महाराष्ट्र (Maharashtra) की 106 नगर पंचायत (Nagar Panchayat) और 2 ज़िला परिषद के लिए हुए चुनाव (Election) में बीजेपी (BJP) ने बाज़ी मारते हुए सबसे ज़्यादा सीटों पर जीत हासिल की हैं. 106 में से 97 नगर पंचायत के नतीजे आज घोषित हुए हैं. 9 पंचायत के नतीजे कल आएंगे. जानकारी के मुताबिक़ बीजेपी ने 24 नगर पंचायत पर बहुमत हासिल किया है जबकि कुल 1802 सीटों में से 416 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की है. 2017 में बीजेपी के 344 नगर पंचायत सदस्य जीते थे, उस वक्त BJP महाराष्ट्र सरकार में थी.


क्या कहते हैं चुनावी नतीजे?


106 नगर पंचायत में 97 के नतीजे आए सामने


25 एनसीपी


24 बीजेपी 


18 कांग्रेस 


14 शिवसेना 


16 अन्य


इन स्थानीय निकाय चुनावों में सबसे ज्यादा नगर पंचायतों पर एनसीपी ने झंडा गाड़ा है, तो वहीं सबसे ज्यादा पार्षद (सीटें) बीजेपी ने जीती हैं. कांग्रेस तीन नंबर की पार्टी बनी, तो वहीं सीएम की कुर्सी होते हुए शिवसेना चौथे नंबर की पार्टी बनकर रह गई है. हालांकि, सत्ता में शामिल तीनों पार्टियों को मिलाकर एमवीए सरकार ने 57 पंचायत जीतकर निकाय चुनावों में बाजी मारी है. लेकिन अकेले लड़ कर बीजेपी ने भी 24 पंचायत हासिल कर कांटे की टक्कर दी है. ये आंकड़ों से स्पष्ट हो रहा हैं.


किसे फायदा, किसे नुकसान?


एनसीपी के महाराष्ट्र प्रदेश के अध्यक्ष जयंत पाटिल ने इस जीत को स्वीकार करते हुए बीजेपी पर हमला बोला हैं. पाटिल ने कहा कि एनसीपी को साढ़े तीन जिलों की पार्टी कहने वाली बीजेपी को हमारे कार्यकर्तओं ने इन नतीजों के माध्यम से करारा जवाब दिया हैं. उधर एबीपी न्यूज़ से बात करते हुए बीजेपी प्रदेश के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने बीजेपी को नंबर एक पार्टी होने का दावा किया है. साथ ही अपने पुराने सहयोगी शिवसेना को निशाने पर लेते हुए कहा कि एनसीपी की बढ़ती ताकद देखते हुए एमवीए सरकार में शामिल होना शिवसेना के लिए कितना घाटे का सौदा रहा है. यही प्रतीत होता है.


कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने कांग्रेस के प्रदर्शन को संतोषजनक बताया है. पटोले के होम ग्राउंड भंडारा में भले ही उन्हें एनसीपी से मात मिली हो लेकिन बीजेपी का गढ़ माने जाने वाले विदर्भ में कांग्रेस सबसे आगे है और कोंकण में खाता खोला है, जिससे कांग्रेस संतुष्ट नजर आ रही है. जब कि बीजेपी से ओबीसी नेता पंकजा मुंडे का मानना है कि ओबीसी आरक्षण रद्द होने के बाद भी सिर्फ बीजेपी ने उन जगहों पर ओबीसी उम्मीदवार मैदान में उतारे जिस वजह से बीजेपी ने सबसे ज्यादा सीटें जीतीं. हालांकि, इन नतीजों पर शिवसेना के किसी बड़े नेता की प्रतिक्रिया अब तक नहीं मिल सकी.


ओबीसी आरक्षण रद्द का असर चुनाव पर?


इन नतीजों से किसको सियासी नुक़सान हुआ है और किसे फ़ायदा पहुंचा? जानकरों का मानना हैं की यूपी, बिहार और तमिलनाडु की तरह महाराष्ट्र में ओबीसी को राजनीतिक विकल्प नहीं है. इसीलिए यहां ओबीसी सभी पार्टियों में बट जाते हैं. हालांकि, इस चुनाव में बीजेपी ने सबसे ज्यादा सीटें लड़ने के कारण सबसे ज्यादा सीटें जीतना स्वाभाविक है. तो वहीं एमवीए की तीनों पार्टियों में एनसीपी जिसका ओबीसी से ज्यादा मराठा वोट बेस है उन्हें सबसे ज्यादा पंचायत हासिल हुई हैं.


वहीं राजनैतिक विश्लेषक रविकिरण देशमूख का मानना है की OBC आरक्षण रद्द होने का असर बड़े पैमाने पर नहीं दिखा. इसकी वजह है कि लोकल बॉडी चुनाव स्थानिक मुद्दों और नेताओं पर लड़े जाते हैं. इसके अलावा राजनीतिक आरक्षण का मुद्दा आम आदमी के लिए नहीं बल्कि सिर्फ चुनाव में उतरे प्रत्याशियों के लिए महत्वपूर्ण हैं. इसका असर तब देखने को मिलता जब शिक्षा और नौकरी से जुड़े आरक्षण को ठेस पहुंची होती.


मार्च महीने में होने वाले महानगर पालिका चुनाव से पहले नगर पंचायत में बीजेपी को मिली भारी जीत ने सत्ता में शामिल पार्टियों की मुश्किल बढ़ा दी है, ये निश्चित है. महाराष्ट्र में हुए नगर पंचायत के चुनाव महाराष्ट्र में कुछ ही महीनों में मिनी विधानसभा यानी 28 जिला परिषद, 20 महानगर निगम और 282 नगर पालिकाओं को चुनाव होने वाला है. इसमे ओबीसी आरक्षण पर आए नए आदेश का किस तरह से असर होगा ये देखना दिलचस्प होगा.


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