अपनी बदहाली मिटाने के लिए राजनैतिक दल JNU के माध्यम से खोज रहे हैं संजीवनी- राकेश सिन्हा
राकेश सिन्हा ने कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण है कि 1% छात्र जो राजनीति में सक्रिय रहते हैं वह 99% छात्रों को उसमें बहा ले जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि हिंसा चाहे जिसके द्वारा जैसे भी हो उसमें प्रशासन और पुलिस को निष्पक्षता के साथ त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए.
नई दिल्ली: जेएनयू में हुई हिंसा की निंदा करते हुए बीजेपी सांसद और पूर्व छात्रनेता राकेश सिन्हा ने कांग्रेस और वामपंथी दलों पर निशाना साधा है. उन्होंने एबीपी न्यूज़ से बात करते हुए कहा कि राजनैतिक दल अपनी बदहाली मिटाने के लिए जेएनयू के माध्यम से संजीवनी ढूंढ रहे हैं क्योंकि उनकी अपनी जमीनी राजनीति समाप्त हो चुकी है. राकेश सिन्हा जेएनयू मामले में बात कर रहे थे. सिन्हा ने कहा कि जब छात्र नेता राजनीतिक पार्टी का कार्यकर्ता और उनका सिपाही बन जाता है, तब छात्र राजनीति में गिरावट आ जाती है. जेएनयू एक प्रयोग धर्मी विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता था. वह प्रयोग धर्मी विश्वविद्यालय राजनीति की प्रयोगशाला बन गई है.
राकेश सिन्हा ने कहा कि ''दुर्भाग्यपूर्ण है कि 1% छात्र जो राजनीति में सक्रिय रहते हैं वह 99% छात्रों को उसमें बहा ले जा रहे हैं. दुर्भाग्यपूर्ण है कि जेएनयू में वामपंथी नेता अपना अधिपत्य बनाए रखने के लिए वैकल्पिक विचारधारा को दबाने का लगातार प्रयास कर रहे हैं.'' उन्होंने कहा कि ''हिंसा चाहे जिसके द्वारा जैसे भी हो उसमें प्रशासन और पुलिस को निष्पक्षता के साथ त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए. परिसर में स्वतंत्र वातावरण तभी हो सकता है, जब स्वतंत्रता का माहौल हो, निर्भयता के साथ छात्र अपनी राजनैतिक और अकादमी गतिविधियां कर सकें. यह तब संभव है जब बाहरी गतिविधियां बंद हो. लेकिन जो वीडियो सर्कुलेट हो रहे हैं, उसमें विद्यार्थी परिषद के छात्रों पर नकाब पहनकर जो मारपीट की गई. उसमें कथित रूप से छात्रसंघ अध्यक्ष खुद शामिल रही हैं. उसकी जांच हो और कार्रवाई हो.''
सिन्हा ने कहा कि ''विश्वविद्यालय परिसर अध्ययन अध्यापन के लिए होता है. छात्र राजनीति छोटा सा हिस्सा है. लेकिन कुछ लोगों ने इसे राजनीति का अखाड़ा बना दिया है. कभी-कभी लगता है कि घटना घटने से पहले बड़े-बड़े नेता जेएनयू में दस्तक देने लगते हैं. मैं जानना चाहता हूं ऐसी कौन सी बात होती है कि उनको पूर्व में जानकारी होती है. जो अभी घटना है वह अभी प्रायोजित है, वास्तव में सीएए के मामले में तर्क के आधार पर भावना के आधार पर राजनीतिक दल पराजित हो रहे हैं. तो उसके लिए दूसरे रास्तों से विरोध का रास्ता खोज रहे हैं. लेकिन मैं हिंसा का समर्थक नहीं हूं परिसर में घटनाएं कैसे हुईं, बाहरी ताकते कैसे वंहा पहुंचीं, इसकी जांच होनी चाहिए.''
बीजेपी सांसद ने कहा कि ''राजनीतिक दलों को भी संजीदगी बरतनी चाहिए. अपनी राजनीतिक रोटी सेकने के लिए छात्रों को मोहरा ना बनाएं. अकादमियों में जो हो रहा है इसमें राजनीतिक दलों का बड़ा हाथ है. वामपंथी दल और कांग्रेस कैंपस में अपनी ताकत बढ़ाने में लगे हुए हैं. ये चाहते हैं कि वाइस चांसलर की नियुक्ति भी सरकार ना करें. देश में एक ऐसा तबका है जिसे नरेंद्र मोदी अस्वीकार हैं. चाहे नरेंद्र मोदी इस देश के लिए जितना करें या ना करें.'' उन्होंने कहा कि ''2014 में सरकार बनते ही जो अवॉर्ड वापसी का सिलसिला शुरू हुआ था उसी का यह एडिशन 2 हो रहा है. इसमें तीन तरह के लोग शामिल हैं. पहले वो लोग हैं जो कश्मीर में 370 हटाने के विरोधी हैं, दूसरे वह लोग हैं जो ट्रिपल तलाक को हटाने के पक्ष में नहीं थे. और वो संप्रदायिकता की आड़ में लोगों को उकसा रहें हैं. तीसरा विदेशी मीडिया जो आर्टिकल के जरिये सरकार के खिलाफ जहर उगल रहे हैं.''
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