इन दिनों क्या कर रहे हैं रोज मीडिया की सुर्खियों में रहने वाले विजय कुमार मल्होत्रा
लाहौर में जन्मे और दिल्ली को अपनी कर्मस्थली बनाने वाले मल्होत्रा ने अटल बिहारी वाजपेयी व लालकृष्ण आडवाणी के साथ ही संघ से निकलकर जनसंघ के जरिये राजनीति में कदम रखा था.
नई दिल्ली: संसद के भीतर व बाहर हर मसले पर तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार का पक्ष रखकर हर रोज मीडिया की सुर्खियों में रहने वाले भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा आजकल कहां हैं ? सियासी गलियारों में अक्सर यह सवाल पूछा जाता है. आगामी दिसंबर में 90 बरस के होने वाले मल्होत्रा भले ही राजनीति में सक्रिय न हों, लेकिन खेलों की दुनिया में वे पूरे जोशो-खरोश के साथ मैदान में डटे हुए हैं.
1999 के लोकसभा चुनाव में दक्षिण दिल्ली सीट से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सबसे ज्यादा वोटों से हराने का सेहरा बांधे मल्होत्रा इन दिनों पूर्वोत्तर राज्यों के साथ ही आतंकवाद से प्रभावित जम्मू कश्मीर के अलावा नक्सल प्रभावित इलाकों में खेलों को बढ़ावा देने और भटके हुए युवाओं को खेलों से जोड़कर उन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने के काम में जुटे हुए हैं. भारतीय तीरंदाजी संघ और इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन से बरसों तक जुड़े रहे मल्होत्रा के खेल-अनुभव व समर्पण को देखकर ही मोदी सरकार ने करीब छह साल पहले ऑल इंडिया कॉउन्सिल ऑफ स्पोर्ट्स का गठन करके उन्हें इसका अध्यक्ष बनाया. कहने को यह खेल व युवा मामले के मंत्रालय की एडवाइज़री बॉडी है, लेकिन देश की खेल नीति बनाने में इसका अहम योगदान है. मल्होत्रा को राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त है.
(तस्वीर: सोशल मीडिया)भाजपा के प्रवक्ता व लोकसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक की हैसियत से प्रतिदिन मीडिया के अनगिनत सवालों का जवाब देने वाले मल्होत्रा हालांकि अब राजनीतिक सवालों का जवाब देने से बचते हैं. वह कहते हैं, "55 साल तक मीडिया के साथ सिर्फ राजनीति पर ही बातें हुईं. वह पारी खत्म हुई. अब विशुद्ध रुप से खेलों पर ही सारा फोकस है. यही मेरी दिनचर्या का हिस्सा है. चूंकि मैं 'अटल स्मृति न्यास' से भी संस्थापक सदस्य के रुप मे जुड़ा हुआ हूं, तो उसकी गतिविधियों के लिये भी वक़्त देता हूं."
लाहौर में जन्मे और दिल्ली को अपनी कर्मस्थली बनाने वाले मल्होत्रा ने अटल बिहारी वाजपेयी व लालकृष्ण आडवाणी के साथ ही संघ से निकलकर जनसंघ के जरिये राजनीति में कदम रखा था. 1967 में वे मुख्य कार्यकारी पार्षद निर्वाचित हुए थे और तब इस पद की वही हैसियत थी जो आज मुख्यमंत्री की है. बाद के दिनों में मल्होत्रा, केदारनाथ साहनी और मदनलाल खुराना की 'तिकड़ी' ने ही दिल्ली में पहले जनसंघ, फिर जनता पार्टी और उसके बाद भाजपा को मजबूत बनाया.