बीजेपी सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने कहा कि एक इमरजेंसी साल 1975 में लगाई गई थी जिस वक्त इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं और दूसरी बार देश में इमरजेंसी जैसी स्थिति 2008 में बनी. मध्य प्रदेश में शुक्रवार को आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान प्रज्ञा ने कहा कि यह स्थिति उस वक्त बनी जब मालेगांव बम विस्फोट केस में उन्हें जेल के अंदर डाला गया था.
बीजेपी सांसद ने कहा कि मैंने स्वंय उस चीज को देखा भी है और झेला भी है और सुना भी है. मेरे आचार्य जी जिन्होंने मुझे कक्षा आठ में पढ़ाया उनकी हेमंत करकरे ने ऊंगलियां तोड़ दी. शिक्षक से पूछा कि बताओ वो क्या करती थीं. प्रज्ञा ने कहा कि हेमंत करकरे को लोग देशभक्त कहते हैं जबकि वास्तव में जो देशभक्त हैं, उन्हें देशभक्त नहीं कहते हैं.
ठाकुर ने कहा, ‘‘झूठे मामले को गढ़ने और झूठे सबूत जमा करने के लिए ऐसा किया गया.’’ उन्होंने कहा कि सच्चे देशभक्त महाराष्ट्र के आईपीएस अधिकारी करकरे को देशभक्त नहीं कहते हैं. साल 2019 में भी प्रज्ञा ने अपने एक बयान में कथित तौर पर कहा था कि करकरे ने हिरासत में उनके साथ बुरा व्यवहार किया था इसके लिए उन्होंने उन्हें श्राप दिया था, इसलिए करकरे की मृत्यु हो गई. बाद में इस टिप्पणी की आलोचना होने पर प्रज्ञा ने माफी मांग ली थी.
बीजेपी सांसद ने आगे कहा कि मैंने अपना घर वर्षों पहले छोड़ दिया था और मैं संगठन मंत्री थी. देश के लिए मैंने अपना जीवन समर्पित किया था. लेकिन डर पैदा करने के लिए हमें और शिक्षकों की भी ऊंगलियां और पसलियां तोड़ी गईं. ये किसलिए था क्या ये लोकतंत्र था.
इधर मध्य, प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण सुभाष यादव ने प्रज्ञा ठाकुर पर निशाना साधा. उन्होने कहा कि कांग्रेस जिस प्रज्ञा सिंह ने अपने कर्मों, आचरणों से भगवा वस्त्र, वास्तविक हिंदुत्व और राष्ट्रधर्म को कलंकित कर दिया है, उन्होंने आज उन्हें शिक्षित करने वाले दिवंगत आचार्य के चेहरे पर भी कालिख पोत दी.
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