पसमांदा मुसलमानों के बाद बीजेपी की नजर ईसाई वोटरों पर, जानिए क्या है संघ का राष्ट्रीय ईसाई मंच और भोज पॉलिटिक्स
लोकसभा की 19 सीटें ऐसी हैं, जहां 20 फीसदी से अधिक ईसाई वोटर्स हैं. 2019 में बीजेपी को 19 में से 4 सीटें मिली थी. भोज पॉलिटिक्स के जरिए बीजेपी इन सभी सीटों को साधने में जुटी है.
मिशन 2024 की तैयारियों में जुटी बीजेपी की नजर पसमांदा मुस्लमानों के बाद ईसाई वोटरों पर है. शुक्रवार को नई दिल्ली में RSS की संस्था राष्ट्रीय ईसाई मंच ने चर्च के पादरियों और ईसाई नेताओं के लिए भोज का आयोजन किया. अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जॉन बरला ने खुद इसकी मेजबानी की.
मोदी सरकार के आने के बाद ऐसा पहली बार हुआ, जब कोई मंत्री ईसाई नेताओं के लिए भोज की मेजबानी की हो. रिपोर्ट के मुताबिक केरल, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, झारखंड और मध्य प्रदेश समेत 7 राज्यों के चर्च प्रमुखों को इस भोज के लिए आमंत्रण भेजा गया था.
भोज क्रिसमस का पर राजनीतिक मायने क्यों, 2 प्वाइंट्स
- 2020-21 में चर्च और ईसाई समुदाय के लोगों पर देशभर में कई हमले हुए, जिसको लेकर केंद्र सरकार पर सवाल भी उठा. चर्च के प्रमुखों को भोज में बुलाकर बीजेपी सबका साथ, सबका विकास का संदेश देने की कोशिश कर रही है.
- कश्मीर समेत दक्षिण के कुछ राज्यों में चुनाव होने हैं. यहां आदिवासी बेल्ट में ईसाई समुदाय के लोग कई सीटों पर निर्णायक भूमिका में है. भोज के बहाने बीजेपी ईसाई समुदाय को साथ काम करने का मैसेज दे रही है.
नजर लोकसभा चुनाव पर, जहां 19 सीटों पर ईसाई वोटर्स प्रभावी
ईसाई समुदाय को साधने के पीछे की सबसे बड़ी वजह लोकसभा चुनाव 2024 है. झारखंड, केरल और पूर्वोंतर राज्यों में ईसाईयों की आबादी काफी तादाद में है. CSDS के डेटा के मुताबिक देश की 19 लोकसभा सीटें ऐसी है, जहां ईसाई आबादी 20% से ज्यादा है.
इनमें 2 सीटें ऐसी है, जहां 85% के करीब ईसाई वोटर्स हैं. यानी 19 सीटों पर जीत हार का गणित ईसाई वोटर्स ही तय करते हैं.
2014 में पांच और 2019 में चार सीटें मिली
बीजेपी ने 2014 में ईसाई बहुल 19 में से 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि कांग्रेस को 8 और अन्य को 6 सीटें मिली थी. 2019 में बीजेपी की सीटों की संख्या में जहां बढ़ोतरी हुई, वहीं ईसाई बहुल इलाके में सीटें कम हो गई.
2019 में 19 में से कांग्रेस को 10, बीजेपी को 4 और अन्य को 5 सीटों पर जीत मिली. झारखंड की दोनों लोकसभा सीटें खूंटी और लोहरदगा में बीजेपी ने जीत हासिल की थी.
केरल में सबसे ज्यादा ईसाई, यहां के लिए अलग स्ट्रैटजी
2011 जनगणना के मुताबिक केरल की लगभग साढ़े 3 करोड़ की आबादी में लगभग 18 फीसदी ईसाई वोटर हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में राज्य के दो प्रमुख मलंकारा ऑर्थोडॉक्स सीरियाई चर्च और दूसरे गुट जैकबाइट चर्च के बीच लड़ाई में एलडीएफ को फायदा मिल गया था.
पार्टी इस बार दोनों चर्चों के बीच सुलह कराने में जुटी है. राज्य के 2021 के विधानसभा चुनाव में यहां भाजपा को 11.3 फीसदी वोट मिले थे.
5 आदिवासी बहुल राज्य, जहां ईसाई अधिक है...
राज्य ईसाई आबादी (2011 की जनगणना)
झारखंड 4.3%
छत्तीसगढ़ 1.92%
ओडिसा 2.77%
मध्य प्रदेश 0.29%
गुजरात 0.52%
पसमांदा के सहारे सपा का किला ढहा चुकी है
2024 से पहले बीजेपी ने पसमांदा मुस्लमानों को भी साधना शुरू कर दिया है. हाल ही में पसमांदा मुस्लमानों को साथ लेकर पार्टी ने उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की है. रामपुर और आजमगढ़ सपा का मजबूत गढ़ माना जाता था.
दोनों सीट जीतने के बाद लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बीजेपी अपना वोटबैंक बढ़ाने की कोशिश कर रही है. करीब 80 सीटें ऐसी है, जहां पसमांदा वोटर्स बहुयात संख्या में है.
पसमांदा शब्द फारसी भाषा से लिया गया है, जिसका हिंदी में अर्थ पिछड़ा होता है. मुस्लमानों के कल्याण के लिए बनाई गई राजेंद्र सच्चर कमेटी ने रिपोर्ट में पसमांदा मुस्लमानों को लेकर बड़ा दावा किया था. रिपोर्ट में कहा गया था कि मुस्लिम समुदाय में 40% पसमांदा समाज के लोग हैं.
अब जानिए राष्ट्रीय ईसाई मंच क्या है?
2019 के अंत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ईसाई समुदायों को साधने के लिए राष्ट्रीय ईसाई मंच बनाया. इस मंच की कमान कभी सोनिया गांधी के करीबी रहे टॉम वडक्कन को दी गई है.
वडक्कन बीजेपी के प्रवक्ता भी हैं और देशभर में ईसाई समुदायों के साथ लगातार बैठक भी करते हैं. संघ ने 2016 में पहली बार ईसाई मंच बनाने का पहल किया था, लेकिन चर्चों के बीच बात नहीं बन पाई थी. इसके बाद मुस्लिम मंच के कॉर्डिनेटर और प्रचारक इंद्रेश कुमार को इसकी जिम्मेदारी दी गई थी.