Raaj Ki Baat: दूध का जला छाछ भी फूंक कर पीता है. बीजेपी के लिए यह बात अक्षरशः लागू होती है. कोविड की दूसरी लहर के दौरान पूरे देश में मचे त्राहिमाम के बाद तीसरी लहर की आशंका से पहले बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व इस बार बेहद सतर्क है. खासतौर से बीजेपी के अभ्युदय में सबसे प्रमुख कारक और देश के सबसे बडा सूबे उत्तर प्रदेश पर खासा जोर है. सरकार और संगठन के कील-कांटे लगातार दुरुस्त किए जा रहे हैं, लेकिन जनता के बीच भरोसा केंद्र की प्राथमिकता है. इसीलिए, कोरोना से निपटने को केंद्र व राज्य सरकार की तैयारियों के साथ-साथ इस दफा संगठन को भी पूरी तरह से मुस्तैद किया जा रहा है. राज की बात ये है कि कोविड स्वयंसेवकों की ये फौज पिछली गल्तियों से जनता के विश्वास पर लगे जख्मों पर मरहम तो लगाएगी ही साथ ही घर-घर मोदी का नाम और काम पहुंचे इसको भी सुनिश्चित किया जा रहा है.
अब ये कोई राज नहीं कि कोरोना की दूसरी लहर के बाद बीजेपी समर्थित वोटरों का विश्वास कम हुआ. केंद्र के फैसलों और राज्य सरकार की क्षमता पर उनके ही लोगों ने सवाल खड़े किए. हालांकि, कोरोना की दूसरी लहर पर काफी हद तक काबू करने के बाद केंद्र और प्रदेश सरकार ने फिर से लोगों का भरोसा जीतने की कोशिशें शुरू की. गुस्से को काबू पाने में कुछ हद तक सफलता भी पाई. मगर खुदा न खास्ता यदि तीसरी लहर आई और फिर वैसे ही हालात पैदा हुए तो जनता तो हलकान होगी, लेकिन राजनीतिक तौर पर बीजेपी के लिए फिर यूपी चुनाव से पहले हालात संभाल पाना मुश्किल होगा. यूपी से जाने का मतलब बीजेपी जानती है कि फिर केंद्र की राह कितनी मुश्किल होने वाली है. इसीलिए सरकार वैक्सीनेशन तेज करने के साथ-साथ अन्य चिकित्सीय इंतजाम कर रही है, लेकिन इस दफा संगठन को पूरी तरह से अपने साथ लिया गया है. पिछली बार इस आपदा के दौरान बीजेपी संगठन के तौर पर इस स्थिति से निपटने में कहीं नहीं दिखाई पड़ रहा था, जिसका खामियाजा सरकार को ज्यादा भुगतना पड़ा.
इसीलिए, केंद्र सरकार ने पहले तो सरकार और संगठन में तालमेल की कमियों को दूर किया. राजनीतिक तौर पर उसको लेकर संगठन में कुछ फैसले लिए गए. राज की बात ये भी है कि अभी और कुछ फैसले सरकार और संगठन को लेकर लिए जाने हैं. इसीलिए, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तीन दिन तक दिल्ली भी रुक कर गए. उनके दिल्ली प्रवास के दौरान उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या भी दिल्ली आए थे. हो सकता है इन सब कवायदों का असर अगले कुछ दिनों में योगी मंत्रिमंडल से लेकर प्रदेश संगठन में उच्च स्तर पर दिखाई दे. लेकिन संगठन और सरकार को पटरी पर लाने के साथ जनता जिन मुद्दों से ज्यादा प्रभावित है, असली लड़ाई उन्हीं के समाधान की है. ये बात केंद्र की मोदी सरकार ठीक से समझती है. इसीलिए, प्रदेश सरकार-संगठन के कीलकांसे दुरुस्त करने के साथ ही असली ताकत जनता के बीच तक मोदी ब्रांड का करिश्मा बरकरार रखने की है. जो भरोसा जनता का पीएम पर है, उसे और आगे तक ले जाने की है.
राज की बात है कि इसके लिए कोविड स्वयंसेवक दो स्तर पर तैनात किए जा रहे हैं. पहले बूथ स्तर पर. बीजेपी जिस तरह से चुनाव के दौरान बूथ पर अपने कार्यकर्ताओं की नियुक्ति करती थी, वैसे ही हर बूथ पर दो कोविड स्वयंसेवक नियुक्त किए जा रहे हैं. इसी तरह मंडल स्तर पर पांच स्वयंसेवकों की नियुक्ति हो रही है. इनमें एक डाक्टर, दो आईटी के पारंगत लोगों के साथ एक युवा और एक महिला होंगे. ये सारी कवायद वैक्सीनेशन में लोगों की मदद करने के साथ-साथ किसी भी तरह की असुविधा है तो उसे दूर करने की होगी. सरकारी अथारिटी और जनता के बीच में ये लोग सेतु का काम करेंगे. जनता को जागरुक करने के साथ-साथ ये लोग सुविधा तो देंगे ही साथ ही कैसे केंद्र और प्रदेश सरकार उनकी सेहत के लिए फिक्रमंद है और तत्परता से कदम उठा रही है, इसे भी स्थापित किया जाएगा.
इसके साथ ही कोविड काल में लोगो के रोजगार गए. लोगों को पलायन करना पड़ा. सेहत के साथ-साथ लोगों को खाने की कमी न हो, इसके लिए मोदी सरकार ने देश के खाद्यान्नों के भंडार खोल दिए हैं. हर माह गरीब कल्याण अन्य योजना के तहत दो बार गरीबों को अनाज मुहैया कराया जा रहा है. लोगों को अनाज मिलता रहे, यह सुनिश्चित कराने के लिए जनप्रतिनिधियों की ड्यूटी लगाई जा रही है. इसका उद्देश्य ये है कि मोदी सरकार ये कर रही है, इसकी सनद भी लाभार्थियों को रहे. इसके तहत राज्य सरकार ने पांच, 10 और 15 किलो के बैग छपवाये हैं. इनमें मोदी और योगी की फोटो है. इसी तरह जनप्रतिनिधियों से भी कहा गया है कि वे भी पीएम की फोटो के साथ अपनी फोटो लगाकर बैग छपवायें और लोगों तक पहुंचाए. मतलब कोविड काल में सरकार सेहत और पेट का पूरा इंतजाम कर रही है, यह जमीन पर हो भी जनता को पता भी हो, इसे सुनिश्चित किया जा रहा है.