Loksabha Election Plan 2024: एक तरफ कांग्रेस नए अध्यक्ष और राजस्थान (Rajasthan) के सीएम पद की लड़ाई में उलझी हुई है तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी (BJP) लोकसभा चुनावों के लिए मैदान में कूदने को तैयार खड़ी है. बीजेपी जहां लगातार चुनावों में जीत के जरिए मजबूत बनी हुई है तो वहीं कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) के जरिए पार्टी में नई जान फूंकने की कोशिश कर रही है.भारत जोड़ो यात्रा निकालने वाली पार्टी घर में ही टूटी दिखाई दे रही है.
वहीं ये टीम मोदी का कमाल है कि बीजेपी मुख्यालय जीत का मैदान बना हुआ है. 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं और इसकी कमान खुद जेपी नड्डा ने अपने हाथ में ले ली है. नड्डा और उनकी पूरी टीम अलग-अलग बैठकों के जरिए लोकसभा 2024 को विपक्ष के लिए कठिन रण बनाने के प्रण में दिख रही है. बकौल बीजेपी चीफ नड्डा इस बार उसकी लड़ाई विपक्ष से नहीं होकर खुद से है. उन्होंने एबीपी न्यूज से कहा कि हमें विपक्ष से नहीं अपने पुराने रिकॉर्ड से पार पाना है.
बीजेपी में क्या करते हैं प्रदेश प्रभारी?
बीजेपी 2019 के परिणाम 303 के पार जाना चाहती है. इसके लिए उसने अपनी मुहिम शुरू कर दी है. ये संगठन के वो खिलाड़ी हैं जो प्रभार वाले संगठन की ताकत और कमजोरी का आकलन करके जीत की सटीक रणनीति तैयार करती है. दरअसल चुनाव से पहले जीत के लिए जमीन तैयार करना इन प्रदेश प्रभारियों की जिम्मेदारी है.
लोकसभा प्रवासियों की बैठक में क्या फैसला हुआ?
प्रदेश प्रभारी के बाद पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने लोकसभा प्रवासियों की बैठक ली. ये वो प्रवासी हैं जो 144 लोकसभा सीटों पर प्रवास करके आए हैं जहां बीजेपी चुनाव नहीं जीत पाई है इसमें सोनिया गांधी की रायबरेली सीट शामिल है और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले की बारामती सीट भी शामिल है.
इसमें तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल और तमिलनाडु की वे सीटें भी शामिल है जहां बीजेपी या तो चुनाव नहीं जीत पाई या फिर वह कभी चुनाव जीती ही नहीं. जाहिर तौर पर ये कठिन लक्ष्य है तभी बीजेपी ने अपने बड़े नेताओं, केंद्रीय मंत्रियों को इस सीट पर जीत का फॉर्मूला ईजाद करने का जिम्मा सौंपा है. ये तब और जरूरी हो जाता है जब अमित शाह ये कहते हैं कि अगर मैं आज अध्यक्ष होता तो मेरा मुख्यालय तमिलनाडु की जगह चेन्नई में होता. मतलब साफ है बीजेपी अपनी आंखों में दक्षिण विजय का सपना पाले हुए हैं.
कितनी मजबूत है टीम बीजेपी?
कांग्रेस के मुकाबले मोदी की टीम कितनी मजबूत है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मंत्री और संगठन के सिपाही सभी का एक लक्ष्य संगठन के साथ सरकार बनाना है. गृहमंत्री अमित शाह सरकार के साथ संगठन को प्राथमिकता देते हैं और उनके पीछे सरकार के सभी मंत्री खड़े हो जाते हैं इसलिए सरकार के साथ आने वाली ख़ामियों से बीजेपी अभी तक बची हुई है और इसका प्रतिबिंब चुनावी नतीजों में दिखता है.
अमित शाह के सर पर दो बार उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के लोकसभा चुनाव कराने का सेहरा बंधा हुआ है. 2019 का चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा गया और उन्होंने 2014 को दोहरा दिया. धर्मेंद्र प्रधान कुशल रणनीतिकार हैं और वह सरकार में रहते हुए संगठन के लिए हमेशा से काफी समर्पित नेता रहे. उन्होंने बिहार, मध्य प्रदेश, उड़ीसा जैसे राज्यों में लोकसभा चुनावों में बड़ी भूमिका निभाई. भूपेन्द्र यादव ऐसे मंत्री है जो देश के सात राज्यों के अलग-अलग वक्त प्रभारी रह चुके हैं और तकरीबन हर बार जीत की इबारत लिखी है,अभी उत्तर प्रदेश जैसे राज्य को देख रहे है.
टीम बीजेपी में कौन नेता है?
सुनील बंसल, बीजेपी के महासचिव दो बार उत्तर प्रदेश का लोकसभा और विधानसभा जिताने का श्रेय इनके सर भी बांधा जाता है. जमीन को पढ़ एयर सटीक रणनीति बनाने में माहिर हैं, इस बार उनके जिम्मे फिर ले बंजर जमीन आई है. पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और तेलंगाना में बीजेपी को बड़ी जीत दिलाने का जिम्मा इनके कंधो पर है.
छत्तीसगढ़ में मोदी के पुराने भरोसेमंद ओमप्रकाश माथुर को लगाया गया है वे लंबे समय तक गुजरात मामले के प्रभारी रहे हैं. 2017 में उनको यूपी विधानसभा का प्रभारी बनाया गया था. उनकी छवि जीत की रणनीति बनाने में माहिर और कटु निर्णय लेने में संकोच नहीं करने वाले नेता की है. विनोद तावड़े इनके कंधे पर बिहार में करिशमा करने की जिम्मेदारी है तो महाराष्ट्र के कद्दावर नेताओं में गिनती होती है लेकिन बिहार में अगले लोकसभा चुनावों में जीत हुई तो माना जा रहा है की तावड़े के कद में बढ़ोतरी होगी.
बीजेपी की जीत के पीछे काम करते हैं कई लो प्रोफाइल नेता
अरुण सिंह बीजेपी महासचिव हैं जो लो प्रोफाइल रहकर अमित शाह और जेपी नड्डा को जमीन में उतारने में माहिर माने जाते हैं. उन्होंने कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार गिराकर बीजेपी की सरकार बनाई और अब राजस्थान, कर्नाटक दोनों जगहों पर भगवा परचम फहराने की जिम्मेदारी अरुण सिंह के कंधों पर है.
प्रकाश जावड़ेकर फिलहाल काफी लो प्रोफाइल नेता हैं जिनकी जिम्मेवारी केरल में झंडा बुलंद करना है. मुरलीधर राव को मध्य प्रदेश में लोकसभा का परिणाम दोहराना होगा तो झारखंड में लक्ष्मीकांत बाजपेयी के कंधो पर अहम जिम्मेदारी है जो संगठन की दृष्टि से बेहद अहम है.
कहां पर कौन नेता काम कर रहा है?
बीएल संतोष के कंधों पर पूरे संगठन की ज़िम्मेदारी है तो शिव प्रकाश के कंधों पर दक्षिण विजय की ज़िम्मेदारी है. 2024 के लोकसभा चुनावों में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु ये चार राज्य भगवा लहर से काफी हद तक अछूते रहे हैं. बीजेपी ने इन चार राज्यों की ज़िम्मेदारी सह संगठन मंत्री शिव प्रकाश के कंधो पर डाली है. शिव प्रकाश 2017 में यूपी विधान भवन चुनाव और 2014 के बाद से पश्चिम बंगाल में लगातार काम कर चुके हैं.
संगठन के कुशल शिल्पी माने जाने वाले शिव प्रकाश, संगठन खड़ा करने, संगठन को जुझारू बनाने और संगठन को लड़ने के लिए प्रेरित करने में माहिर माने जाते है. कार्यकर्ता के पहचान कर उसे मुफीद काम सौंपते है उनके निशाने पर सबसे ऊपर तेलंगाना है यहां 2024 के पहले विधान भवन चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा संभावनाएं हैं.
आरएसएस से प्रचारक बन कर निकले शिव प्रकाश ने फ़िलहाल दक्षिण में अपना केंद्र हैदराबाद को बनाया हुआ है. जिस मोदी के पास ऐसे कुशल नेताओं की टीम हो, जो साल दर साल विजय पताका लेकर सिर्फ़ आगे दौड़ना जानती हो उसे लोकसभा के रण में हराना कैसे आसान हो सकता है.