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BMC चुनाव: फडणवीस का हमला, 'कागज मिले तो उद्धव के खिलाफ भी होगी जांच'
मुंबई: मुंबई में कल बीएमसी (मुंबई महानगरपालिका) के चुनाव होना है. पिछले 22 सालों में ऐसा पहली बार हो रहा है जब उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना और बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं. 23 फरवरी को आने वाले नतीजों में इसका भी पता चल जाएगा कि दोनों पार्टियों की टूटी हुई दोस्ती का चुनाव पर कितना असर रहा. गठबंधन क्यों टूटा, बीजेपी और शिवसेना में दूरी क्यों बढ़ी, झगड़े की मुख्य वजह क्या थी, इन सारे सवालों के जवाब खुद सीएम देवेंद्र फडणवीस ने एबीपी न्यूज़ से एक्सक्लूसिव बातचीत में दिया है.
22 सालों में पहली बार जुदा हैं बीजेपी-शिवसेना की राहें
कल मुंबई में बीएमसी की 227 सीटों पर वोटिंग होने वाली है. इसके अलावा महाराष्ट्र की 9 दूसरी महानगरपालिकाओं के लिए भी मतदान होगा. 23 फरवरी को इसके नतीजे आ जाएंगे. बीएमसी चुनाव के नतीजों की चिंता शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे, उनके चचेरे भाई और एमएनएस (महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना) प्रमुख राज ठाकरे के साथ-साथ बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) नेता और महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणनवीस को सबसे ज्यादा है. चिंता होना इसलिए भी लाजिमी है क्योंकि पिछले 22 साल में पहली बार ऐसा हो रहा है जब बीएमसी चुनाव में बीजेपी और शिवसेना की राहें अलग हैं.
गठबंधन पर पड़ा घोटालों का असर- फडणनवीस
राहें अलग होने के कारणों पर सीएम देवेंद्र फडणनवीस का कहना है कि बीएमसी में हुआ घोटालों का असर गठबंधन पर पड़ा और यही इसके टूटने की वजह रही. फडणवीस ने कहा कि 2445 करोड़ रुपए के रास्तों पर बेस लेवल गायब है, जब बेस ही नहीं बनेगा तो रास्ते कैसे बनेंगे. वे आगे कहते हैं कि वही परिस्थिति कचरे की है. कचरे में भी घोटाला हुआ. नाले सफाई में घोटाला हुआ. अलग-अलग जगहों पर घोटाला हुआ. उन्होंने कहा कि ये सारे घोटाले निकाले. उस पर उन्होंने एफआईआर करवाई. बड़े पैमाने पर कार्रवाई की.
घोटालों के असर या बीजेपी की बढ़ती महत्वकांक्षा से टूटा गठबंधन?
लेकिन सवाल ये है कि गठबंधन टूटने के बाद ही मुख्यमंत्री जी को बीएमसी के घोटालों की याद क्यों आयी. घोटालों के आरोप तो पिछले कई सालों से लग रहे हैं. कहीं ऐसा तो नहीं है कि महाराष्ट्र में बीजेपी की महत्वकांक्षा बढ़ चुकी है और शिवसेना इसी महत्वकांक्षा के रास्ते में रुकावट बन रही थी. क्योंकि 2012 में जब बीएमसी के चुनाव हुए थे तब 227 सीटों में से शिवसेना ने 164 पर चुनाव लड़ा और 75 सीटें जीतीं, वहीं बीजेपी ने 63 सीटों पर चुनाव लड़ा और 31 पर जीत हासिल की थी. इसके दो साल बाद 2014 में लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव हुए. दोनों ही चुनावों में बीजेपी को बड़ी कामयाबी मिली. ज़ाहिर था की ऐसे नतीजे 2017 के बीएमसी चुनाव में बीजेपी के पास बड़ा हिस्सा मांगने की वजह थी. ऐसे में सवाल उठता है क्या बीजेपी का ज्यादा सीटें मांगना अनबन की वजह बनी?
बीएमसी पर कब्जा मतलब काबू में मुंबई
फडणवीस ने कहा, "मैं तो चाहता था कि हम अलायंस (गठबंधन) में लड़े. मैंने उनको ये कहा था कि भई सीटों के ऊपर मेरी कोई वो नहीं है. भले ही मुंबई में 15 एमएलए हमारे हैं, 14 उनके हैं फिर भी मैं इस बात के लिए तैयार था कि 122 सीटों पर लड़िए. मैं 105 सीटों पर लडूं. मेयर आपका बनाएं. शर्त बस इतनी थी कि इस गठबंधन को पारदर्शिता के एजेंडे पर तैयार करें."
साफ है शिवसेना को लगा कि ज्यादा सीटें देना उसके अस्तित्व के लिए खतरा है. जबकि बीजेपी राज्य में अपने बढ़ते कद के हिसाब से पांव फैलाना चाहती है. करीब 37 हज़ार करोड़ के बजट वाली बीएमसी पर कब्जा होने का राजनैतिक मतलब है कि मुंबई को अपने काबू में रखना.
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