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पटना से दिल्ली तक पवन वर्मा की चिट्ठी की गूंज, नीतीश कुमार ने अभी तक नहीं दिया जवाब

नीतीश कुमार ने अब तक पवन वर्मा की चिट्ठी का जवाब नहीं दिया है. क्या सच में बीजेपी उन्हें अपमानित करती है ? ये बात तो बिहार के मुख्यमंत्री ही बता सकते हैं. पवन वर्मा ने अपनी चिट्ठी में इस बात का ज़िक्र किया था. इस बात को चिट्ठी में सार्वजनिक करने से नीतीश पवन वर्मा और मीडिया से नाराज़ हो गए. वर्मा के बारे में तो नीतीश ने कह दिया कि जिस पार्टी में जाना चाहें, चले जायें. पवन वर्मा जेडीयू के पूर्व राज्य सभा सांसद रह चुके हैं. पवन वर्मा जेडीयू पार्टी के महासचिव भी हैं.

नई दिल्ली:  पवन वर्मा के चिट्ठी कांड की गूंज पटना से दिल्ली तक सुनाई पड़ रही है. नीतीश कुमार ने दो दिनों पहले प्रशांत किशोर को भी पटना बुलाया. कई घंटों तक बातचीत की. इस बैठक में क्या हुआ, इसकी जानकारी किसी को नहीं मिली है. लेकिन नीतीश ने फिर अपनी पार्टी के उन नेताओं को भी बुलाया. जो प्रशांत को भला बुरा कहते रहते हैं. खबर है कि इस बैठक के बाद एक नेता ने अपने कुछ ट्वीट भी डिलीट कर दिए. लेकिन क्या बीजेपी उन्हें अपमानित करती रहती है ? ऐसा उन्होंने पवन वर्मा को कहा था ? इस सवाल पर नीतीश मौन हैं. वे ये भी नहीं कहते हैं कि ये सब झूठ है.

28 जनवरी को नीतीश कुमार ने पटना में अपने घर पर बैठक बुलाई है. जेडीयू के सभी सांसद, विधायक और पदाधिकारियों को आने के लिए कहा गया है. कहा जा रहा है कि नीतीश इसी मीटिंग में अपने मन की बात करें. चिट्ठी विवाद पर कुछ बोलें. प्रशांत किशोर पार्टी में रह कर बीजेपी ही नहीं अमित शाह तक को चुनौती दे रहे हैं. उम्मीद की जा रही है कि इस मीटिंग में शायद नीतीश अपना स्टैंड रखें.

जेडीयू का मामला इन दिनों जलेबी जैसा उलझता जा रहा है. प्रशांत किशोर जहां बीजेपी को अपने निशाने पर ले रहे हैं. वहीं जेडीयू के सांसद ललन सिंह और आरसीपी सिंह मिल कर प्रशांत को पर टिप्पणी कर रहे हैं. वहीं इन सब पर सीएम नीतीश किसी को कुछ नहीं बोल रहे हैं.

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बिहार में ढाई साल से नीतीश कुमार और बीजेपी की मिली जुली सरकार है. नीतीश के करीबी नेता बताते हैं कि कई मौक़ों पर उन्हें नज़रअंदाज़ किया गया. नीचा दिखाया गया. नीतीश भले ही कुछ नहीं बोलें, लेकिन जेडीयू के कुछ नेता अब खुलेआम ये सब कहने लगे हैं.

मोदी मंत्रिमंडल में जेडीयू के एक भी नेता नहीं हैं. नितीश मंत्रिमंडल में जेडीयू के लिए जितनी हिस्सेदारी चाहते थे वो उन्हें नहीं मिली.आख़िरी समय में मजबूरी में नीतीश ने ये फ़ैसला लिया. पार्टी के कोटे से कुछ सांसद मंत्री बनने को बेताब थे. लेकिन नीतीश अपनी माँग पर अड़े रहे. बिहार में जेडीयू और बीजेपी गठबंधन ने लोकसभा चुनाव में 40 में से 39 सीटें जीत ली थीं. मोदी मंत्रिमंडल से बाहर रहने की कड़वाहट अब भी बनी हुई है. यही कारण है कि मोदी के दुबारा पीएम बनने पर भी नीतीश ने उनसे औपचारिक मुलाक़ात नहीं की है.

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नीतीश कुमार के करीबी नेता बताते हैं कि मोदी राज में उनकी नहीं सुनी जाती है. राज्य सरकार की माँग ठुकरा दी जाती है या फिर फ़ाइल घूमती रहती है. 2014 के बजट में ही बिहार में एक और AIIMS बनाए जाने की बात कही गई. नीतीश सरकार ने इसके लिए दरभंगा का नाम प्रस्तावित किया. लेकिन केंद्र सरकार किसी न किसी बहाने फ़ाइल लटकाती रही. छह सालों के बाद अब मोदी सरकार ने प्रस्ताव मंजूर कर लिया है. खबर है कि इस साल के अंत में एम्स का काम शुरू हो सकता है.

पटना यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम में नीतीश ने हाथ जोड़ कर प्रधानमंत्री मोदी से पटना यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाने की मांग की थी. जिस पर पीएम नरेन्द्र मोदी ने अब तक कोई फैसला नहीं किया. जिसके बाद से नीतीश कुमार ने मंच से कुछ माँगना ही बंद कर दिया है. वहीं विश्वविद्यालय के लिए जो आर्थिक पैकेज का एलान किया गया था. आज तक वो भी नहीं मिला.

हाल में ही बाढ़ राहत के लिए केंद्र सरकार ने पैकेज का एलान किया. बिहार में इस बार बाढ़ ने एक नहीं दो बार कहर बरपाया. लेकिन मोदी सरकार ने सिर्फ़ 400 करोड़ रूपये की सहायता मंज़ूर की. जबकि कर्नाटक को 3000 करोड़ और मध्य प्रदेश को 1700 करोड़ रूपये मिले. सहयोगी दल होने के बावजूद बिहार की जेडीयू सरकार ने जितनी माँग की थी, उसका एक चौथाई भी नहीं मिला. बाक़ी राज्यों को इसके मुक़ाबले कई गुना ज्यादा मदद भेजी गई. दो सालों से बाढ़ राहत पैकेज में बिहार की अनदेखी होती रही है. राज्य सरकार ने चिट्ठी लिख कर केंद्र को अपना विरोध जता दिया है.

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