मुंबई: बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने महाराष्ट्र में बाजी पलटने पर कहा है कि मैंने पहले कहा था कि क्रिकेट और राजनीति में कुछ भी हो सकता है, अब आप समझ सकते हैं कि मेरा क्या मतलब था. दरअसल, बीजेपी के देवेंद्र फड़णवीस को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने आज सुबह-सुबह मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. फड़णवीस के साथ शरद पवार के भतीजे और एनसीपी नेता अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली. एनसीपी प्रमुख शरद पवार का दावा है कि अजित पवार का यह व्यक्तिगत फैसला है.


दरअसल, यह शपथ ग्रहण ऐसे समय में हुआ है जब एक दिन पहले शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के बीच मुख्यमंत्री पद के लिए शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के नाम पर सहमति बनी थी. शिवसेना नेता संजय राउत ने बीजेपी के साथ हाथ मिलाने का फैसला लेकर अजित पवार पर शिवसेना की पीठ में छुरा घोंपने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि शरद पवार और उद्धव ठाकरे मुंबई में जल्द ही संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करेंगे.


फड़णवीस की मुख्यमंत्री के तौर पर वापसी के साथ ही राज्य में महीने भर से चल रहा राजनीतिक गतिरोध खत्म हो गया. राज्य में 12 नवंबर को लगाए राष्ट्रपति शासन को शनिवार तड़के हटा दिया गया. इस घटनाक्रम ने न केवल राजनीतिक गलियारे में सरगर्मियां बढ़ा दी है बल्कि यह राज्य के लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया है क्योंकि शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस राज्य में सरकार गठन को लेकर बातचीत कर रहे थे.


शरद पवार ने शुक्रवार शाम को ही कहा था कि नयी सरकार का नेतृत्व उद्धव ठाकरे करेंगे. इस घोषणा ने उन अटकलों को खत्म करने का संकेत दिया था कि कौन मुख्यमंत्री बनेगा. तीनों पार्टियों ने नयी सरकार के गठन के लिए न्यूनतम साझा कार्यक्रम (सीएमपी) का मसौदा भी तैयार कर लिया था.


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बहरहाल, जब शनिवार तड़के शपथ ग्रहण समारोह हुआ तो उसके बाद शरद पवार ने ट्वीट किया, ‘‘महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए बीजेपी को समर्थन देने का अजित पवार का फैसला उनका व्यक्तिगत निर्णय है. यह एनसीपी का फैसला नहीं है. हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हम इस फैसले का समर्थन नहीं करते.’’


पत्रकारों से बातचीत में राउत ने कहा, ‘‘अजीत पवार ने शिवसेना की पीठ में छुरा घोंपा है. सरकार बनाने के लिए बीजेपी के साथ हाथ मिलाना विश्वासघात है.’’ गठबंधन में राज्य विधानसभा चुनाव लड़ने वाली बीजेपी और शिवसेना ने 288 सदस्यीय सदन में क्रमश: 105 और 56 सीटें जीती थीं लेकिन शिवसेना ने बीजेपी द्वारा मुख्यमंत्री पद साझा करने से इनकार करने के बाद उसके साथ अपने तीन दशक पुराने संबंध खत्म कर लिए. दूसरी ओर, चुनाव पूर्व गठबंधन करने वाली कांग्रेस और एनसीपी ने क्रमश: 44 और 54 सीटें जीती.


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