BJP Mission South: आज देश में बीजेपी का परचम लहरा रहा है. उत्तर प्रदेश से लेकर मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र तक बीजेपी की सरकार है. पूर्वोत्तर में भी कमल खिल चुका है. उत्तर भारत के जिन राज्यों में अभी वह सत्ता में नहीं है, वहां प्रमुख विपक्षी दल है. पश्चिम बंगाल में भी ऐसा ही है. लेकिन अभी भी बीजेपी का विजय रथ दक्षिण में जाकर बार-बार रुक जा रहा है. यही वजह है कि पीएम मोदी के नेतृत्व में बीजेपी इस बार दक्षिण विजय के लिए सारे समीकरण साध रही है. 


दक्षिण भारत के 6 राज्यों कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में इस समय केवल कर्नाटक में ही बीजेपी की अपने बूते सरकार है. पुडुचेरी में भी बीजेपी गठबंधन के साथ सत्ता में है.


बीजेपी के लिए दक्षिण क्यों है अहम


दक्षिण भारत के इन राज्यों में 130 लोकसभा सीटें हैं, जिसमें से अभी केवल 29 सीटें बीजेपी के पास हैं. इसमें 25 अकेले कर्नाटक से ही हैं. जबकि 2019 में चार सीट तेलंगाना में जीती थी. इससे समझा जा सकता है कि बाकी के राज्यों में बीजेपी की स्थिति कैसी है. दक्षिण को प्रमुखता से लेने की एक वजह और भी है. उत्तर भारत के प्रमुख राज्यों में पिछले दो लोकसभा चुनावों में बीजेपी को बंपर सीटें मिली हैं. ऐसे में बीजेपी इस बात का ध्यान रख रही है कि अगर यहां पर सीटें कम हों तो इसकी भरपाई दक्षिण से की जा सके.


कर्नाटक में होगा प्लान साउथ का टेस्ट


बीजेपी के दक्षिण प्लान का टेस्ट अगले महीने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में होने जा रहा है. बीजेपी के लिए दक्षिण के अपने इकलौते दुर्ग को बचाए रखने की चुनौती है तो साथ ही यहां के नतीजों का असर दूसरे राज्यों पर भी पड़ेगा, जहां इस साल चुनाव होने हैं. अगर बीजेपी कर्नाटक हारती है तो साल के आखिर में होने वाले तेलंगाना चुनाव में बीजेपी का सत्ता में आना बेहद मुश्किल होगा. तेलंगाना में बीजेपी इस बार बड़ी उम्मीद लगाए हुए है.


दक्षिण भारत में बीजेपी की चुनौतियां


दक्षिण में जमीन मजबूत करने में जुटी बीजेपी के लिए मुश्किल है कि आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में बीजेपी का आधार बहुत कमजोर है. तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश व केरल में बीजेपी के पास एक भी लोकसभा सीट नहीं है. वहीं, आंध्र प्रदेश और केरल में तो पार्टी का एक विधायक भी नहीं है. 2019 के लोकसभा चुनाव में आंध्र प्रदेश में बीजेपी को महज 1 फीसदी वोट मिले थे.


हिंदी पार्टी का टैग


आंध्र प्रदेश की तरह ही बीजेपी के सामने तमिलनाडु में भी चुनौती बड़ी है. बीजेपी की छवि हिंदूवादी पार्टी की है और तमिलनाडु द्रविड़ आंदोलन की जमीन रही है. इसके साथ ही बीजेपी के लिए हिंदी पार्टी का टैग ज्यादा मुश्किल पैदा करता है. बीजेपी की आहट को देखते हुए हाल के दिनों में डीएमके ने हिंदी के मुद्दे को एक बार फिर से हवा देना शुरू कर दिया है.


तमिलनाडु में हिंदी पार्टी और द्रविड़ आंदोलन के मुकाबले मंदिरों के आस-पास राजनीति को लाने की कोशिश कर रही है. मंदिरों पर किसका कब्जा हो इसे लेकर बीजेपी सवाल उठा रही है. बीजेपी के साथ समान विचारधारा वाले वीएचपी जैसे संगठन इसमें आगे हैं. बीजेपी के साथ एक और प्लस फैक्टर है कि वह एआईएडीएमके के साथ अच्छे रिश्ते में है और गठबंधन में उतरकर पार्टी आधार बढ़ा सकती है.


केरल में नहीं लग रही सेंध


दक्षिण के एक और महत्वपूर्ण राज्य केरल में बीजेपी पूरा जोर लगा रही है लेकिन उसे सफलता नहीं मिल रही है. बीजेपी का यहां पर कोई विधायक नहीं है. ऐसा तब है जब उसके मातृसंगठन आरएसएस की यहां पर 4500 से ज्यादा शाखाएं लगने का दावा किया जाता है. केरल में भी हिंदूवादी पार्टी होने का तमगा बीजेपी के लिए मुश्किल बन रहा है. राज्य में एक प्रभावी आबादी ईसाई समुदाय की है और बीजेपी की नजर इसी पर है. हाल ही में कांग्रेस नेता एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी के पार्टी में शामिल होने से बीजेपी को उम्मीद है कि वह इस समुदाय को अपने पाले में खींचने में सफल होगी.


कोई बड़ा नेता नहीं


कर्नाटक और तेलंगाना को छोड़ दिया जाए तो दक्षिण के राज्यों में बीजेपी के पास कोई बड़े कद का नेता नहीं है. बीजेपी को कर्नाटक की तरह ही दूसरे राज्यों में भी सरकार बनाने के लिए येदियुरप्पा की तरह ही करिश्माई नेता की सबसे ज्यादा जरूरत है.


यह भी पढ़ें- अनिल एंटनी ने क्यों छोड़ा कांग्रेस का हाथ? जानिए केरल में ईसाइयों तक पहुंचने के लिए बीजेपी का नया प्लान