झारखंड में भी फेल हो गया बीजेपी का ये 'नया प्रयोग'
रघुवर दास तो खुद भी हारे और बीजेपी की भी मिट्टी पलीद करा दी. वे हारे भी तो बीजेपी के बागी नेता सरयू राय से.
नई दिल्ली: झारखंड में घर-घर रघुवर का नारा नहीं चला. अबकी बार 65 के पार का फॉर्मूला भी फेल रहा. इसके साथ ही बीजेपी के प्रयोग पर भी सवाल उठने लगे हैं. जो प्रयोग पांच साल पहले किया गया था वो भी एक नहीं, तीन तीन राज्यों में. हरियाणा में गैर जाट मनोहरलाल खट्टर को मुख्य मंत्री बनाया गया. महाराष्ट्र में गैर मराठा देवेन्द्र फडणवीस को सीएम की कुर्सी मिली. वे ब्राह्मण जाति के हैं. झारखंड में गैर आदिवासी रघुवर दास मुख्य मंत्री बने. वे पिछड़ी बिरादरी के हैं.
रघुवर दास तो खुद भी हारे और बीजेपी की भी मिट्टी पलीद करा दी. वे हारे भी तो बीजेपी के बागी नेता सरयू राय से. अब से 19 साल पहले यानि साल 2000 में झारखंड अलग राज्य बना था. इसके बाद से ही वहां लगातार आदिवासी समाज के नेता मुख्यमंत्री बनते रहे, लेकिन पहली बार 2014 में रघुवर दास को राज्य का सीएम बना दिया गया. वे उस समय बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष थे. आदिवासी इलाकों को मिलाकर बिहार से अलग झारखंड राज्य बना था. वहां आदिवासियों की आबादी 26 % है. राज्य की 81 में से 28 विधानसभा सीटें आदिवासी समाज के लिए आरक्षित हैं, लेकिन उसी आदिवासियों के दबदबे वाले झारखंड में पिछड़ी बिरादरी के रघुवर को सरकार की कमान दे दी.
रघुवर दास के बहाने बीजेपी ने झारखंड में राजनैतिक विमर्श बदलने की तैयारी की थी. पिछड़ों के बहाने राजनीति में जमे रहने का इरादा था. लेकिन हुआ ठीक उल्टा. पूरे पांच साल के राज में रघुवर ने आदिवासियों की परवाह नहीं की. उनके सारे फैसले इस समाज के हित के खिलाफ रहे. उन्हें नाराज करते रहे. आदिवासियों के जमीन से जुड़े कानून में बदलाव की कोशिशें की गई. जब ऐसा नहीं हो सका तो रघुवर सरकार हिंदुत्व के एजेंडे पर आ गई. 2017 में धर्मांतरण कानून में बदलाव किया गया. लेकिन ये सब चुनाव में काम नहीं आया. सरकार से लेकर संगठन में रघुवर की मनमानी ने आग में घी का काम किया.
हरियाणा में बीजेपी की सरकार बड़ी मुश्किल से बन पाई. मनोहर लाल खट्टर की सरकार दुष्यंत चौटाला के भरोसे है. वहां जाट बिरादरी ने गोलबंद होकर बीजेपी के खिलाफ वोट किया. महाराष्ट्र में इस बार विदर्भ के इलाके में ही बीजेपी की सबसे बड़ी हार हुई. इसी इलाके से नितिन गड़करी और देवेन्द्र फडणवीस आते हैं. दोनों ब्राह्मण हैं. एक गैर मराठा फडणवीस को जब पांच साल पहले सीएम बनाया गया था तो सब हैरान रह गए थे. खास तौर से उस महाराष्ट्र में जहां राजनीति के केंद्र में मराठा और पिछड़ी जातियां रही हैं. तो क्या अब जरूरी नहीं कि बीजेपी हाईकमान को अपनी रणनीति पर विचार करना चाहिए नहीं तो लेने के देने पड़ सकते हैं. एक-एक राज्य बीजेपी के हाथ से निकल जायें इस बात का खतरा बना रहेगा.
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