2024 लोकसभा चुनाव में अभी 390 दिन का वक्त है. ऐसे में सभी पार्टियों ने दांव-पेंच अजमाना शुरू कर दिया है. दक्षिण के दुर्ग को अब तक भेदने में नाकाम रही बीजेपी नई स्ट्रैटजी अपना रही है. तमिलनाडु बीजेपी के प्रमुख के अन्नामल्लाई ने पीएम के तमिलनाडु से चुनाव लड़ने की बात उठाकर सियासी सरगर्मी बढ़ा दी है. 


के. अन्नामल्लाई ने समाचार एजेंसी एएनआई से एक पॉडकास्ट इंटरव्यू में कहा कि तमिलनाडु में कुछ लोग नरेंद्र मोदी को बाहरी कह कर प्रचारित कर रहे हैं. पीएम मोदी ने क्षेत्रीय बाधा को पार कर लिया है और तमिलनाडु में उनके चुनाव लड़ने की चर्चा हो रही है. उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि 2024 का चुनाव एक अलग तरह का लोकसभा चुनाव होगा. 


क्या पीएम मोदी तमिलनाडु से चुनाव लड़ सकते हैं?
बीजेपी में किसी भी उम्मीदवार के चुनाव लड़ने और लड़ाने की एक प्रक्रिया होती है. बीजेपी संसदीय बोर्ड में एक-एक सीट पर चर्चा के बाद कैंडिडेट के नाम फाइनल किए जाते हैं. 2019 में भी पीएम मोदी के ओडिशा की पुरी और यूपी की वाराणसी सीट से चुनाव लड़ने की चर्चा थी, लेकिन ऐन वक्त में संसदीय बोर्ड ने सिर्फ वाराणसी से उनके नाम की घोषणा की. 


तमिलनाडु से पीएम मोदी चुनाव लड़ भी सकते हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह दक्षिण में कांग्रेस का बढ़ता जनाधार और तमिलनाडु में अलग द्रविनाड़ु की मांग है. द्रविड़ आंदोलन के नेता तमिलनाडु को अलग देश बनाने की मांग को लेकर सालों से विरोध करते रहे हैं. 


लड़ेंगे तो सीट कौन सी हो सकती है?
तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष अन्नामलाई ने कहा कि राज्य के रामनाथपुरम लोकसभा सीट के लोगों में भी पीएम के चुनाव लड़ने चर्चा चल रही है, लेकिन यह अफवाह है. 2019 में तमिलनाडु की 39 में से एक भी सीट बीजेपी नहीं जीत पाई थी. 2014 में बीजेपी को कन्याकुमारी सीट पर जीत मिली थी. 


ऐसे में माना जा रहा है कि अगर पीएम मोदी चुनाव लड़ते हैं तो कन्याकुमारी सीट बीजेपी चुन सकती है. हालांकि अभी ये सिर्फ अटकलें हैं. 2019 में तमिलनाडु की 5 सीटों पर बीजेपी दूसरे नंबर पर रही थी, उनमें कोयंबटूर, शिवगंगा, रामनाथपुरम, कन्याकुमारी और थुटीकुड्डी सीट शामिल हैं. कन्याकुमारी के अलावा इन चारों में से भी किसी सीट से प्रधानमंत्री चुनाव लड़ सकते हैं. 


2 विवाद, जिसने दिल्ली बीजेपी की टेंशन बढ़ा दी है


1. भाषा विवाद- अप्रैल 2022 में एक कार्यक्रम के दौरान अमित शाह ने कहा था कि अलग-अलग राज्यों के लोगों को एक दूसरे से अंग्रेजी की बजाय हिंदी में बात करनी चाहिए. शाह के इस बयान का तमिलनाडु में पुरजोर विरोध हुआ. 


सत्ताधारी दल डीएमके के कार्यकर्ताओं ने कई जगहों पर प्रदर्शन किया. खुद मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने अमित शाह के इस बयान को देश की एकता को तोड़ने वाला बताया. स्टालिन ने कहा कि दिल्ली के लोग देश की विविधता खत्म करने में जुटी है, जिसे हम होने नहीं देंगे. 


दरअसल, 1944 में पेरियार रामास्वामी के नेतृत्व में द्रविडनाड़ु देश की मांग और तमिल को अलग राष्ट्रीय भाषा देने की मांग की गई थी. हालांकि, संविधान में हिंदी के साथ तमिल समेत कई भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया. 


इसके बाद हिंदी को जब राष्ट्रीय भाषा बनाने की बात कही गई तो 1960 के दशक में तमिलनाडु में उग्र प्रदर्शन हुए, जिसके बाद तत्कालीन सरकार ने इसे रोक दिया. 


2. तमिझगम का विवाद- तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि की ओर से हाल ही में तमिझगम का विवाद छेड़ा गया था. उन्होंने कहा कि तमिलनाडु का अर्थ होता है- तमिलों का देश या राष्ट्र.


वहीं तमिझगम का मतलब है- तमिल लोगों को घर. राज्यपाल के इस बयान के बाद सत्ताधारी दल के नेता उबल पड़े और बीजेपी पर निशाना साधने लगे. द्रविड़ पॉलिटिक्स की वजह से 1967 में मद्रास का नामाकरण तमिलनाडु हुआ था. 




(Source- PTI)


डीएमके के संस्थापक और तत्कालीन सीएम ने द्रविड़ मॉडल का जिक्र करते हुए नाम को भावनात्मक बताया था. तमिलनाडु में पांव जमाने में जुटी बीजेपी के लिए हाल के यह दो विवाद टेंशन बढ़ाने वाला है.


दक्षिण का सियासी समीकरण, जिस पर बीजेपी की नजर
दक्षिण भारत के तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में लोकसभा की कुल 129 सीटें हैं. केंद्रशासित पुडुचेरी में भी एक सीट है. ऐसे में कुल सीटों की संख्या 130 हो जाती है. 


2019 में 303 सीट जीतने वाली बीजेपी को इन 130 में से सिर्फ 29 सीटें ही मिली थी, जिसमें कर्नाटक की 25 सीट शामिल हैं. दक्षिण के 3 राज्यों (तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश) में बीजेपी का खाता तक नहीं खुला. 




C-वोटर सर्वे के मुताबिक अगर अभी चुनाव हुए तो बीजेपी को महाराष्ट्र, कर्नाटक और बिहार जैसे राज्यों में झटका लग सकता है. ऐसे में पार्टी इन राज्यों में कम होने वाली सीटों की भरपाई दक्षिण के अन्य राज्यों में मजबूती से लड़कर कर सकती है. 


तमिलनाडु ही फोकस पर क्यों, 2 प्वॉइंट्स



  • तमिलनाडु की सीमा दक्षिण भारत की 3 राज्यों की सीमा से लगी हुई है. इनमें आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल शामिल हैं. 

  • जयललिता के निधन के बाद विपक्ष पूरी तरह कमजोर पड़ गई है. बीजेपी को जड़ें जमाने के लिए यही आसान मौका दिख रही है. 


जाते-जाते उन नेताओं की कहानी जानिए, जो दक्षिण जाकर चुनाव लड़े...
1980 में सत्ता वापसी की कोशिश में जुटी इंदिरा गांधी ने आंध्र प्रदेश के मेदक सीट से लोकसभा चुनाव लड़ी. उन्होंने इस चुनाव में भारी मार्जिन से जीत हासिल की.


सास की राह पर चलते हुए 1999 में कर्नाटक के बेल्लारी से सोनिया गांधी भी चुनाव मैदान में उतरीं. उनके मुकाबले बीजेपी ने दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं सुषमा स्वराज को बेल्लारी सीट से उतारा. इस चुनाव में सुषमा की हार हुई. 


2019 के चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी केरल के वायनाड सीट से चुनावी मैदान में उतरे. वे यूपी की अमेठी सीट से भी कैंडिडेट थे, लेकिन अमेठी में उन्हें हार मिली.