BJP Gujarat: गुजरात विधानसभा में बीजेपी की जीत इतनी बड़ी है कि राजनीतिक विश्लेषकों के लिए भी चुनावी नतीजों के विश्लेषण के लिए कुछ ख़ास रह नहीं गया. 182 सीटों में 156 पर जीत से जाहिर है कि गुजरात में हर वर्ग, जाति और समुदाय का वोट बीजेपी को मिला है.


बीजेपी इस बार गुजरात में बड़े पैमाने पर सामाजिक गठबंधन बनाने में कामयाब रही. बीजेपी को मुसलमानों को छोड़ कर हर समुदाय के बीच 2017 से ज्यादा समर्थन मिला है. हालांकि पिछली बार की तुलना में कुछ जातियों के बीजेपी को समर्थन के आंकड़ों में मामूली बदलाव हुए हैं. ओबीसी, पाटीदार और दूसरी ऊंची जातियों ने गुजरात में इस बार बीजेपी के लिए जीत का किला बनाने में भरपूर साथ दिया है.


हालांकि पाटीदारों और उच्च जाति के मतदाताओं की तुलना में बीजेपी को ओबीसी से कम समर्थन मिला है. पार्टी को मिले कुल वोट शेयर की तुलना में अनुसूचित जाति यानी एससी से बीजेपी को समर्थन कम रहा है. हालांकि ये अनुपात 2017 की तुलना में अब भी ज्यादा है. जीत की भव्यता से ये साफ है कि 2017 की तुलना में मुसलमानों को छोड़कर सभी वर्गों के बीच बीजेपी का समर्थन बढ़ा है. 


हिन्दुओं की हर जाति में बीजेपी के बढ़े वोट


चुनाव नतीजों के आंकड़े बताते हैं कि गुजरात में लोगों ने जाति, समुदाय से ऊपर उठकर बीजेपी पर जमकर प्यार बरसाया है. ये जीत इतनी बड़ी है कि धुर विरोधी भी बीजेपी की तारीफ कर रहे हैं. AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने रविवार को ट्वीट करते हुए लिखा कि नतीजे ये बताते हैं कि हिंदू समाज की हर ज़ाति ने न सिर्फ़ बीजेपी को वोट दिया, बल्कि उनका बीजेपी के लिए समर्थन 2017 के चुनाव से भी ज़्यादा मज़बूत रहा. मतलब, आज की तारीख़ में गुजरात में मोदी की A-Z टीम बहुसंख्यक समाज है. ओवैसी ने कहा कि बीजेपी की गुजरात में प्रचंड जीत के बाद कांग्रेस और दूसरी सेकुलर पार्टियां अब क्या करेंगी? 


कांग्रेस का हर जातियों में घटा जनाधार


इस ट्रेंड से एक बात और निकलकर आती है. बीजेपी के लिए हिन्दुओं के सभी वर्गों का समर्थन बढ़ने और राज्य के सियासी दंगल में पहली बार आम आदमी पार्टी के उतरने से 2017 के मुकाबले कांग्रेस को भारी नुकसान पहुंचा है. कांग्रेस को 60 सीटों और 15 फीसदी वोट शेयर का नुकसान हुआ है.  AAP को उच्च जातियों के वोटशेयर में 12 प्रतिशत और पाटीदारों के हिस्से से 15% वोट मिले हैं. वहीं आदमी पार्टी को कोली समुदाय के 16% वोट मिले हैं. 


गुजरात में बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग


बीजेपी चुनाव जीतने के लिए जातियों के बीच गजब का सोशल इंजीनियरिंग करना जानती है, ये बीते 8 साल के विधानसभा और लोक सभा के चुनाव नतीजों से जगजाहिर है. गुजरात की कुल 182 सीटों में से 13 सीटें अनुसूचित जाति के लिए और 27 सीटें अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. गुजरात में 142 सीटें समान्य कैटिगरी में आती हैं. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों को उतारने के नजरिए से जाति आधारित राजनीति को प्रासंगिक बनाए रखने की भरपूर कोशिश की है. दोनों ने ही अनारक्षित 142 सीटों में से 57 पर एक ही समुदाय के उम्मीदवारों को मौका दिया. 


जाति आधारित राजनीति अब भी प्रासंगिक


इतना ही नहीं गुजरात के कई जाति आधारित सामाजिक संगठनों ने भी राज्य में जाति की राजनीति को प्रासंगिक बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इनमें अल्पेश ठाकोर की अगुवाई वाले ओबीसी संगठनों, हार्दिक पटेल की अगुवाई वाले पाटीदार समुदाय और जिग्नेश मेवाणी की अगुवाई वाले दलितों का वर्ग प्रमुख है. इन समुदायों के आंदोलनों की वजह से 2017 के चुनाव में बीजेपी की जीत के आंकड़ों को नुकसान पहुंचा था. बीजेपी दहाई अंक में सिमट गई थी. इन जाति आधारित आंदोलनों की वजह से 2012 के मुकाबले बीजेपी को 2017 में 16 सीटों और वोट शेयर में 1.2 फीसदी का नुकसान झेलना पड़ा था.


नाराज जातियों को साधने में मिली कामयाबी


इस बार बीजेपी ने इन समुदायों को साधने के लिए व्यापक रणनीति पर काम किया. बीजेपी ने जाति आधारित आंदोलनों के कई नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया और इनमें से कइयों को उम्मीदवार भी बनाया. ऐसे नेताओं में हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर प्रमुख हैं, जिन्होंने इस बार बीजेपी उम्मीदवार के तौर जीत हासिल की. इससे जाहिर है कि बीजेपी 2017 की गलती से सबक लेते हुए इस बार कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती थी.


बीजेपी को उच्च जातियों का भरपूर साथ मिला


इस बार के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को उच्च जातियों का 62 फीसदी वोट हासिल हुआ. ये पिछली बार के मुकाबले 6 फीसदी ज्यादा है. इसके विपरीत कांग्रेस को उच्च जातियों का सिर्फ 25 फीसदी वोट मिले. उसे 2017 के मुकाबले 11 फीसदी का नुकसान उठाना पड़ा. वहीं पहली बार चुनावी मैदान में उतरी आम आदमी पार्टी को उच्च जातियों का 12 फीसदी वोट मिले. पहले ही मैच में आम आदमी पार्टी को 5 सीटों पर जीत मिली और ओवरऑल करीब 13% वोट मिले.
 
नाराज पाटीदारों को मनाने में सफल रही बीजेपी


इस बार बीजेपी को पाटीदारों के 64 फीसदी वोट मिले, जो पिछली बार के मुकाबले 3% ज्यादा है. वहीं कांग्रेस को सिर्फ 18 फीसदी पाटीदारों का वोट मिला. कांग्रेस को पिछली बार के मुकाबले इस समुदाय के 17 फीसदी कम वोट हासिल हुए. आम आदमी पार्टी पाटीदारों के 15 फीसदी वोट हासिल करने में कामयाब रही. इस समुदाय के जबरदस्त समर्थन की वजह से बीजेपी ने पाटीदार दबदबे वाली 61 में से 55 सीटें हासिल कर ली. 


क्षत्रिय (ओबीसी) वोट बैंक का गुणा-गणित


क्षत्रिय (ओबीसी) के 46 फीसदी वोट पर बीजेपी का कब्जा रहा, जो पिछली बार से एक फीसदी ज्यादा है. इस वर्ग से कांग्रेस को 23 फीसदी का समर्थन मिला, जो पिछली बार से 22 फीसदी कम है. वहीं आम आदमी पार्टी को इस वर्ग के सिर्फ 4% लोगों का वोट मिला.
 
कोली समुदाय का सियासी समीकरण


कोली समुदाय के 59 फीसदी लोगों ने बीजेपी का साथ दिया. ये 2017 के मुकाबले 7 फीसदी ज्यादा है. कांग्रेस को 24 फीसदी कोली वोट हासिल हुए. ये पिछली बार के मुकाबले 7 फीसदी कम है. आम आदमी पार्टी को 16 फीसदी कोली वोट मिले. 
 
अन्य ओबीसी का किसको मिला साथ 


अन्य ओबीसी के 58 फीसदी वोट बीजेपी के पास गए, जो पिछली बार से 5 फीसदी ज्यादा हैं. वहीं कांग्रेस को इस वर्ग से सिर्फ 24% वोट मिले, जो पिछली बार से 17 फीसदी कम है. आम आदमी पार्टी को इस वर्ग से 11 फीसदी वोट मिले.


अनुसूचित जाति भी बीजेपी पर मेहरबान


दलितों की बात करें तो इस बार 44 फीसदी एससी वोट बीजेपी को मिले, जो पिछली बार के मुकाबले 5 फीसदी ज्यादा है. वहीं कांग्रेस को इस वर्ग का 32 फीसदी साथ मिला. ये पिछली बार से 21 फीसदी कम है. आम आदमी पार्टी को भी 17 फीसदी दलितों ने वोट किया.


बीजेपी ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 13 में से 11 सीटों पर जीत दर्ज की. 2017 में कांग्रेस ने इनमें से 6 और बीजेपी ने 7 सीटें जीती थी. हालांकि इस बार दलित नेता और कांग्रेस उम्मीदवार जिग्नेश मेवाणी वडगाम सीट पर कब्जा बरकरार रखने में कामयाब रहे. 


बीजेपी को मिला आदिवासियों का भी भरपूर प्यार 


बीजेपी ने इस बार कांग्रेस के आदिवासी गढ़ को भी ध्वस्त कर दिया. इस बार आदिवासियों के 53 फीसदी वोट बीजेपी के खाते में गए. ये पिछली बार के मुकाबले 8% ज्यादा है. वहीं कांग्रेस को 20 फीसदी वोट का नुकसान उठाना पड़ा. उसे आदिवासियों के सिर्फ 24 फीसदी वोट मिले. आम आदमी पार्टी को इसी समुदाय से सबसे ज्यादा समर्थन मिला है. AAP को आदिवासियों के 21 फीसदी वोट मिले.


आदिवासियों के लिए आरक्षित 27 में से 23 सीटें बीजेपी के खाते में गईं. वहीं कांग्रेस सिर्फ 3 सीट ही हासिल कर पाई. आम आदमी पार्टी एक सीट जीतने में कामयाब रही. 2017 में कांग्रेस एसटी के लिए आरक्षित इन  27 में से 15 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. वहीं बीजेपी को सिर्फ 9 सीटें मिली थीं. एससी और एसटी के लिए आरक्षित कुल 40 में से 34 सीटें बीजेपी जीतने में सफल रही. 


बीजेपी को मुसलमानों का मिला कम साथ


बीजेपी को इस बार 2017 के मुकाबले मुसलमानों का साथ थोड़ा कम मिला है. इस बार बीजेपी को 14 फीसदी मुस्लिम वोट मिले हैं, जो पिछली बार से 13 फीसदी कम हैं. मुसलमानों ने इस बार कांग्रेस का साथ तो दिया है, लेकिन 2017 के मुकाबले कांग्रेस के मुस्लिम वोट बैंक में एक फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. इस बार कांग्रेस को 64 फीसदी मुस्लिम वोट मिले.


वहीं आम आदमी पार्टी के खाते में 12 फीसदी मुस्लिम वोट गए. बीजेपी के लिए मुसलमानों के वोट बैंक भले ही कम हुए हो, इसके बावजूद बीजेपी 19 मुसलिम बहुल सीटों में से 15 सीटें जीतने में सफल रही. इनमें से 6 सीटें ऐसी हैं, जिन पर बीजेपी कभी नहीं जीती थी.


बाकी समुदाय से भी बीजेपी को मिला अपार समर्थन 


हिन्दू और मुसलमानों के अलावा बाकी समुदाय के लोगों ने भी बीजेपी का भरपूर साथ दिया. इस कैटेगरी के 63 फीसदी वोट बीजेपी के खाते में गए, जो पिछली बार से 13 फीसदी ज्यादा हैं. कांग्रेस को इस वर्ग से 24 फीसदी वोट मिले, जो पिछली बार से 21% कम हैं. 


गुजरात का जातिगत समीकरण दूसरे राज्यों से जुदा है. यहां 52 फीसदी मतदाता पिछड़े वर्ग की 146 जातियों से आते हैं. गुजरात में पिछड़ा वर्ग ही तय करता है कि सत्ता पर कौन बैठेगा. पिछड़े वर्ग को साधने मे इस बार बीजेपी 2017 से भी ज्यादा सफल रही. सभी वर्ग और जातियों के साथ की वजह से ही इस बार बीजेपी 2017 के मुकाबले कांग्रेस से 65 सीटें छीनने में कामयाब रही. इनमें एसटी के लिए आरक्षित 12 सीटें और एससी के लिए आरक्षित 4 सीटें भी शामिल हैं. 2017 के मुकाबले इस बार कांग्रेस सिर्फ 4 सीटें ही बीजेपी से छीन पाई.


गुजरात में बीजेपी ने बनाया है रिकॉर्ड


बीजेपी ने 2022 में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल की है. राज्य की करीब 86 फीसदी सीट पर बीजेपी ने कब्जा जमाया. बीजेपी को पिछली बार से 57 सीटें ज्यादा मिली हैं. वोट शेयर की बात करें तो करीब 53 फीसदी वोट बीजेपी को मिले हैं. पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार बीजेपी के वोट शेयर में करीब साढ़े तीन प्रतिशत का उछाल आया है. 


कांग्रेस के लिए गुजरात से सफाया के संकेत


बीजेपी की जीत इतनी बड़ी है कि उसे कांग्रेस के दोगुने वोट से सिर्फ डेढ़ फीसदी ही कम वोट मिले हैं. सालों तक गुजरात की सत्ता पर राज करने वाली कांग्रेस मात्र 17 सीटों पर सिमट गई है. कांग्रेस को 15 फीसदी वोट शेयर का नुकसान हुआ है. कांग्रेस राज्य की 33 में से 22 जिलों में खाता भी नहीं खोल पाई. गुजरात में 10 फीसदी सीटें नहीं लाने की वजह से कांग्रेस के लिए नेता विपक्ष का पद पाना भी मुश्किल हो गया है. 


2022 में रिकॉर्ड 156 सीटों पर कमल का परचम


गुजरात की राजनीति में धुरंधर नेता माधव सिंह सोलंकी की अगुवाई में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 149 सीटें 1985 के विधानसभा चुनाव में हासिल की थीं. इस बार बीजेपी ने 156 सीटें जीतकर सारे रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया है. बीजेपी ने खुद के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को भी पीछे छोड़ दिया है. इससे पहले बीजेपी का सबसे बेहतर प्रदर्शन 2002 के चुनाव में था. उस वक्त मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने सबसे ज्यादा 127 सीटों पर जीत दर्ज की थी. 


लगातार 32 साल तक शासन करेगी बीजेपी


इस बार की जीत से बीजेपी गुजरात में लगातार 32 साल तक राज करने वाली पार्टी बन जाएगी. सीपीएम ने पश्चिम बंगाल में लगातार सात बार विधानसभा चुनाव जीते थे. बीजेपी ने इस बार गुजरात में जीत के साथ इस रिकॉर्ड की बराबरी कर ली है. गुजरात में पहली बार बीजेपी विधानसभा चुनाव में 50 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल करने में सफल रही. इस बार बीजेपी को 52.5 फीसदी वोट मिले हैं. इससे ज्यादा सिर्फ 1985 में कांग्रेस को वोट शेयर हासिल हुआ था. उस वक्त कांग्रेस को 55 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे.


ये भी पढ़ें: Age Of Consent: क्या भारत में घटेगी सहमति की उम्र, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया क्यों चाहते हैं ऐसा, Age Of Consent से जुड़े विरोधाभास को जानें