Jammu-Kashmir: बीजेपी ने अनुच्छेद 370 हटाकर नया कश्मीर बनाने का वादा किया था, जानिए तीन साल में क्या-क्या बदला
Jammu Kashmir Article 370 : तीन साल पहले जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद बीजेपी ने एक नया कश्मीर बनाने का वादा किया था, लेकिन क्या वादा पूरा हुआ. जानिए तीन साल में कितना बदला कश्मीर?
Jammu Kashmir Article 370 : तीन साल पहले 5 अगस्त, 2019 को, जब केंद्र की एनडीए सरकार (NDA Government)ने जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) से अनुच्छेद 370 (Article 370)को निरस्त कर दिया था. उस वक्त इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया और वादा किया था कि जम्मू-कश्मीर में विकास की नई शुरुआत होगी और साथ ही प्रदेश से हिंसा को समाप्त कर दिया जाएगा. भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इसे नया कश्मीर कहा था, जहां सबकुछ देश के बाकी हिस्सों के बराबर होगा. अब सवाल ये है कि इस वादे को तीन साल बीत गए और इन तीन सालों में क्या बदल गया है जम्मू-कश्मीर में?
राजनीतिक परिदृश्य:
तीन साल बाद भी, जम्मू-कश्मीर में कोई निर्वाचित सरकार नहीं है क्योंकि भारत सरकार अभी भी जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र और राज्य की बहाली के लिए "सही समय" को लेकर अनिश्चितता से भरी है. जबकि परिसीमन आयोग ने जम्मू को छह और कश्मीर को केवल एक सीट देने की अपनी कवायद पूरी कर ली है - 90 विधानसभा क्षेत्रों में से 43 अब जम्मू और 47 कश्मीर क्षेत्र का हिस्सा होंगे.
इस प्रारूप में जो नया है वह यह है कि नौ सीटें अनुसूचित जनजातियों (ST)के लिए आरक्षित की गई हैं, जिनमें से छह जम्मू क्षेत्र में और तीन कश्मीर घाटी में हैं. जबकि कश्मीरी पंडितों के लिए दो और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) शरणार्थियों के लिए चार सीटें भी अलग रखी गई हैं जो पहले नहीं थी.
परिसीमन आयोग ने अब अपनी रिपोर्ट सौंप दी है, राजनीतिक दलों का आरोप है कि चुनाव और राज्य की बहाली की कोई बात नहीं है और सरकार का ध्यान एक पार्टी के राजनीतिक एजेंडे का पालन करने पर है. हालाकि जम्मू-कश्मीर में पंचायती राज की सभी इकाई काम कर रही है लेकिन सुरक्षा के अभाव में पांच सरपंच अपने अपने क्षेत्रों में नहीं जा सकते.
आतंकवाद और हिंसा
निरस्तीकरण में जम्मू-कश्मीर में हत्याओं में उग्रवाद को तेजी से समाप्त करने का वादा किया था, जो बेरोकटोक जारी है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से अब तक 459 आतंकवादी, 128 सुरक्षाकर्मी और 118 नागरिक मारे जा चुके हैं. इनमें 21 गैर-मुस्लिम (5 कश्मीरी पंडित और 16 गैर-कश्मीर / सिख) शामिल हैं, जो 2021 में चरम पर थे.
साल 2021 में कुल 229 आतंकवादी हमले हुए, जिनमें साल 2020 में 244, साल 2019 में 255 और साल 2018 में 417 हमले शामिल हैं. जम्मू और कश्मीर में इन हमलों में, 2021 में 42 सुरक्षा बल के जवान मारे गए, 2020 में 62, 2019 में 80 और 2018 में 91 जवान मारे गए. इसी तरह, साल 2021 में 41, 2020 में 37 और साल 2019 और 2018 में 39 नागरिक मारे गए थे. इसी दौरान 300 से अधिक युवा विभिन्न आतंकवादी संगठनों में बेरोकटोक शामिल हुए हैं. केंद्र सरकार ने 370 हटाने के पीछे आतंकवाद को ख़तम करना और कश्मीरी विस्थापितों को वापस कश्मीर में बसाना एक प्रमुख मुद्दा बताया था लेकिन पिछले तीन सालो में एक भी कश्मीरी पंडित वापस नहीं लोटा है.
नौकरियां और बेरोज़गारी
बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार ने सरकार को हटाने के बाद सरकारी क्षेत्र में 50 हजार नौकरियों का वादा किया था, लेकिन अब तक केवल 4 हजार नौकरियां ही दी जा सकी हैं. इनमें से 2,105 प्रवासी (कश्मीरी पंडित) प्रधानमंत्री विकास पैकेज के तहत प्रदान की गईं. नौकरियों को लेने के लिए युवक कश्मीर घाटी लौट आए थे. एक प्रश्न के लिखित उत्तर में, सरकार ने कहा कि 2020-2021 में कुल 841 नियुक्ति की गई, उसके बाद 2021-2022 में 1,264 नियुक्ति की गईं.
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने 20 जुलाई को राज्यसभा को बताया कि अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बाद से जम्मू-कश्मीर सरकार के विभिन्न विभागों में 5,502 से अधिक कश्मीरी पंडितों को सरकारी नौकरी प्रदान दी गई. लेकिन इसका कोई डेटा प्रदान नहीं किया गया है. भ्रष्टाचार ने सरकार को जम्मू-कश्मीर बैंक, जम्मू-कश्मीर पुलिस, वित्त, आरएंडबी, पीडब्ल्यूडी और जल शक्ति विभागों में परीक्षाओं और चयन सूची को रद्द करने के लिए मजबूर किया है, जिसके लिए तीन लाख से अधिक उम्मीदवारों ने 13 हजार विज्ञापित पदों के लिए आवेदन किया था, लेकिन भर्ती प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हुई है.
आज जम्मू-कश्मीर 18-35 आयु वर्ग में 25 प्रतिशत के साथ सबसे खराब बेरोजगारी वाले राज्यों की सूची में चौथे स्थान पर है और 370 को हटाने के लिए देश भर के युवाओ को कश्मीर में रोज़गार मिले यह भी एक वादा देश के साथ किया गया था.
निवेश और उद्योग :
अगस्त 2019 से, जम्मू-कश्मीर प्रशासन और केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर को निवेशकों के लिए एक गंतव्य के रूप में पेश कर रही है. इस साल की शुरुआत में, उपराज्यपाल के साथ जम्मू में सरकार द्वारा आयोजित रियल एस्टेट शिखर सम्मेलन में प्रत्येक भारतीय को जम्मू-कश्मीर में एक घर या फ्लैट रखने के लिए कहा गया था. हालांकि, सरकार ने अभी तक इन बाहरी निवेशकों के निवेश का कोई आंकड़ा पेश नहीं किया है. जबकि इकाइयों की स्थापना के लिए भूमि आवंटन के लिए 47,441 करोड़ रुपये के निवेश के साथ 4,226 प्रस्ताव ऑनलाइन मोड के माध्यम से प्राप्त हुए हैं, लेकिन सरकार द्वारा आवेदनों की वर्तमान स्थिति पर कोई डेटा उपलब्ध नहीं कराया गया है.
राजमार्ग, रेलवे, एम्स और अन्य बुनियादी परियोजनाओं सहित सरकारी वित्त पोषित परियोजनाएं पूरी गति से चल रही हैं, लेकिन ये अब तक स्थानीय लोगों के लिए रोजगार पैदा नहीं कर पाए हैं.
वहीं जहां 370 हटाने के पीछे एक मक़सद जम्मू-कश्मीर में देश के बाकी इलाके के लोगों के लिए ज़मीन और मकान खरीद को मुमकिन करना था लेकिन अगस्त 2011 से अभी तक केवल 60 लोगों ने जम्मू-कश्मीर में ज़मीन खरीदी है जिन में 95% जम्मू श्रेत्र में है. इसके साथ-साथ ना ही किसी बड़े बिल्डर ने अभ तक जम्मू-कश्मीर में हाउसिंग प्रोजेक्ट शुरू करने में रूचि दिखाई है.
पर्यटन उद्योग और हैंडीक्राफ्ट:
पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने और जम्मू-कश्मीर में कृषि, हॉर्टिकल्चर और हेंडीक्राफ्ट को देश विदेश में ले जाना भी धारा 370 को हटाने के पीछे के एक कारणों में बोलै गया था. केंद्र सरकार ने प्रदेश के विशेष दर्जे को इन उद्योगों को बढ़ावा देने के पीछे सब से बड़ी अड़चन बताया था! इस साल भले ही कोविड महामारी के बाद पहली बार 10 लाख के करीब पर्यटक घाटी घूमे लेकिन उद्योग के काम अभी भी आसान नहीं हो पाया है.
बिजली की कमी, सड़क और हवाई संपर्क की अनिश्चिता के साथ साथ प्रदेश के सुरक्षा हालात उद्योग के लिए अभी भी अड़चन साबित हो रहे है. इस साल की अमरनाथ यात्रा में जहां सरकार 8 लाख यात्रियों के आने की उम्मीद कर रही थी वही घाटी में हुए आतंकी हमलों और अल्पसख्यकों की हत्याओं ने इस पर अच्छा खासा असर डाला और यह आंकड़े 3 लाख से आगे बढ़ ही नहीं पाए.
केंद्र के सभी कानून जिन में ऐसे 175 कानून जो पहले जम्मू-कश्मीर में सीधे तौर पर लागू नहीं होते थे अभी पूरी तरह लागू है लेकिन इस के बावजूद भी ज़मीन पर लोगो के लिए जीवन आसान नहीं हो पाया है. स्थानीय सरकार के आभास और बाहर से आये प्रशासनिक अधिकारियों के चलते सरकार और आम लोगो के बीच दूरी भी बढ़ रही है! जो अगर जल्दी काम करने के प्रयास नहीं किये जाते किसी बड़ी घटना का कारन भी बन सकता है.
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