नई दिल्ली: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एनडीए में शामिल करना बीजेपी की बड़ी रणनीति का हिस्सा है. माना जा रहा है नीतीश के आने से 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को बिहार में सीधा फायदा होगा. नीतीश के पाला बदलने से विपक्ष की एकता को भी करारा झटका लगा है.


बिहार विधानसभा चुनावों में बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन की जीत एक मॉडल की तरह थी. इस मॉडल को 2019 में राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की योजना थी पर इस मॉडल ने 20 महीने में दम तोड़ दिया. बीजेपी ने साल 2019 का एजेंटा साल 2017 में ही सेट कर दिया गया है.


बिहार


साल 2014 लोकसभा चुनावों में एनडीए के खाते में 31 सीट आईँ. यूपीए के खाते में 6 सीट आईं जबकि जेडीयू ने 2 सीट जीतीं.  ये तब था जब नीतीश, लालू और कांग्रेस ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था.


विधानसभा चुनाव में पिछली गलती से सबक लेकर तीनों महागठबंधन में लड़े और 243 में से 178 सीट हासिल की. 2009 के लोकसभा चुनाव में जब नीतीश और बीजेपी साथ मिलकर लड़े थे तब भी 32 सीट हासिल की थीं. बीजेपी अब 40 में से 40 सीट पर नजर बनाए हुए है.


उत्तर प्रदेश


बिहार पर बीजेपी की नजर उत्तर प्रदेश की वजह से भी है. उत्तर प्रदेश में 2014 में एनडीए ने 80 में से 73 सीट हासिल की थी. अगर बीएसपी, एसपी और कांग्रेस यूपी में महागठबंधन बना पाती हैं तो बीजेपी को यूपी में बड़ा घाटा हो सकता है. हालांकि आज की तारीख में ऐसा होता नजर नहीं आता.


18 राज्यों की 67 फीसदी आबादी पर बीजेपी गठबंधन का राज


यूपी में जीत के साथ ही देश की 52 फीसदी आबादी पर बीजेपी का राज चल रहा है. अगर एनडीए की बात करें तो आंध्र प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल में भी एनडीए का शासन है. यानी करीब 58 फीसदी आबादी पर एनडीए का राज है. अब इसमें बिहार भी शामिल हो गया है यानी देश के 18 राज्यों की 67 फीसदी आबादी पर बीजेपी गठबंधन का राज हो गया है.


नीतीश के एनडीए में जाने से बड़ा सवाल ये कि 2019 में कांग्रेस के महागठबंधन में अब कितने दल शामिल होंगे और बड़ा सवाल ये कि पश्चिम बंगाल में ममता और सीपीएम और यूपी में एसपी और बीएसपी जैसे राजनैतिक विरोधियों को एक जगह ला पाएगी कांग्रेस? विपक्षी एकता की एक बड़ी समस्या ये भी है कि सभी बड़े नेता खुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार मानते हैं. अब सवाल ये है कि मोदी की आंधी के बीच 2019 में विपक्ष कितना एकजुट रह पाता है.