नई दिल्ली: तीन तलाक का बिल लोकसभा से पास होने के बाद राज्यसभा में करीब-करीब अटक गया है. वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कांग्रेस पर बिल को लेकर अलग-अलग सदनों में दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगाया है. सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं होने के कारणा बीजेपी को बिल पास होता नहीं दिखाई दे रहा है. ऐसे में पार्टी बहस के बाद इसे सेलेक्ट कमेटी को भेजने के लिए तैयार हो गई है.


आइए जानते हैं कि सेलेक्ट कमेटी क्या होती है और इसका काम क्या होता है


सामान्य तौर पर पूरे साल में संसद में तीन सत्र चलते हैं और इसी दौरान हर छोटे बड़े कानून का मसौदा पेश होता है और आखिर में कानून बनता है. याद रहे कि ज्यादातर कानून बनने के दौरान उस मसौदे को संसद की कमेटियों से गुजरना होता है. ऐसी कमेटी के जिम्मे किसी बिल के अटक जाने पर उससे जुड़े तमाम पहलुओं को देखने का काम होता है. इन्हीं कमेटियों में संसद की एक कमेटी का नाम है सेल्क्ट कमेटी. जैसे ही सेलेक्ट कमेटी का काम पूरा हो जाता है उसे खत्म कर दिया जाता है.


क्या होती है सेलेक्ट कमेटी?


सेलेक्ट कमेटी सांसदों की एक छोटी सी कमेटी होती है. इसका काम भी किसी खास या अटके हुए बिल को देखना होता है. भारत के अलावा ब्रिटेन आधारित वेस्टमिंस्टर सिस्टम अपनाने वाले ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों में भी सेलेक्ट कमेटी होती है. विधायिका के कामकाज के लिए ये बहुत ज़रूर है और इसी वजह से इनका नाम सेलेक्ट कमेटी पड़ा.


आइए, इसे एक उदाहरण सम समझते हैं. लोकपाल बिल 2011 में संसद के दोनों सदनों में पास हो गया, लेकिन राज्यसभा में पास होने से पहले इस बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजा गया था. राज्यसभा की सेलेक्ट कमेटी ने करीब एक साल बाद नवंबर, 2012 में अपनी रिपोर्ट सौंपी और इस बिल में 15 संशोधन करने की राय दी थी. सरकार ने उन तमाम संशोधनों को मान लिया.


सेलेक्ट कमेटी दो प्रकार की होती है- स्टैंगिंड कमेटी और ज्वाइंट कमेटी. इन दोनों कमेटियों का गठन विभिन्न तरह के बिलों पर विचार करने के लिए किया जाता है. जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि ऐसा सभी बिलों के साथ नहीं होता बल्कि आम तौर पर ऐसा उन बिलों के साथ होता है जिसपर विवाद हो. स्टैंडिंग कमेटी बिल की सभी प्रमुख बातों पर बारी-बारी से ठीक उसी तरह से विचार करती है जैसा कि संसद के दोनों सदनों में किया जाता है.


जैसा कि आपको लोकपाल के उदाहरण से समझाया जा चुका है कि बिल पर काफी विचार और इसके तमाम बिंदुओं की पड़ताल के बाद सेलेक्ट कमेटी संशोधनों का सुझाव देती है. कमेटी की रिपोर्ट को सदन को सौंपा जाता है. इसके बाद सेलेक्ट कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर संशोधनों को लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदन में बारी-बारी से पास कराना होता है और उसके बाद ये बिल कानून बन जाता है.


कब बन सकती है सेलेक्ट कमेटी?


दिलचस्प बात ये है कि नियम 125 के तहत राज्यसभा का कोई भी सदस्य किसी बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजने की मांग कर सकता है. अगर इस मांग को मान लिया जाता है तो बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया जाता है.


कैसे काम करती है ये कमेटी?


जैसे ही सेलेक्ट कमेटी का गठन होता है, निर्धारित समय के भीतर ये अपना काम करना शुरू कर देती है. अगर निर्धारित समय सीमा तय नहीं की गई है तो माना जाता है कि तीन महीने के भीतर रिपोर्ट पेश करनी है. हालांकि, डेडलाइन बढ़ाई जा सकती है.