नई दिल्ली: डॉ बूकानाकेरे सिद्धलिंगप्पा यदुरप्पा (बीएस यदुरप्पा). यानि 75 साल की आयु में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए दोबारा दक्षिण का द्वार खोलने वाला एक ऐसा शख्स जिसने कभी अपनी आन बान शान के खातिर बीजेपी छोड़ दी थी. आज जब येदुरप्पा ने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो उनका इतिहास खंगाला जा रहा है. यह जान कर अचरज होगा की यदुरप्पा कभी चावल मिल में क्लर्क की नौकरी करते थे.
बीजेपी से इस्तीफा देकर बना चुके हैं नई पार्टी
यदुरप्पा को दक्षिण भारत के राज्य कर्नाटक में बीजेपी को ऐतिहासिक जीत दिलाने के लिए भी जाना जाता है उन्होंने दक्षिण भारत में बीजेपी के लिए प्रवेश द्वार बनाया. उनके नेतृत्व में बीजेपी ने 2008 विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत से जीत दर्ज की और यदुरप्पा ने 30 मई 2008 को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की.
यदुरप्पा को 2011 में उस वक्त तब तगड़ा झटका लगा जब उनके खिलाफ पांच मामले दर्ज किए गए, यदुरप्पा पर जमीन के अवैध अधिसूचना और भ्रष्टाचार के आरोप लगे, हालांकि हाईकोर्ट ने उन्हें क्लीन चिट देकर उन्हें और पार्टी को राहत दे दी. यदुरप्पा का कनेक्शन बेल्लारी के खनन माफिया और बीजेपी के पूर्व नेता जी जनार्दन रेड्डी से भी जुड़ा.
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केंद्रीय नेतृत्व ने भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद यदुरप्पा से 31 जुलाई 2011 को मुख्यमंत्री पद का इस्तीफा ले लिया. नाराज यदुरप्पा ने 30 नवंबर 2012 को बीजेपी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और उन्होंने कर्नाटक जनता पक्ष नाम से नई पार्टी बना ली. 2013 में राज्य विधानसभा के चुनाव हुए. बीजेपी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा. हार के बाद यदुरप्पा ने 2 जनवरी 2014 को बगैर शर्त बीजेपी में वापसी की. कर्नाटक में बीजेपी फिर से मजबूत होने लगी. यदुरप्पा को 2016 में फिर से प्रदेशाध्यक्ष चुना गया.
जेडीएस से मिलकर सरकार बना चुके हैं यदुरप्पा
यदुरप्पा ने 12 नवंबर 2007 को कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी. हालांकि, जेडी (एस) ने मंत्रालयों पर असहमति जताते हुए सरकार को समर्थन करने से इंकार कर दिया जिसके परिणामस्वरूप 19 नवंबर 2007 को उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में इस्तीफा देना पड़ा.
यदुरप्पा का आरएसएस कनेक्शन
1965 में सामाजिक कल्याण विभाग में प्रथम श्रेणी क्लर्क के रूप में नियुक्त यदुरप्पा ने नौकरी छोड़ दी थी और शिकारीपुरा चले गए जहां उन्होंने वीरभद्र शास्त्री की शंकर चावल मिल में एक क्लर्क के रूप में कार्य किया.
कभी चावल मिल में क्लर्क थे
अपने कॉलेज के दिनों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े यदुरप्पा ने 1970 में सार्वजनिक सेवा शुरू की. उन्हें संघ की शिकारीपुर इकाई के कार्यवाहक (सचिव) नियुक्त किया गया था. इसके बाद वह 1972 में शिकारीपुरा टाउन नगर पालिका के लिए चुने गए और उन्हें जनसंघ की तालुक इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. यदुरप्पा 1975 में शिकारीपुरा के टाउन नगर पालिका के अध्यक्ष चुने गए. इसके बाद 1980 में उन्हें बीजेपी की शिकारीपुरा तालुक इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया गया और 1988 में यदुरप्पा को कर्नाटक की बीजेपी इकाई का अध्यक्ष बना दिया गया.
शिकारीपुरा से जीतते रहे हैं यदुरप्पा
यदुरप्पा ने 1983 में शिकारीपुरा सीट से पहली बार चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी. इसके बाद उन्होंने 1985 उप-चुनाव, विधानसभा चुनाव 1989, 1994, 2004, 2008 और 2013 में जीत हासिल कर इस निर्वाचन क्षेत्र को विपक्षी दलों के लिए अभेद्य किले में स्थापित कर दिया.
1999 में उन्हें कांग्रेस उम्मीदवार महालींग्प्पा के हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा था लेकिन उसके बाद से उन्होंने कभी इस सीट पर हार नहीं मिला. इस बार के चुनाव में भी लिंगायत समुदाय से आने वाले यदुरप्पा ने शिकारीपुरा से बड़ी जीत हासिल की है. शिकारीपुरा विधानसभा क्षेत्र में 2014 में हुए उपचुनाव में यदुरप्पा की जगह उनके बेटे बी.वाई राघवेंद्र ने चुनाव लड़ा था और कांग्रेस के अपने प्रतिद्वंद्वी एच.एस. शांथवीरप्पा गौड़ा को मात दी थी.
यदुरप्पा की संपत्ति
यदुरप्पा ने चुनाव आयोग को दिये गये एफिडेविट में बताया है कि उनके पास छह करोड़ 54 लाख रुपये की संपत्ति है. एफिडेविट में शिकारीपुरा के 13 एकड़ जमीन, दो कमर्शियल बिल्डिंग, बेंगलुरू और शिकारीपुरा के दो मकान आदि का जिक्र है. पिछले साल की तुलना में देखें तो उनकी संपत्ति में 71 लाख रुपये यानि 12 प्रतिशत का इजाफा हुआ है.
यदुरप्पा अपने शपथपत्र में अपने ऊपर दर्ज 14 केस का जिक्र किया है. इनमें गलत तरीके से जमीन अधिग्रहण करने और वोटरों को प्रभावित करने का मामला शामिल है. 2013 में येदियुरप्पा के खिलाफ 17 केस दर्ज थे.
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