BJP South Plan: कांग्रेस अपनी गिरती साख के बावजूद दक्षिण भारत में कुछ राज्यों में मज़बूत स्थिति बनाए हुए है, वहीं दक्षिण के राज्यों में आज भी क्षेत्रीय दल ताकतवर है. लेकिन, बीजेपी को इसी दक्षिण भारत में अब उम्मीद दिखाई दे रही है. इसकी वजह है नगर निकाय चुनावों में मिली सफलता. पार्टी को आशा है कि 2024 का चुनाव उसके लिए यहां से नई लोकसभा सीटों से उसकी झोली भर सकता है. बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह अक्सर ये बात कहते हैं, “अगर मैं अभी अध्यक्ष होता तो मेरा हेड क्वार्टर तमिलनाडु में होता.” अमित शाह की इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि बीजेपी के इस चाणक्य के एजेंडे में दक्षिण भारत में भी जीत का परचम लहराना सबसे ऊपर है.
हैदराबाद में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भाजपा के शीर्ष नेताओं ने दक्षिण भारत को निशाना बनाया. जहां कर्नाटक को छोड़कर साल 2019 के चुनाव में बाक़ी चार राज्यों की 101 सीटों में से केवल चार सीटें ही भाजपा ने जीतीं. वहीं, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने अब राज्यसभा के मनोनीत सांसदों की अपनी पसंद के रूप में दक्षिणी राज्यों के चार प्रतिष्ठित व्यक्तियों को चुना है.
दक्षिण भारत में नई उम्मीदें लगाए बैठी है बीजेपी
उत्तर और पश्चिम भारत में बीजेपी के बैक टू बैक स्वीप ने 2014 और 2019 के चुनावों में बड़ी जीत हासिल की और अब पार्टी पूर्व और दक्षिण भारत में अपना विस्तार करने की लगातार कोशिश कर रही है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उसके अपने हिंदी पट्टी के गढ़ों में उसकी लोकसभा सांसदों की संख्या में कभी कोई गिरावट हो तो उसकी भरपाई वह इन राज्यों से कर सके.
भाजपा ने पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे पूर्वी राज्यों में अपनी नई जमीन को उपजाऊ बनाया है, लेकिन विंध्य से आगे का क्षेत्र अब तक इसके लिए कम उपजाऊ साबित हुआ है. जबकि कर्नाटक आज भी बीजेपी का गढ़ बना हुआ है. लोकसभा चुनावों में, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु के शेष चार राज्य भगवा लहर से काफी हद तक अछूते रहे हैं. बीजेपी ने इन चार राज्यों की ज़िम्मेदारी सह संगठन मंत्री शिव प्रकाश के कंधों पर डाली है.
जानिए कौन हैं भाजपा की पसंद- शिवप्रकाश
शिव प्रकाश 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव और 2014 के बाद से पश्चिम बंगाल में लगातार काम कर चुके हैं. संगठन के कुशल शिल्पी के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले शिव प्रकाश, संगठन खड़ा करने, संगठन को जुझारू बनाने और संगठन को लड़ने के लिए प्रेरित करने में माहिर माने जाते हैं. कार्यकर्ता की पहचान कर उसे मुफ़ीद काम सौंपते हैं. उनके निशाने पर अभी सबसे ऊपर तेलंगाना है. यहां भाजपा 2024 के पहले विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव में सबसे ज़्यादा सम्भावनाएं देख रही है. ऐसे में आरएसएस से प्रचारक बन कर निकले शिव प्रकाश ने फ़िलहाल दक्षिण में अपना केंद्र हैदराबाद को बनाया हुआ है.
आंध्र प्रदेश में टीडीपी और तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक जैसी पारंपरिक रूप से मजबूत पार्टियां कमजोर हो गई हैं और वाईएसआर के नेतृत्व वाली सरकार को एक मजबूत चुनौती देने के लिए संघर्ष कर रहीं हैं. ऐसे मेंबीजेपी के लिए स्थितियां, इस क्षेत्र में पहले से कहीं अधिक परिपक्व हैं.
कांग्रेस की कमजोरी का भाजपा को मिलेगा फायदा
कांग्रेस के राष्ट्रीय विकल्प की पेशकश करने की स्थिति में नहीं होने के कारण वाम शासित केरल में भी भाजपा के लिए नई संभावनाएं खुल गई हैं. जहां लगभग 45 प्रतिशत अल्पसंख्यकों ने इस राज्य को बीजेपी के लिए अभी तक मरुभूमि ही बनाए रखा है. पार्टी का “दक्षिणी मार्च” कर्नाटक की सीमाओं से आगे बढ़ने में विफल रहा है, जहां वह पहली बार 2008 में सत्ता में आई थी.
बीजेपी ने 1999 में तेदेपा के साथ गठबंधन में नौ सीटें जीती थीं और तमिलनाडु से उसी वर्ष में चार सदस्य लोकसभा पहुंचे थे. यह दोनों राज्यों में बीजेपी का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा है. इन राज्यों में पार्टी का हिंदुत्व का मुद्दा भी अन्य क्षेत्रों की तरह प्रभावी ढंग से काम नहीं कर पा रहा है. दक्षिण के राज्यों में मजबूत नेताओं की मौजूदगी ना होना बीजेपी के लिए सबसे बड़ा कमजोर पक्ष है और अब उसकी चुनौती उससे आगे जाने की है.
भाजपा ने खेला है बड़ा दांव
बीजेपी तेलंगाना और तमिलनाडु में बेहद आक्रामक अन्दाज़ में अपने प्रतिद्वंद्वियों को टक्कर देने के लिए राज्य अध्यक्षों बांदी संजय कुमार और के अन्नामलाई को खड़ा कर रही है और केंद्रीय नेतृत्व की तरफ़ से भी इन नेताओं को भरपूर मदद दी जा रही है.
बीजेपी ने 2018 के विधानसभा चुनावों में केवल एक सीट जीती थी. लेकिन, पिछले लोकसभा चुनावों में 17 में से चार सीटें जीती थीं और इसके बाद ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में एक मजबूत प्रदर्शन करने के अलावा कुछ उपचुनावों में जीत हासिल की थी. बीजेपी की कोशिश “जड़ से सत्ता के शिखर” तक अपने वोट बैंक को बढ़ाते हुए शनैः शनैः बढ़ने की है.
भाजपा 2024 के चुनाव में इस क्षेत्र में एक गंभीर छाप छोड़ने के लिए कठिन चढ़ाई चढ़ने को तैयार है. बीते 2019 चुनाव में इन चार राज्यों में जीती गई सभी चार लोकसभा सीटें तेलंगाना से आईं और तमिलनाडु, आंध्र, केरल में इसकी संख्या शून्य थी.
सभी चार राज्यों में से, तेलंगाना अब तक पार्टी के लिए सबसे अच्छा दांव रहा है. राव सरकार में पूर्व मंत्री एटाला राजेंदर की हुजुराबाद सीट से बीजेपी के टिकट पर पिछले साल टीआरएस के बड़े अभियान के खिलाफ उपचुनाव में आश्चर्यजनक जीत ने पार्टी के अभियान को एक महत्वपूर्ण मज़बूती दी है. दक्षिणी राज्यों की तुलना में तेलंगाना से पार्टी को चुनावी उत्थान के लिए अधिक उम्मीद है, क्योंकि पिछले संसदीय चुनावों में इस राज्य के वोट आधार और सीट हिस्सेदारी पिछले चुनावों की अपेक्षा काफी अधिक थी.
स्थानीय निकाय चुनावों में मिली सफलता से जोश में है बीजेपी
द्रविड़ पार्टियों के वर्चस्व वाली तमिलनाडु की राजनीति में पैर जमाने के बीजेपी के प्रयासों को स्थानीय निकाय चुनावों में आंशिक सफलता मिली और प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई ने अब दावा किया है कि उनकी पार्टी 2024 में 25 लोकसभा सीटें जीतेगी. ये दावा जागीर तौर पर अभी अतिशयोक्ति दिखे, लेकिन इतना साफ़ है कि पार्टी की महत्वाकांक्षा 25 लोकसभा सीटें जीतने की है.
अन्नामलाई का भी मिलेगा फायदा
अन्नामलाई कुप्पुसामी, जो तमिलनाडु के प्रदेश अध्यक्ष हैं, वो 38 साल के युवा है और IPS अधिकारी रहे हैं. उन्होंने इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया और इसके बाद मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. बाद में उन्होंने संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा पास की और भारतीय पुलिस सेवा को चुना. उन्हें 2013 में कर्नाटक पुलिस में एएसपी के रूप में अपनी पहली पोस्टिंग मिली. इसके बाद उन्होंने चिकमंगलुरु में पुलिस अधीक्षक (एसपी) का पदभार संभाला.
साल 2019 में अन्नामलाई ने अपनी नौकरी से उस वक्त इस्तीफा दे दिया, जब वो दक्षिण बेंगलुरु के पुलिस उपायुक्त थे. इसके बाद उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत की और 25 अगस्त 2020 को बीजेपी में शामिल हो गए. बाद में पार्टी ने उन्हें तमिलनाडु राज्य बीजेपी इकाई का उपाध्यक्ष बना दिया और अब अध्यक्ष बना दिया है.
भाजपा को करना होगा बदलाव
2021 में द्रमुक के सत्ता में आने के बाद, राजनीति पर नजर रखने वालों का कहना है कि बीजेपी ने सत्ताधारी दल को आंतरिक मतभेदों में फंसाने और राज्य सरकार को प्रभावी ढंग से नहीं लिया है और इसके साथ ही प्रमुख विपक्षी दल एआईएडीएमके से मुकाबला करने का बस प्रयास किया है. अब बीजेपी को उम्मीद है कि संगीत के उस्ताद इलैयाराजा को राज्यसभा सांसद के रूप में नामांकित करने से उसे तमिल मतदाताओं के साथ तालमेल बिठाने में मदद मिलेगी.
इस साल की शुरुआत में, अकेले स्थानीय चुनाव लड़ने वाली बीजेपी ने क्षेत्रीय खिलाड़ियों से बेहतर प्रदर्शन किया है और नगर निगमों में 22, नगर पालिकाओं में 56 और नगर पंचायतों में 230 सीटें जीतीं हैं. साल 2021 के विधानसभा चुनाव में अन्नाद्रमुक के जूनियर पार्टनर के तौर पर बीजेपी ने चार विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी और अब बीजेपी यहां अपने जनाधार को बढ़ाने जुट गयी है.
पिछले विधानसभा चुनावों में एक भी सीट जीतने में विफल रहने के बाद केरल में बीजेपी की राजनीतिक तेजी लगभग थम-सी गई थी. उसे अब उम्मीद है कि दिग्गज एथलीट पीटी उषा के राज्यसभा नामांकन से राजनीतिक टेलविंड उत्पन्न होगा, जिससे उसे अपने पदचिह्न का विस्तार करने की आवश्यकता है. पीटी उषा का राज्यसभा नामांकन एक संदेश है. यह सच है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमेशा ऐसे सकारात्मक संदेशों के जरिए लोगों का दिल जीता है. भविष्य में राजनीतिक प्रभाव एक अलग मामला है, लेकिन मोदी सरकार ने उनके शानदार करियर को भी ध्यान में रखा है.
केरल की सत्तारूढ़ सीपीएम और विपक्षी कांग्रेस ने कहा कि उषा के नामांकन से राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश काम नहीं आएगी. यहां तक कि उन्होंने फैसले की सराहना की.
अमित शाह की महत्वाकांक्षी योजना है-दक्षिण की जीत
तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष के रूप में, अमित शाह, जो अब केंद्रीय गृह मंत्री हैं, ने "कोरोमंडल" राज्यों में पार्टी के पदचिह्नों का विस्तार करने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना तैयार की थी, जो दक्षिण और पूर्वी तटों के साथ राज्यों के संदर्भ में थी. इसे आंशिक सफलता मिली क्योंकि पार्टी ने 2019 में पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 17 पर जीत हासिल करके अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. इसने ओडिशा की 21 में से आठ सीटें जीतीं, एक ऐसा राज्य जहां सत्तारूढ़ बीजद के बाद काफी गिरावट आई थी, तेलंगाना में 17 में से चार लोकसभा सीट अपने क़ब्ज़े में की है.
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