नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल के चुनाव-प्रचार ने दिलचस्प मोड़ ले लिया है और अब यहां बेटियों का महत्व अचानक से और भी ज्यादा बढ़ गया है. ममता बनर्जी ने नारा दिया था- 'बंगाल अपनी बेटी को ही चाहता है.'  बीजेपी ने इसका तोड़ निकालते हुए नया स्लोगन दिया है- 'आखिर बंगाल की बेटियां क्या चाहती हैं. 'पार्टी ने यह मुहिम एक गैर राजनीतिक संगठन के जरिये शुरु की है जिसका नाम है-सेव बंगाल यानी 'बंगाल बचाओ.' संगठन से जुड़े लोगों का दावा है कि उनकी मुहिम रंग ला रही है और महिलाओं के बीच दिनोंदिन लोकप्रिय हो रही है.


कहने को भले ही ये गैर राजनीतिक हो लेकिन इसमें पार्टी और आरएसएस से जुड़े लोग ही हैं. वैसे संगठन का मकसद राज्य के तमाम बुद्धिजीवियों, कलाकारों,  शिक्षकों,  डॉक्टरों व अन्य प्रोफेशनल लोगों के बीच जाकर बीजेपी की विचारधारा को मजबूत करना और नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों के फायदे गिनाना है.


पिछले लोकसभा चुनाव से पहले 2018 में बीजेपी के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश ने इस संगठन की आधारशिला रखी थी. लोकसभा चुनाव के दौरान विदेशों में रहने वाले सैकड़ों प्रवासी बंगालियों को राज्य में आमंत्रित करके उन्हें अपने-अपने शहरों में बीजेपी के पक्ष में हवा बनाने का जिम्मा सौंपा गया था. रणनीति सफल हुई, लिहाज़ा पार्टी को 18 सीटें दिलवाने में इस संगठन की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता.


'बंगाल बचाओ' के राष्ट्रीय संयोजक अनिमेष बिस्वास कहते हैं," हमारी मुहिम का इस कदर असर हो रहा है कि युवतियां व महिलाएं स्वयं आगे आकर संगठन से जुड़ रही हैं. इस बार हमने करीब 8 हजार प्रवासी बंगालियों को यहां बुलाया है जो लोकसभा चुनाव के मुकाबले दोगुने हैं. ये सभी अपने शहरों में गैर राजनीतिक लोगों के बीच जाकर ममता सरकार की विफलता और केंद्र सरकार की नीतियों के फायदे बताएंगे. हम लोगों से यह नहीं कहते कि आप बीजेपी को वोट दीजिये,  उन्हें सिर्फ यह समझाते हैं कि बंगाल के विकास और समृद्धि के लिये सत्ता परिवर्तन करना क्यों जरुरी है.


राज्य के डॉक्टरों, शिक्षकों, युवा वकीलों,वैज्ञानिकों व कवियों,कलाकारों, एनजीओ आदि प्रोफेशनल के समूहों के साथ ये संगठन अब तक ढाई सौ से ज्यादा बैठकें करके बीजेपी की जमीन मजबूत करने की कोशिश कर चुका है. चुनाव के अंतिम चरण का मतदान होने तक इनका अभियान जारी रहेगा.


बिस्वास के मुताबिक "अन्य राज्यों की तुलना में पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों व शिक्षकों को ज्यादा महत्व व सम्मान दिया जाता है, लिहाजा उनकी कही बात को कोई टालता नहीं है. इसीलिये हम इन दो प्रोफेशनल को अपने वक्ता के रुप में उन वर्गों के बीच भेज रहे हैं, जहां इनकी बातों को कोई अनसुना नहीं करेगा. वैसे भी हमारे यहां चुनाव के वक़्त 'व्हिस्पर कंपैन' ही चलता है, यानी कान में धीरे से बता दिया जाता है कि इस बार क्या करना है.'


यह भी पढ़ें:


West Bengal Opinion Poll 2021: ममता बनर्जी, दिलीप घोष, मुकुल रॉय और अधीर रंजन चौधरी CM के लिए पसंद कौन? सर्वे में जानें