(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
अमित शाह-नीतीश में चली 15 मिनट की मुलाकात, सम्मानजनक सीटों का मिला भरोसा, दशहरे से पहले ऐलान
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और बिहार के सीएम और जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार के बीच 15-20 मिनट बातचीत हुई. सीटों को लेकर सम्मानजनक बंटवारा दशहरे से पहले होने की उम्मीद जताई जा रही है.
नई दिल्ली: बिहार में एनडीए के साथी दलों के बीच सीट बंटवारे का झगड़ा जल्द ही शांत हो सकता है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और बिहार के सीएम और जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार के बीच 15-20 मिनट बातचीत हुई, हालांकि, इस दौरान दोनों के बीच में सीटों को लेकर सीधे बातचीत नहीं हुई लेकिन इतना तय हुआ कि नीतीश कुमार का सम्मान रखा जाएगा. दोनों नेताओं के बीछ हुई इस मुलाकात की खास बात ये है कि जब मुलाकात खत्म हुई तो नीतीश कुमार को बाहर छोड़ने के लिए अमित शाह नहीं आए, बल्कि भूपेंद्र यादव नीतीश कुमार को बाहर तक छोड़ा.
एलजेपी को भी मिले सम्मानजनक सीटें
इस मुलाकात में दोनों के बीच इस मुद्दे पर भी बातचीत हुई कि एलजेपी के अध्यक्ष राम विलास पासवान को भी सम्मानजनक सीटें मिलें. हालांकि, इस मुलाकात में केंद्रीय राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी को लेकर उत्साहजनक बात सामने नहीं आई. आरएलएसपी को कितनी सीटें दी जाएं, ये फैसला बीजेपी पर छोड़ दिया गया.
सूत्रों के मुताबिक सीटों की डील में कौन पार्टी किस लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े, इस हिसाब-किताब में जेडीयू में नए-नए आए इलेक्शन गुरू प्रशांत किशोर बड़ी भूमिका निभाएंगे. सीटों को लेकर सम्मानजनक बंटवारा दशहरे से पहले होने की उम्मीद जताई जा रही है.
क्या है सीटों का संकट?
बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं, फिलहाल बीजेपी के 22 सांसद हैं, जबकि उनकी सहयोगी पार्टी एलजेपी के 6 सांसद हैं. 3 सांसद आरएलएसपी के हैं. इस तरह कुल सांसदों की संख्या पहुंचती है 31. दो सांसद जेडीयू के पास है. इस तरह मौजूदा एनडीए के पास 33 सांसद हैं. और यही बड़ी संख्या सीटों के बंटावारे में मुश्किल पैदा कर रही है.
दरअसल, 2014 से पहले बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन रहा है और तब जेडीयू बड़ा भाई हुआ करता था 25 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ता था और बीजेपी की झोली में सिर्फ 15 सीटें मिलती थीं, लेकिन अब बदले हालात में जेडीयू हाशिए पर है, और सम्मानजनक सीट पाने की लड़ाई लड़ रहा है.
कहां फंसा है पेंच
लेकिन पेंच ये है कि एनडीए की सहयोगी आरएलएसपी मौजूदा 3 सीटों से ज्यादा की मांग कर रही है. और रामविलास पासवान भी अपने पुराने सीटों से कम पर समझौता करने को तैयार नहीं है. ऐसे में जो भी कुर्बानी देनी होगी वो बीजेपी को देनी होगी और यहीं सारा पेंच फंसा हुआ है.