतने के लिए नहीं हैं, बल्कि भविष्य में चुनाव कार्य के लिए बीजेपी पर भरोसा करने के लिए एक व्यापक और मजबूत संगठन बनाने पर है. वर्तमान में, पार्टी कई राज्यों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) आरएसएस के व्यापक नेटवर्क और कनेक्टिविटी पर निर्भर है.
पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि जब तक बीजेपी के पास विचारधारा पर चलने वाले अनुशासन रखने वाले कार्यकर्ताओं की अच्छी खासी संख्या है, उसे चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. लेकिन वे स्वीकार करते हैं कि बीजेपी के सामने इन कार्यकर्ताओं में सत्ता का घमंड पनपने से बचाने की एक बड़ी चुनौती है, जिससे भविष्य में पार्टी को निपटना है. पार्टी के नेताओं का ज़ोर अब सरकारी कार्यक्रमों और कल्याणकारी पहलों के बारे में लोगों के बीच अब ज्यादा प्रचार करने पर है.